अनुबंध मात्रा

MSP को न्यूनतम मूल्य में बदलने और अनुबंध खेती निकाय गठित करने से खत्म हो सकता है किसानों का प्रदर्शन: SBI रिसर्च
अनाज खरीद की ऐतिहासिक प्रवृत्ति को देखा जाए तो कुल गेहूं उत्पादन का केवल 25 से 35 प्रतिशत की ही खरीदी होती रही है।
Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: December 22, 2020 8:36 IST
Photo:PTI
Convert MSP into floor price, set up contract farming body to resolve new farm laws impasse
नई दिल्ली। राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) पोर्टल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था को नीलामी के लिए न्यूनतम मूल्य में बदलने और अनुबंध खेती संस्थान सृजित करने से तीन नए कृषि कानूनों को लेकर जारी मौजूदा गतिरोध दूर हो सकता है। एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट में यह कह गया है। किसान तीनों नए कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि किसान कीमत गारंटी के रूप में एमएसपी की मांग कर रहे हैं। इसकी जगह सरकार न्यूनतम पांच साल के लिए मात्रा गारंटी उपबंध जोड़ सकती है। इसके तहत सूखा और बाढ़ जैसी अपवाद वाली स्थिति में सुरक्षा उपाय करते हुए प्रतिशत के रूप में फसल उत्पादन का एक हिस्सा खरीदने की गारंटी दी जा सकती है, जो कम-से-कम पिछले साल के प्रतिशत के बराबर हो।
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रिपोर्ट अनुबंध मात्रा के अनुसार यह काफी हद तक किसानों की आशंकाओं को दूर कर सकता है। इसमें कहा गया है कि अनाज खरीद की ऐतिहासिक प्रवृत्ति को देखा जाए तो कुल गेहूं उत्पादन का केवल 25 से 35 प्रतिशत की ही खरीदी होती रही है। इसमें सर्वाधिक खरीद पंजाब और हरियाणा में होती है। वहीं चावल के मामले में हिस्सेदारी 30 से 40 प्रतिशत है। इसमें सर्वाधिक खरीद तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा और केरल से होती है।
समस्या का नहीं होगा पूरी तरह समाधान
हालांकि, रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि ई-नाम पोर्टल पर नीलामी में एमएसपी को न्यूनतम मूल्य में तब्दील करने से समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं होगा क्योंकि मौजूदा आंकड़ा बताता है कि ई-नाम मंडियों में उड़द को छोड़कर अनुबंध मात्रा सभी जिंसों के मामले में औसत मॉडल कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है। तीसरा सुझाव एपीएमसी बाजार के बुनियादी ढांचा को मजबूत बनाने को लेकर है। सरकारी आंकड़े के अनुसार अनाज के लिए मौद्रिक नुकसान करीब 27,000 करोड़ रुपये है। इसका कारण फसल कटाई और उसके बाद होने वाला सालाना नुकसान है। तिलहन और दलहन के मामले में यह क्रमश: 10,000 करोड़ रुपये और 5,000 करोड़ रुपये है।
थाईलैंड में 1990 से हो रही है अनुबंध पर खेती
रिपोर्ट में अनुबंध खेती संस्थान के गठन का सुझाव दिया गया है, जिसका मुख्य काम व्यवस्था के तहत सामने आई कीमतों पर नजर रखना होगा। इसमें कहा गया है कि ठेका खेती कई देशों में बड़े पैमाने पर जारी है क्योंकि यह उत्पादकों को बाजार और कीमत स्थिरता के साथ आपूर्ति श्रृंखला तक पहुंच उपलब्ध कराती है। उदाहरण के लिए थाईलैंड में यह 1990 के दशक से जारी है। इससे किसानों को बाजार को लेकर 52 प्रतिशत और कीमत के मामले में 46 प्रतिशत तक स्थिरता मिलती अनुबंध मात्रा है। इसको देखते हुए किसान ठेका खेती की ओर आकर्षित होते हैं। इसी प्रकार का संस्थान भारत में बनाया जाना चाहिए। क्योंकि छोटे एवं सीमांत किसानों के पास बड़े खरीदारों से निपटने को लेकर उपाय होने चाहिए। वैश्विक स्तर पर उन देशों में ठेका खेती टिक नहीं पाई जहां बड़ी कंपनियों ने पहले छोटे उत्पादकों को आकर्षित किया लेकिन बाद में उदारता नहीं दिखाई और कड़ी शर्तें लगाई।
किसान क्रेडिट कार्ड के नियमों पर भी हो विचार
रिपोर्ट में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) नियमों पर भी विचार किए जाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया अनुबंध मात्रा है कि यह बैंकों के लिए अकुशल कृषि पोर्टफोलियो बन गया है। सरकार ने हाल ही में तीन किसान कानूनों को लागू किया, जिसका मकसद उन तरीकों में बदलाव लाना है जिससे कृषि उपज का विपणन होता है, बेचा जाता है और भंडारण किया जाता है। सरकार हर साल 23 फसलों के लिए एमएसपी घोषित करती है।
राजनीति से प्रेरित है आंदोलन
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि किसानों का आंदोलन एमसपी व्यवस्था समाप्त होने की आशंका को लेकर नहीं है बल्कि इसमें राजनीतिक हित जुड़े हैं। क्योंकि कुछ राज्य मंडी कर और शुल्क (पंजाब में 8.5 प्रतिशत से लेकर कुछ राज्यों में एक प्रतिशत से कम) के रूप में राजस्व में कमी को लेकर चिंतित हैं। पंजाब को सालाना इन शुल्कों से 3,500 करोड़ रुपये प्राप्त होते हैं।
पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा बढ़ी, चीनी मिलों और किसानों को होगा फायदा
एथनॉल अनुबंध मात्रा सबसे अच्छा ऑक्सीजन वाला माना जाता है. अतिरिक्त ऑक्सीजन वाहन के इंजन के भीतर पेट्रोल के अधिक कुशलता से जलने में संतुलन पैदा करने में मदद करता है.
2018- 19 में रिकॉर्ड 23.7 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किये जाने के साथ ही समाप्त वित्तवर्ष में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण की मात्रा 7.2 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है.
वित्त वर्ष 2018- 19 में रिकॉर्ड 23.7 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किये जाने के साथ ही समाप्त वित्तवर्ष में पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण की मात्रा 7.2 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है. चीनी उद्योगों के पमुख संगठन भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने यह जानकारी दी है. इस्मा ने कहा कि इससे पहले विपणन वर्ष 2017-18 (दिसंबर से नवंबर) में 150 करोड़ रुपये के गन्ना रस की आपूर्ति के बीच एथनॉल सम्मिश्रण की मात्रा 4.22 प्रतिशत थी.
इस्मा ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर पूर्वी राज्यों और द्वीप क्षेत्रों को छोड़कर देश में पेट्राल में 10 प्रतिशत तक मिश्रण के लिए 330 करोड़ लीटर एथनॉल की आवश्यकता होगी. इसके मुकाबले 2018-19 के लिए 237 करोड़ लीटर एथनॉल आपूर्ति के अनुबंध किए गए हैं. इस्मा ने कहा कि पिछले साल के 160 करोड़ लीटर के आंकड़े को पीछे छोड़ते हुए यह अब तक का सबसे बड़ा आपूर्ति अनुबंध है.
इस्मा ने कहा कि अगर चालू विपणन वर्ष में पूरी 237 करोड़ लीटर को सफलतापूर्वक मिश्रित किया जाता है, तो इस पर्यावरण-अनुकूल जैव- एथनॉल द्वारा लगभग 7.2 प्रतिशत पेट्रोल की खपत का विकल्प उपलब्ध हो जायेगा. नई जैव ईंधन नीति 2018 में वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण का स्तर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. सरकार वर्ष 2022 तक पेट्रोल के साथ 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने का पहला पड़ाव हासिल करने का लक्ष्य बना रही है.
इस नीति में देश में एथनॉल बनाने के लिए सीरे के अलावा अन्य सामग्रियों का उपयोग करने की भी अनुमति है. इसके तहत गन्ने का रस, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न, सड़े हुए आलू, मक्का, अधिशेष खाद्यान्न तथा अन्य वस्तुओं को शामिल किया गया है.
इस्मा ने कहा, "एथनॉल ऑक्सीजन समृद्ध है और इसलिए, इसे दुनिया में सबसे अच्छा ऑक्सीजन वाला माना जाता है. अतिरिक्त ऑक्सीजन वाहन के इंजन के भीतर पेट्रोल के अधिक कुशलता से जलने में संतुलन पैदा करने में मदद करता है, जिससे वाहनों का उत्सर्जन कम होता है और जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम होता है. इस प्रकार, एथनॉल हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करता है.
दागी राइस मिल फर्म से हुआ अनुबंध
अफसरों की लापरवाही से विभाग की छवि खराब हो रही है। दागी राइस अनुबंध मात्रा मिलर्स से धान की कुटाई का अनुबंध किए जाने पर उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़ा हो रहा है। बीते साल धान की कुटाई करने के बाद काफी मात्रा में चावल मिल संचालक हजम कर गया था। इस बार उसको फिर से कुटाई करने की जिम्मेदारी दी गई। इससे अनुबंध मात्रा यह साबित हो रहा है कि बिना जांच के ही मिलर्स का अनुबंध हो रहा है। हालांकि मामला प्रकाश में आने के बाद अफसरों ने उसके द्वारा कुटाई करने पर रोक लगा दिया गया है।
संवाद सूत्र, प्रतापगढ़ : अफसरों की लापरवाही से विभाग की छवि खराब हो रही है। दागी राइस मिलर्स से धान की कुटाई का अनुबंध किए जाने पर उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़ा हो रहा है। बीते साल धान की कुटाई करने के बाद काफी मात्रा में चावल मिल संचालक हजम कर गया था। इस बार उसको फिर से कुटाई करने की जिम्मेदारी दी गई। इससे यह साबित हो रहा है कि बिना जांच के ही मिलर्स का अनुबंध हो रहा है। हालांकि मामला प्रकाश में आने के बाद अफसरों ने उसके द्वारा कुटाई करने पर रोक लगा दिया गया है।
जिले में 15 अक्टूबर से धान की खरीद 51 क्रय केंद्रों पर हो रही है। अभी तक करीब 25 हजार टन से अधिक धान की खरीद हो चुकी है। धान की कुटाई के लिए करीब 20 हजार टन धान राइस मिलर्स को दिया गया है। करीब 30 राइस मिलर्स के फर्म का अनुबंध हुआ है। जिले के संग्रामगढ़ व अन्य ब्लाक के कुल तीन ऐसे मिलर्स हैं, जो पिछले साल धान की कुटाई करने में गड़बड़झाला किए थे। काफी मात्रा में चावल एफसीआइ को नहीं दिए थे। ऐसे मिल संचालक को इस बार फिर से धान की कुटाई करने की जिम्मेदारी दे दी गई है। डिप्टी आरएमओ अजीत कुमार त्रिपाठी ने बताया कि संग्रामगढ़ के राइस मिल संचालक को धान की कुटाई करने पर रोक लगाया गया है। उनको धान नहीं दिया जा रहा है।
दो करोड़ से अधिक का चावल है फंसा
बीते साल 2012 से 2018 तक के बीच में अभी तक करीब दो करोड़ रुपये का चावल राइस मिल संचालक हजम किए हैं। नोटिस व आरसी जारी होने के बाद जब धान की रिकवरी नहीं हुई तो विभाग ने वसूली की जिम्मेदारी तहसील प्रशासन को दे दी। करोड़ों रुपये का चावल हजम करने के बाद भी ऐसे राइस मिलर्स को फिर से अनुबंध किए जाने पर बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है।
सख्ती के बाद वापस किए थे एक करोड़ का चावल
करोड़ों का चावल हजम करने अनुबंध मात्रा के बाद जिला प्रशासन ने जब राइस मिल संचालक पर नकेल कसना शुरू किए तो उनमें खलबली मच गई। कार्रवाई से बचने के लिए आधा दर्जन से अधिक संचालक करीब एक करोड़ रुपये का चावल वापस कर दिए। अभी भी करीब दो करोड़ का चावल फंसा हुआ है। आठ साल का समय बीतने के बाद भी वसूली नहीं हुई।
अनुबंध कृषि : किसान और व्यापारी के बीच विवादों के समाधान के लिए सरकार ने जारी किए नियम
जानें, क्या है कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग से जुड़े इन नियमों में और इससे किसानों को क्या होगा फायदा
अनुबंध कृषि (Contract Farming) से जुड़े विवादों के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने नियम ओर प्रक्रिया जारी की है। अधिसूचित नियमों के अनुसार, सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) दोनों पक्षों से समान प्रतिनिधित्व वाले सुलह बोर्ड का गठन करके विवाद को हल किया जाएगा। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार एक अधिकारी ने बताया कि सुलह बोर्ड की नियुक्ति की तारीख से 30 दिनों के भीतर सुलह की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए। यदि सुलह बोर्ड विवाद को हल करने में विफल रहता है, तो या तो पार्टी उप-विभागीय प्राधिकरण से संपर्क कर सकती है, जिसे उचित सुनवाई के बाद आवेदन दाखिल करने के 30 दिनों के भीतर मामले का फैसला करना होगा।
अधिकारी ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जहां किसानों की भूमि एक से अधिक सब डिवीजन में आती है। अधिकारी ने बताया, ऐसे मामलों में, भूमि के सबसे बड़े हिस्से पर अधिकार क्षेत्र मजिस्ट्रेट के पास निर्णय लेने का अधिकार होगा। अधिकारी ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में शामिल पक्षों को समीक्षा के लिए उच्च प्राधिकरण के पास जाने का अधिकार होगा। अधिकारी ने कहा- संबंधित जिले के कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित अतिरिक्त कलेक्टर अपीलीय प्राधिकारी होंगे।
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किसान 30 दिनों के भीतर कर सकते हैं अपील दायर
अनुबंध कृषि (Contract Farming) नियमों को लेकर अधिकारी ने कहा कि इस तरह के आदेश के तीस दिनों के भीतर, किसान खुद जाकर या इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील दायर कर सकते हैं। संबंधित पक्षों को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद, प्राधिकरण को ऐसी अपील दायर करने की तारीख से 30 दिनों के भीतर मामले का निपटान करना होगा। अधिकारी ने कहा कि अपीलीय अधिकारी द्वारा पारित आदेश में सिविल कोर्ट के निर्णय का बल होगा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में किसान इस कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य किसानों को उनकी फसल खराब होने पर सुनिश्चित मूल्य की गारंटी देना है।
क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming) और इसे लेेकर किसान में क्यूं बना हुआ है डर
अनुबंध पर खेती का मतलब ये है कि अनुबंध मात्रा किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए। कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। इसमें कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा। इसमें खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं। कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है। हालांकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
बता दें कि गुजरात में बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई राज्यों में अनुबंध पर खेती की जा रही है और इस खेती के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। इसके बावजूद देश के कई राज्यों में किसान इसका विरोध कर रहे हैं, किसानों को डर है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग कानून किसी भी विवाद के मामले में बड़े कॉर्पोरेट और कंपनियों का पक्ष लेंगे। इस आशंका को खारिज करते हुए, अधिकारी ने कहा कि किसानों के हित में कृषि कानूनों का गठन किया गया है। अधिकारी ने कहा कि एक समझौते में प्रवेश करने के बाद भी, किसानों को अपनी पसंद के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त करने का विकल्प होगा। हालांकि, अन्य पक्ष-किसी भी कंपनी या प्रोसेसर-को समझौते के प्रावधानों का पालन करना होगा। वे दायित्वों को पूरा किए बिना कॉन्ट्रैक्ट से बाहर नहीं निकल सकते है।
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