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अनुबंध मात्रा

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भारत ने 2022-23 सत्र में अबतक 35 लाख टन चीनी निर्यात के लिए अनुबंध किया : इस्मा

नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) चीनी उद्योग के प्रमुख संगठन भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ने चालू वर्ष 2022-23 में अबतक लगभग 35 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए अनुबंध किए हैं। इसमें से 2,00,000 टन चीनी का पिछले महीने निर्यात किया गया है।

पांच नवंबर को घोषित 2022-23 की चीनी निर्यात नीति में 31 मई तक कोटा के आधार पर 60 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई थी। घरेलू उत्पादन का आकलन करने के बाद निर्यात के लिए आगे की मात्रा के लिए अनुमति दी जाएगी।

चीनी सत्र अक्टूबर से सितंबर महीने तक चलता है।

इस्मा के अनुसार, ‘‘बंदरगाह की जानकारी और बाजार की रिपोर्ट के अनुसार, अबतक चीनी के निर्यात के लिए लगभग 35 लाख टन के अनुबंध किए जा चुके हैं।’’

इस्मा ने बयान में कहा कि इसमें से लगभग 2,00,000 टन चीनी का भौतिक रूप से अक्टूबर में देश के बाहर निर्यात किया गया है, जबकि पिछले साल इसी महीने में लगभग 4,00,000 टन चीनी का निर्यात किया गया था।

इस्मा ने कहा कि सरकार द्वारा निर्यात नीति की घोषणा से बहुत पहले कई व्यापारियों अनुबंध मात्रा ने 2022-23 सत्र के लिए निर्यात अनुबंध कर लिए थे।‘‘तब से चीनी की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि का रुझान रहा है, जिसके परिणामस्वरूप चीनी मिलें निर्यात अनुबंध की कीमतों पर फिर से बात कर रही हैं।’’

चालू 2022-23 सत्र में पेराई का काम शुरू हो गया है। चीनी मिलों ने मौजूदा सत्र में 15 नवंबर तक 19.9 लाख टन चीनी का उत्पादन अनुबंध मात्रा किया है, जो एक साल पहले की समान अवधि के 20.8 लाख टन से थोड़ा कम है।

इसमें कहा गया है कि पश्चिम में कई चीनी मिलों ने इस सत्र में देर से परिचालन शुरू किया, जिसके कारण 15 नवंबर तक चीनी का उत्पादन थोड़ा कम रहा।

पिछले 2021-22 सत्र में भारत ने 1.1 करोड़ टन चीनी का निर्यात किया था।

भाषा राजेश राजेश अजय

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

बीमा अनुबंध में संशय की स्थिति में छूट के खंड को बीमाकर्ता के खिलाफ माना जाएः सुप्रीम कोर्ट

National Uniform Public Holiday Policy

मामले में जस्टिस अनुबंध मात्रा आरएफ नरीमन और एस रवींद्र भट की बेंच ने कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) सिद्धांत का उपयोग कर फैसला दिया और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की देनदारी को बहाल किया, जिसमें एक मोटर दुर्घटना में लगभग 37.6 लाख रुपए के मुआवजा और ब्याज के भुगतान का आदेश दिया गया।

23 साल पुरानी दुर्घटना में डॉ अल्पेश गांधी की मौत हो गई ‌थी। वह रोटरी आई इंस्टीट्यूट, नवसारी में 'मानद' नेत्र सर्जन थे। रोटरी आई इंस्टीट्यूट की एक मिनी-बस में यात्रा करते समय हुई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। दुर्घटना ड्राइवर की लापरवाही के कारण हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या डॉ गांधी को रोटरी आई इंस्टीट्यूट का नियमित कर्मचारी माना जाना चाहिए या अनुबंध पर सेवा दे रहा एक स्वतंत्र पेशेवर। बीमाकर्ता का दायित्व इसी प्रश्न से तय होना थी, क्योंकि बीमा अनुबंध के अनुसार, बीमाकर्ता रोटरी आई इंस्टीट्यूट के कर्मचारियों के दावों के लिए उत्तरदायी नहीं था।

मामले में बीमा धारक, रोटरी आई इंस्टीट्यूट ने IMT-5 एन्डॉर्स्मन्ट के अनुसार, अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान भी किया था, जिसके अनुसार बीमाकर्ता, बीमाधारक के कर्मकार मुआवजा अधिनियम, 1923 के दायरे में शामिल कर्मचारियों के अलावा, किसी भी यात्री को आई शारीरिक चोट के लिए मुआवजे देने का उत्तरदायी था। यदि डॉक्टर रोटरी आई इंस्ट‌िट्यूट के कर्मचारी होते तो बीमा अनुबंध के अनुसार उन्हें मुआवजा नहीं दिया जाता।

मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण ने अपने फैसले में डॉक्टर और हॉस्प‌िटल के बीच रोजगार की व्‍यवस्‍था को "अनुबंध की सेवा" के बजाय "अनुबंध के लिए सेवा" बताया था और बीमाकर्ता को उत्तरदायी ठहराया था। हालांकि बीमाकर्ता की अपील पर हाईकोर्ट ने उल्टा फैसला दिया, जिसे चुनौती देते हुए डॉ गांधी की विधवा ने सुप्रीम कोर्ट से संपर्क किया।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सबसे पहले डॉ गांधी और आई इंस्टिट्यूट के बीच अनुबंध की जांच की कि यह "सेवा के लिए अनुबंध" है या "सेवा का अनुबंध" है। "अनुबंध मात्रा सेवा का अनुबंध" से तात्पर्य यह है कि वह मालिक-नौकर संबंध पर आधारित होता है, जबकि "अनुबंध के लिए सेवा" बराबरी का संबंध होता है और व्यावसायिक शर्तों पर आधारित होता है।

"अनुबंध सेवा के लिए" का निर्धारण करने के लिए परीक्षणों की व्याख्या से संबंध‌ित निर्णयों के एक समूह की जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि डॉ गांधी को आई इंस्टिट्यूट का नियमित कर्मचारी नहीं माना जा सकता है।"

"अनुबंध की शर्तों से यह स्पष्ट होता है अनुबंध सेवा के लिए है। अनुबंध कि, डॉ गांधी अब संस्थान के नियमित कर्मचारी नहीं होंगे, उनकी सेवाएं अब एक नियमित कर्मचारी के रूप में नहीं बल्कि एक स्वतंत्र पेशेवर के रूप में हैं, उसी तारीख से प्रभावी है, जिस तारीख अनुबंध मात्रा से यह शुरू होता है।"

बेंच ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच अनुबंध एक संस्थान और एक स्वतंत्र पेशेवर के बीच का अनुबंध है। कोर्ट ने इस बिंदु पर कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) सिद्धांत का उपयोग किया और कहा कि छूट के खंड को बीमाकर्ता के खिलाफ समझा जाए।

बेंच ने अपने फैसले में इंडस्ट्रियल प्रमोशन एंड इन्‍वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ उड़ीसा लिमिटेड बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2016) 15 एससीसी 315, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम ओरिएंट ट्रेजर्स (पी) लिमिटेड (2016) 3 एससीसी 49, जनरल एश्योरेंस सोसायटी लिमिटेड बनाम चंदूमल जैन (1966) 3 एससीआर 500, जैसे मिसालों को उद्धृत किया, जिसने सिद्धांत स्‍पष्ट किया।

"जहां पॉलिसी में अस्पष्टता होगी, वहां कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) का सिद्धांत लागू होगा, जिसका मतलब यह है कि पॉलिसी में अस्पष्टता उस पार्टी के खिलाफ होगी, जिसने अनुबंध तैयार किया है।"

कोर्ट ने जनरल एश्योरेंस सोसाइटी लिमिटेड बनाम चंदूमल जैन (1966) 3 एससीआर 500 के फैसले को उद्धृत किया, "बीमा के अनुबंध में प्रचुर मात्रा में विश्वास की आवश्यकता होती है यानी आश्वासन पर पूरा भरोसा और अनुबंध को कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum) माना जा सकता है, जिसका अर्थ यह कि अस्पष्टता या संदेह की स्थिति कंपनी के खिलाफ होगी।"

कोर्ट ने कहा, "यह मानते हुए कि मामले में अस्पष्टता है, इसलिए यहां कोंट्रा प्रोफरेंटेम (contra proferentum)का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए, इस प्रकार यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि यहां 'रोजगार' से तात्पर्य केवल संस्थान के नियमित कर्मचारियों से है, जो कि डॉ अल्पेश गांधी निश्चित रूप से नहीं थे।"

भारतीय सेना ने किया SWITCH ड्रोन खरीदने के लिए $ 20 मिलियन का अनुबंध

भारतीय सेना ने किया SWITCH ड्रोन खरीदने के लिए $ 20 मिलियन का अनुबंध |_40.1

भारतीय सेना ने हाल ही में मुंबई स्थित ड्रोन निर्माण कंपनी, ideaForge के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसने SWITCH के मानव रहित हवाई वाहनों (UAV) के उच्च-ऊंचाई वाले वेरिएंट खरीदें है. सौदे की कुल लागत लगभग 20 मिलियन अमरीकी डालर है. हालांकि, खरीदे जाने वाले UAV की मात्रा का खुलासा नहीं किया गया है. इन UAV को एक वर्ष की अवधि में भारतीय सेना में वितरित किया जाएगा.

SWITCH UAV के विषय में

SWITCH UAV भारतीय बलों की सबसे अधिक मांग वाले निरिक्षण संचालन के लिए निर्मित एक स्वदेशी प्रणाली है. यह फिक्स्ड-विंग VTOL (वर्टिकल टेक-ऑफ एंड लैंडिंग) UAV को इंटेलिजेंस, सर्विलांस एंड रीकानसन्स (ISR) मिशन में दिन और रात की निगरानी के लिए उच्च ऊंचाई और कठोर वातावरण में विस्तार किया जा सकता है. यह मानव-पोर्टेबल है और इसकी कक्षा में किसी अन्य UAV की तुलना में लक्ष्य पर सबसे अधिक समय है.

पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा बढ़ी, चीनी मिलों और किसानों को होगा फायदा

एथनॉल सबसे अच्छा ऑक्सीजन वाला माना जाता है. अतिरिक्त ऑक्सीजन वाहन के इंजन के भीतर पेट्रोल के अधिक कुशलता से जलने में संतुलन पैदा करने में मदद करता है.

2018- 19 में रिकॉर्ड 23.7 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किये जाने के साथ ही समाप्त वित्तवर्ष में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण की मात्रा 7.2 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है.

वित्त वर्ष 2018- 19 में रिकॉर्ड 23.7 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किये जाने के साथ ही समाप्त वित्तवर्ष में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण की मात्रा 7.2 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है. चीनी उद्योगों के पमुख संगठन भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने यह जानकारी दी है. इस्मा ने कहा कि इससे पहले विपणन वर्ष 2017-18 (दिसंबर से नवंबर) में 150 करोड़ रुपये के गन्ना रस की आपूर्ति के बीच एथनॉल सम्मिश्रण की मात्रा 4.22 प्रतिशत थी.

इस्मा ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर पूर्वी राज्यों और द्वीप क्षेत्रों को छोड़कर देश में पेट्राल में 10 प्रतिशत तक मिश्रण के लिए 330 करोड़ लीटर एथनॉल की आवश्यकता होगी. इसके मुकाबले 2018-19 के लिए 237 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति के अनुबंध किए गए अनुबंध मात्रा हैं. इस्मा ने कहा कि पिछले साल के 160 करोड़ लीटर के आंकड़े को पीछे छोड़ते हुए यह अब तक का सबसे बड़ा आपूर्ति अनुबंध है.

इस्मा ने कहा कि अगर चालू विपणन वर्ष में पूरी 237 करोड़ लीटर को सफलतापूर्वक मिश्रित किया जाता है, तो इस पर्यावरण-अनुकूल जैव- एथनॉल द्वारा लगभग 7.2 प्रतिशत पेट्रोल की खपत का विकल्प उपलब्ध हो जायेगा. नई जैव ईंधन नीति 2018 में वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण का स्तर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. सरकार वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने का पहला पड़ाव हासिल करने का लक्ष्य बना रही है.

इस नीति में देश में एथनॉल बनाने के लिए सीरे के अलावा अन्य सामग्रियों का उपयोग करने की भी अनुमति है. इसके तहत गन्ने का रस, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न, सड़े हुए आलू, मक्का, अधिशेष खाद्यान्न तथा अन्य वस्तुओं को शामिल किया गया है.

इस्मा ने कहा, "एथनॉल ऑक्सीजन समृद्ध है और इसलिए, इसे दुनिया में सबसे अच्छा ऑक्सीजन वाला माना जाता है. अतिरिक्त ऑक्सीजन वाहन के इंजन के भीतर पेट्रोल के अधिक कुशलता से जलने में संतुलन पैदा करने में मदद करता है, जिससे वाहनों का उत्सर्जन कम होता है और जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम होता है. इस प्रकार, अनुबंध मात्रा एथनॉल हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करता है.

पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा बढ़ी, चीनी मिलों और किसानों को होगा फायदा

एथनॉल सबसे अच्छा ऑक्सीजन वाला माना जाता है. अतिरिक्त ऑक्सीजन वाहन के इंजन के भीतर पेट्रोल के अधिक कुशलता से जलने में संतुलन पैदा करने में मदद करता है.

2018- 19 में रिकॉर्ड 23.7 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किये जाने के साथ ही समाप्त वित्तवर्ष में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण की मात्रा 7.2 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है.

वित्त वर्ष 2018- 19 में रिकॉर्ड 23.7 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किये जाने के साथ ही समाप्त वित्तवर्ष में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण की मात्रा 7.2 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है. चीनी उद्योगों के पमुख संगठन भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने यह जानकारी दी है. इस्मा ने कहा कि इससे पहले विपणन वर्ष 2017-18 (दिसंबर से नवंबर) में 150 करोड़ रुपये के गन्ना रस की आपूर्ति के बीच एथनॉल सम्मिश्रण की मात्रा 4.22 प्रतिशत थी.

इस्मा ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर पूर्वी राज्यों और द्वीप क्षेत्रों को छोड़कर देश में पेट्राल में 10 प्रतिशत तक मिश्रण के लिए 330 करोड़ लीटर एथनॉल की आवश्यकता होगी. इसके मुकाबले 2018-19 के अनुबंध मात्रा लिए 237 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति के अनुबंध किए गए हैं. इस्मा ने कहा कि पिछले साल के 160 करोड़ लीटर अनुबंध मात्रा के आंकड़े को पीछे छोड़ते हुए यह अब तक का सबसे बड़ा आपूर्ति अनुबंध है.

इस्मा ने कहा कि अगर चालू विपणन वर्ष में पूरी 237 करोड़ लीटर को सफलतापूर्वक मिश्रित किया जाता है, तो इस पर्यावरण-अनुकूल जैव- एथनॉल द्वारा लगभग 7.2 प्रतिशत पेट्रोल की खपत का विकल्प उपलब्ध हो जायेगा. नई जैव ईंधन नीति 2018 में वर्ष 2030 तक पेट्रोल अनुबंध मात्रा में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण का स्तर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. सरकार वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने का पहला पड़ाव हासिल करने का लक्ष्य बना रही है.

इस नीति में देश में एथनॉल बनाने के लिए सीरे के अलावा अन्य सामग्रियों का उपयोग करने की भी अनुमति है. इसके तहत गन्ने का रस, अनुबंध मात्रा क्षतिग्रस्त खाद्यान्न, सड़े हुए आलू, मक्का, अधिशेष खाद्यान्न तथा अन्य वस्तुओं को शामिल किया गया है.

इस्मा ने कहा, "एथनॉल ऑक्सीजन समृद्ध है और इसलिए, इसे दुनिया में सबसे अच्छा ऑक्सीजन वाला माना जाता है. अतिरिक्त ऑक्सीजन वाहन के इंजन के भीतर पेट्रोल के अधिक कुशलता से जलने में संतुलन पैदा करने में मदद करता है, जिससे वाहनों का उत्सर्जन कम होता है और जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम होता है. इस प्रकार, एथनॉल हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करता है.

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