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अचेतन लाभ और हानि

अचेतन लाभ और हानि
सांकेतिक फोटो।

Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Vigyapan Labh Ya Haniya”, “विज्ञापन: लाभ या हानियाँ” Complete Hindi Essay for Class 10, अचेतन लाभ और हानि Class 12 and Graduation Classes.

‘विज्ञापन’ का उद्देश्य है कि किसी वस्तु या वस्तुओं को व्यावसायिक, राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, कलात्मक, मांगलिक, साहत्यिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से लोकप्रिय बनाने की प्रक्रिया को त्वरित गति प्रदान की जाये अर्थात् इन सबसे संबद्ध वस्तुओं को जनमानस में एक विशिष्ट छवि के रूप में अंकित किया जाये। विज्ञापन यह ज्ञापित करता है कि अमुक वस्तु क्यों ग्रहणीय है और ऐसा कर वह वस्तु-विशेष के संबंध मंे लोगों में उत्सुकता पैदा करता है, आकर्षण पैदा करता है और अंततोगत्वा उसे पाने की लालसा उत्पन्न करता है। अतः विज्ञापन जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। जीवनमरण के प्रसंग में, राष्ट्रीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रसंग में, फिल्म जगत में, परिवार के मांगलिक कार्यक्रमों के शुभ अवसरों में, साहित्यिक कृतियों को लोकप्रिय बनाने के संदर्भ में, कलात्मक तथा सौन्दर्यबोधात्मक परिदृश्यों के प्रस्तुतिकरण के लिए, विवाह के लिए उपयुक्त वरकन्या की तलाश के प्रसंग में और न जाने कितने अन्य प्रसंगों में विज्ञापन की अर्थवत्ता है, आवश्यकता है। विज्ञापन आज की सामयिक आवश्यकता है। आधुनिक जीवन प्रणाली का यह अविभाज्य अंग है। इसके अस्तित्व को नकारना संभव नहीं है, बल्कि इसके सहारे सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते जाना है।

विज्ञापनों की महत्त्वता

वव्यावसायिक जगत में विज्ञापन का महत्त्व बहुत है। सामान्य वस्तु भी विज्ञापन के कारण जनमानस में बैठ जाती है। नयी वस्तु को लोकप्रिय तथा प्रसिद्ध बनाने का कार्य विज्ञापन ही करता है। जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी विज्ञापन के महत्त्व को स्वीकार किया जा रहा है। हजारों विज्ञापन एजेंसियों के अस्तित्व का राज ही यह है कि विज्ञापन एक सशक्त माध्यम है सामान्य को भी असामान्य बनाने का। यह भी एक कला है। अतः इनका महत्त्व है।

विज्ञापन प्रचारतंत्र का अंग हैं। जो बात बार-बार आँखों के आगे आती है, उसकी छाप मन पर पड़ती ही है। उसको प्रत्यक्षतः अनुभव की दृष्टि से देखने और प्रयोग में लाने की इच्छा सहज रूप में उत्पन्न हो जाती है। अतः विज्ञापन उपयोगी हैं, लाभकारी हैं, यह असंदिग्ध रूप में कहा जाता है। विज्ञापनों में पैसा तो खर्च करना पड़ता है, किंतु उसके परिणाम शीघ्र लाभदायक होते हैं। अतः लाखों रूपया तो विज्ञापन में ही खर्च किया जाता है। विज्ञापन के बहुत से लाभ हैं। सभी को यहाँ गिनाना सम्भव नहीं है। अतः कतिपय लाभों की गिनती यहाँ की जा रही हैं।

  1. नौकरी ढूँढने में विज्ञापन बहुत सहायक सिद्ध होते हैं।
  2. विवाह संबंधी विज्ञापन वर-वधु के चुनाव की दृष्टि से बड़े उपयोगी सिद्ध होते हैं।
  3. जिन लोगों का सामाजिक संबंध बहुत विस्तृत है, उनके यहाँ के सुख-दुःख के प्रसंगों को विज्ञापन के माध्यम से शीघ्रातिशीघ्र सब तक पहुँचाया जा सकता है।
  4. सार्वजनिक कार्यक्रमों की सूचनाएँ भी विज्ञापनों के माध्यम से जनता तक शीघ्र पहुँचाई जा सकती है।
  5. व्यवसाय की दृष्टि से भी विज्ञापन एक सशक्त माध्यम है।
  6. राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों को विज्ञापनों के माध्यम से जनता तक शीघ्र पहुँचाया जा सकता है।
  7. नगर प्रशासन अपने कार्य-संबंधी सभी सूचनाएँ विज्ञापन के माध्यम से दे पाता है।
  8. होर्डिग्स आदि के माध्यम से धार्मिक कार्यक्रमों की जानकारी पूरे शहर को हो जाती है।

विज्ञापनों से हानियाँ

विज्ञापनों से जहाँ बहुत लाभ हैं, वहाँ हानियाँ भी कम नहीं हैं। कतिपय हानियों की ओर ध्यान आकर्षित करना उपयुक्त रहेगा।

1 विज्ञापन हमारे दिलों-दिमाग पर गहरा असर करते हैं। बार-बार एक ही चीज का विज्ञापन देखकर उस चीज का हमारे अचेतन मन पर भी प्रभाव पड़ जाता है और कई बार उसके कारण हम ठगे भी जाते हैं।

  1. कई बार धोखाधड़ी करने वाली कम्पनियाँ अपने विज्ञापन के माध्यम से नौकरियाँ दिलाने का विश्वास दिलाती हैं और आज के बेकारी तथा बेरोजगारी के दिनों में अनेक तरूण तथा तरूणियाँ उनके जाल में अनायास फँस जाते हैं और भारी नुकसान उठाते हैं।
  2. स्त्रियांे से संबंधित उपकरणों के विज्ञापन नग्नता, अश्लीलत तथा असभ्यता के स्तर के होते हैं। इन विज्ञापनों से मन तथा मस्तिष्क विकृत तो होते ही हैं, हमारी नारी की ओर देखने की दृष्टि कितनी घटिया है, इसका परिचय भी मिल जाता है। नारी जाति का अपमान विज्ञापनों द्वारा होता है। दिल्ली के ‘नीति मंच’ ने अनेक प्रदर्शनों तथा गोष्ठियों के माध्यम से सरकार तथा समाज का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है।
  3. अनेक सड़क दुर्घटनाओं के कारण भी अश्लील तथा कामुकता भरे विज्ञापन होते हैं।
  4. विज्ञापन हमारी दृष्टि को रंगीन कर देते हैं, और हम सही तथा गलत में विभेद स्थापित नहीें कर पाते।

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यायावरी की जिंदगी-सी राहें

मन भी अद्भुत है। लाख भौतिक समृद्धि की तलाश में इधर-उधर भटकता रहे, भौतिक लक्ष्यों के आकार को बड़े से बड़ा करता जाए, समय की सूई को पकड़ कर दौड़ता रहे, मगर इसके बावजूद अचेतन मन कहीं न कहीं सुकून के पल तलाशता रहता है।

यायावरी की जिंदगी-सी राहें

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शरद उपाध्याय

जीवन के गणित में उलझने के बाद अंत में यही लगता है कि वह कहीं ठगा गया है और अपने लिए जी ही नहीं पाया है। जिंदगी के रिश्ते निभाते-निभाते आदमी अपने आप को कई बार भूल जाता है। यह भी याद नहीं रख पाता कि उसकी खुद की भी एक जिंदगी है, अपने भी कुछ निजी पल हैं। बच्चों से, अचेतन लाभ और हानि रिश्तों से, कुछ बहुत अपना भी है, जो अक्सर जीने से रह जाता है।

इसलिए अपने लिए समय निकालना बहुत जरूरी है। अचेतन लाभ और हानि जब हम अपने जीवन में झांक कर देखेंगे तो मन की छटपटाहट यही इंगित करती रहती है कि भागदौड़ की दुनिया से कुछ पलों के लिए कहीं निकल जाएं। इस मायने में सर्वश्रेष्ठ उपाय है यात्रा। कहीं भी अपने माहौल से दूर निकला जाए और कुछ दिन बिताकर, फिर तरोताजा होकर अपनी दुनिया में आया जाए।

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अपने आसपास देखने पर महसूस किया जा सकता है कि बहुत से लोग ऐसे हैं, जो अपने दायरे में सिमटे हुए हैं। कुछ अपनी पारिवारिक परेशानियों में ही मगन है तो कुछ लोग हैं, जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। मन सभी का करता है कुछ पलों के लिए बाहर निकलने का। पर कुछ लोग समय नहीं निकाल पाते तो कुछ लोग यात्रा को अनावश्यक व्यय मानते हुए कहीं जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

ऐसे में यात्राओं को कुछ अलग ढंग से परिभाषित करने की जरूरत है। आमतौर पर देखा जा सकता है कि लोग कागज पर यात्रा का कार्यक्रम बनाते हैं तो उसमें लाभ-हानि का गणित बिठाते हुए यात्रा कार्यक्रम को अचेतन लाभ और हानि इतना लंबा खींच लेते हैं कि जब जाने का वक्त आता है तो आदमी के हाथ-पांव फूल जाते हैं। जब दो दिन के लिए कभी घर से नहीं निकलना हुआ हो तो यह कैसे संभव होगा। कमरे में बैठकर, नक्शे पर छोटे-छोटे बिंदु देखकर आदमी यह सोचता है कि जब जा ही रहा है तो सारी जगह घूम लेगा।

लेकिन यथार्थ में यह संभव नहीं हो पाता। ऐसे में सर्वश्रेष्ठ उपाय है छोटी-छोटी यात्राओं का चयन करना। मसलन, हम अपने शहर से तीन-चार सौ किलोमीटर के दायरे की जगह को चुन सकते हैं। अगर हम आर्थिक रूप से अधिक व्यय नहीं चाहते, तो ट्रेन या बस से जा सकते हैं। पर्यटन कंपनियों या समूहों की ओर से चलाई जानी वाली छोटी-छोटी यात्राओं के पैकेज भी ले सकते हैं, ताकि बाकी चीजों को लेकर निश्चिंत रहा जा सके। बाहर का ठहराव एक या दो रातों का भी रखा जा सकता है।

इस सबसे घर से निकलते वक्त हमें एक मनोवैज्ञानिक फायदा मिल सकता है कि दिमाग में यह राहत रहेगी कि कल या परसों तो घर वापस आ ही जाएंगे। छोटी यात्रा झट से संपन्न भी हो जाती है। इसमें कामकाजी लोगों को अलग से ज्यादा छुट्टी लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। यात्रा की दिशा हम अपनी चाह के आधार पर तय कर सकते हैं। अगर हमारी रुचि धार्मिक स्थानों में हो तो धार्मिक, अगर प्राकृतिक सौंदर्य अधिक आकर्षित करता हो तो इससे संबंधित जगहों पर जा सकते हैं।

जगह हमारे मन के अनुकूल हो तो यात्रा के सफल होने की संभावना ज्यादा होती है। यों जगहों के बारे में थोड़ी जानकारी हासिल कर लेना बेहतर रहता है। घूमने और खाने-ठहरने की जगहों के बारे में पहले हासिल जानकारी से वक्त का सदुपयोग किया जा सकता है। एक अन्य जरूरी पहलू ध्यान रखने का यह होता है कि घर से बाहर निकलते वक्त असुविधाओं को स्वाभाविक मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए। स्वीकार भाव से कहीं जाया जाए तो असुविधाएं भी एक विशेष अनुभव दे सकती हैं।

यों छोटी यात्रा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अगर हमें वह जगह अच्छी नहीं लगी, तो निकट होने से यह लगेगा कि कोई बात नहीं, कल तो घर पहुंच ही जाएंगे। पास होने से हम तय वक्त से पहले भी घर पहुंच सकते हैं। छोटी यात्राएं हमारी बड़ी यात्राओं की भूमिका बना सकती है। दरअसल, यात्राएं हमारे जीवन में तब बदलाव लाती हैं, जब हम अपने कुएं से निकलकर बाहर झांकते हैं।

एक नई तरोताजा आबोहवा से हमारे जीवन में निश्चित तौर से बदलाव आता है। यात्रा में कुछ दिन जब घर से बाहर रहते हैं तो हम एक नई दुनिया देखते हैं। बाहर निकलकर लगता है कि दुनिया बहुत बड़ी है। सबके अपने दुख-सुख है। जीवन के इस पहलू के निरीक्षण से हम मानसिक रूप से सबल बनते हैं। बस जरूरत है कि अपने भीतर की यात्राओं से इतर कभी बाहरी दुनिया की भी यात्रा की जाए।

जिस दिन मनुष्य सरल बन जाएगा उसे प्रेम करना आ जाएगा

जिस दिन मनुष्य सरल बन जाएगा उसे प्रेम करना आ जाएगा

जिस प्रकार स्वस्थ रहना, सुखी रहना और आनंदित रहना, मनुष्य की चाहत है, उसी प्रकार प्रेम करना, प्रेम का अनुभव करना, अपने जीवन को प्रेममय बनाना अचेतन लाभ और हानि मनुष्य का कर्तव्य है। दरअसल अप्रेम एक बीमारी है, उसी प्रकार अपने स्वभाव धर्म से गिर जाना भी बीमारी का लक्षण है।
इस दुनिया में प्रेम के सिवाय और कुछ है ही नहीं। जब नदी सागर से प्रेम करती हो, भंवरे फूल से प्रेम करते हों, चांद, सूरज, ग्रह, नक्षत्र हम सभी से प्रेम करते हुए हमें जीवनदान देते हैं, तो ऐसा मान लेना चाहिए कि प्रकृति में प्रेम के सिवाय और कुछ नहीं है। ईष्र्या, द्वेष, घृणा, हिंसा और क्रोध इन सभी को विकार कहा गया है। इनके जीवन में आते ही मनुष्य की स्वाभाविक आकृति विकृत हो जाती है। इसलिए जब कभी हम अप्रेम की बात सोचते हैं, तो उसमें हमारा अपना स्वरूप नष्ट हो जाता है। हमारा अपना स्वरूप है, प्रेम शालीनता और आत्मीयता का प्रतीक है। विज्ञान में चेतन मन का महत्व माना गया है, लेकिन प्रेम अचेतन मन को स्वीकार करता है। जहां केवल सरलता हो। प्रेम कभी भी टेढ़े-मेढ़े रास्ते से नहीं चलता। प्रेम है, तो है। इसलिए प्रेम की परिभाषा नहीं होती। जिस दिन मनुष्य सरल बन जाएगा, उसे प्रेम करना आ जाएगा। उसी सरलता की बात कह रहा हूं। सच पूछा जाए, तो मनुष्य स्वयं ही सरल बनकर जीना चाहता है। विकारयुक्त जीवन किसी को पसंद नहीं है, लेकिन हमारे चारों ओर जो परिस्थितियां बनती हैं, उनसे हम प्रभावित होते हैं और अप्रेम और घृणा की भाषा बोलने लगते हैं। इसमें केवल हमारा दोष है।
दूसरे लोग कहते हैं, सबसे प्यार करो। यह कोई नहीं कहता कि पहले स्वयं से प्यार करना सीखिए, पहले स्वयं पर प्रयोग करें, आपको प्रेम करना आ जाएगा। अभी आप प्रेम करने की विधि भूल चुके हैं और कहीं-न-कहीं आप स्वयं को भूल चुके हैं। इसलिए पहले स्वयं से प्रेम करें, आपका यही प्रेम बहकर चारों ओर फैल जाएगा। इसे बहने दें। प्रेम के संदर्भ में यह बात महत्वपूर्ण है कि प्रेम बेशर्त होता है। जहां पर शर्त होगी, वहां प्रेम नहींहोगा। वस्तुत: प्रेम व्यवसाय या कारोबार नहींहै, जो लाभ-हानि के गणित से संचालित होता हो। जहां गणित है, वहां प्रेम हो ही नहींसकता। प्रेम देना चाहता है, लेना नहीं। मां का बेटे से जो प्रेम होता है, वह नि:स्वार्थ होता है। पति और पत्नी के संबंधों की बुनियाद भी प्रेम पर आधारित होती है, लेकिन जब दोनों के मध्य प्रेम के नाम पर दुनियादारी का गणित शुरू हो जाता है, तभी उनके रिश्तों में दरार पड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

विलोम शब्द

Mrs. Shilpi Nagpal is a post-graduate in Chemistry and an experienced tutor who has been teaching students since 2007. She specialises in tutoring science subjects for students in grades 6-12. Mrs. Nagpal has a proven track record of success, and her students have consistently achieved better grades and improved test scores. She is articulate, knowledgeable and her passion for teaching shines through in her work with students.

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