अंतिम गाइड

वाइफ एलिसिया ने भी लिखा था सिद्धांत
हाल ही सिद्धांत वीर सूर्यवंशी की पत्नी एलिसिया ने भी एक पोस्ट लिखा था, जिसमें उन्होंने साथ बिताए पलों को याद करते हुए लिखा था कि वह सिद्धांत के साथ बच्ची बन गई थीं। दीजा, सिद्धांत की एक्स-वाइफ इरा की बेटी हैं। सिद्धांत की दो शादियां हुई थीं। सिद्धांत वीर सूर्यवंशी टीवी के मशहूर एक्टर्स में शुमार रहे। उन्होंने 'कुसुम', 'कसौटी जिंदगी की', 'क्यों रिश्तों में कट्टी बट्टी और 'जिद्दी दिल माने ना' जैसे शोज में काम किया।
अंतिम गाइड
वाराणसी। एक महीने तक चलने वाले काशी-तमिल संगमम् की 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुभारंभ करेंगे। इसकी तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय शिक्षा धर्मेंद्र प्रधान गुरुवार की रात को ही यहां पहुंच गए।
वह शुक्रवार को आयोजन की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए सबसे पहले हनुमान घाट पहुंचे। यहां कांची कामकोटी मठ में वे स्वामी सुब्रहम्ण्यम भारती से मिले।
हनुमान घाट पर तमिलनाडु से आने वाले पहले दिन 216 अतिथि दूसरे दिन जाएंगे। यहां कांची कामकोटी मठ में वे स्वामी सुब्रहम्ण्यम भारती से मिलेंगे। यहां पर अतिथि गंगा स्नान भी करेंगे। इसके बाद उन्हें रविदास घाट से क्रूज से काशी के घाटों को देखना है। इसके बाद धर्मेंद्र प्रधान बीएचयू के एम्फीथिएटर पहुंचेंगे जहां पूरे माह कार्यक्रम चलना है।
वहां दो घंटे रुककर उद्घाटन स्थल, मेला, आने वाले अतिथियों के रुकने के स्थान, उनके दर्शन-पूजन आदि की व्यवस्था देखेंगे। आज रात को डेढ़ बजे तमिलनाडु से आने वाले 216 अतिथियों का दल बनारस स्टेशन पहुंचेगा।
पहले दिन के दल में तमिलनाडू के आठ मठों में धमार्चार्य भी रहेंगे। ये धमार्चार्य बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचेंगे।
उनका स्टेशन पर पुष्प वर्षा और डमरू वादन से स्वागत किया जाएगा। स्वागत के लिए कई स्थानीय मंत्री आदि भी मौजूद रहेंगे।
तमिल संगमम में आने वाले अतिथियों को काशी भ्रमण में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसके लिए 60 गाइडों को तैयार किया जाएगा। पर्यटन विभाग की ओर से इन गाइडों को बकायदा तमिल का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
पर्यटन स्थलों को लेकर सामान्य जानकारी व आमतौर पर प्रयोग में आने वाले शब्दों की समझ पर फोकस होगा। प्रयास है कि गाइडों को तमिल की इतनी समझ हो जिसे वह कम से कम टूटी-फूटी भाषा में बोल सकें।
बनारस में तमिल बोलने व समझने वाले लोगों का सहयोग लिया जाएगा। इस बारे में गाइडों को जानकारी दी जा रही है। संगमम का मुख्य आयोजन बीएचयू के एम्फी थिएटर हो रहा है।
प्रधानमंत्री के 19 नवंबर को उद्घाटन करेंगे। इसके बाद 20 नवंबर कोई भी आम नागरिक वहां चलने वाली प्रदर्शनी और शाम को होने वाले कार्यक्रमों को देखने के लिए जा सकता है। सबके लिए आयोजन स्थल खुला रहेगा।
Siddhaanth Vir Daughter: सिद्धांत को यादकर भावुक हुईं बेटी- पापा मैं सुन्न हो गई हूं, नहीं कर पाऊंगी वादे पूरे
टीवी एक्टर सिद्धांत वीर सूर्यवंशी का 11 नवंबर को कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया। वह जिम में थे। बेटी दीजा ने सिद्धांत का अंतिम संस्कार किया और अब उन्होंने एक अंतिम गाइड भावुक कर देने वाला पोस्ट लिखा है। दीजा ने बचपन से लेकर अब तक की पापा संग मीठी यादें शेयर की हैं।
सिद्धांत वीर सूर्यवंशी और उनकी बेटी दीजा
हाइलाइट्स
- सिद्धांत वीर सूर्यवंशी की बेटी दीजा का भावुक पोस्ट
- दीजा ने कहा-मैं सुन्न पड़ गई, बहुत याद आओगे पापा
- सिद्धांत का 11 नवंबर को कार्डियक अरेस्ट से निधन
'वादे पूरे नहीं कर पाऊंगी, मैं सुन्न पड़ गई'
दीजा ने आगे लिखा है, 'आपने मुझे इस बात का अहसास करवाया कि मैं जिंदगी में कुछ भी कर सकती हूं। मुझमें सबकुछ करने की काबिलियत है। बहुत सारे ऐसे वादे हैं जो मैंने भविष्य को लेकर आपसे किए थे। पर अब उन्हें पूरे नहीं कर पाऊंगी। लेकिन एक बात जानती हूं कि मैं अपनी कड़ी मेहनत करना बंद नहीं करूंगी मुझे आपको गर्व भी तो महसूस करवाना है। जब भी हमारी बात होती थी तो आप मुझे यह बताना कभी नहीं भूले कि आपको मुझ पर कितना गर्व महसूस होता है। यह बताना भी नहीं भूलते थे कि मैं छोटा या बड़ा, जो कुछ भी करती हूं उससे आपको कितनी खुशी मिलती है। मैं जानती हूं कि मेरी सफलताओं पर मुस्कुरा रहे होगे। भले ही आप मेरे पास यहां नहीं हैं, पर मुस्कुराते हुए कह रहे होगे- मेरी गुंडी रानी कितनी बड़ी हो गई। पापू का दिल गर्व से भर गया है। आई लव यू मेरी गुगली।'
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'आपको बहुत मिस करूंगी पापा, मुझे गाइड करना'
दीजा यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने अपने इस लंबे-चौड़े पोस्ट में और जो बातें लिखीं, वो किसी को भी रुला दें। दीजा ने बताया कि किस तरह पापा कहते थे कि वह 60 साल के भी हो जाएंगे तो बेहद हॉट लगेंगे। दीजा ने लिखा, 'मैं तब आपकी बातों पर हंसती थी, पर अब सोचती हूं कि काश इस विश को पूरा करने के लिए आप आज यहां होते। पापा मैं आपको मिस करती हूं। प्लीज आप खुश रहना और मुझे गाइड करते रहना क्योंकि मुझे आपकी हमेशा जरूरत पड़ेगी।'
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वाइफ एलिसिया ने भी लिखा था सिद्धांत
हाल ही सिद्धांत वीर सूर्यवंशी की पत्नी एलिसिया ने भी एक पोस्ट लिखा था, जिसमें उन्होंने साथ बिताए पलों को याद करते हुए लिखा था कि वह सिद्धांत के साथ बच्ची बन गई थीं। दीजा, सिद्धांत अंतिम गाइड की एक्स-वाइफ इरा की बेटी हैं। सिद्धांत की दो शादियां हुई थीं। सिद्धांत वीर सूर्यवंशी टीवी के मशहूर एक्टर्स में शुमार रहे। उन्होंने 'कुसुम', 'कसौटी जिंदगी की', 'क्यों रिश्तों में कट्टी बट्टी अंतिम गाइड और 'जिद्दी दिल माने ना' जैसे शोज में काम किया।
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जब भारतीय फ़ुटबॉल टीम को मिला था वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने का मौक़ा, लेकिन क्यों नहीं खेली टीम
क़तर में अंतिम गाइड 20 नवंबर से फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप शुरू होने जा रहा है.
दुनिया भर में फ़ुटबॉल खेलने वाली 32 सर्वश्रेष्ठ टीमों के बीच इस घमासान के बाद यह तय होगा कि फ़ुटबॉल की दुनिया का बादशाह कौन है.
पूरे विश्व में फ़ुटबॉल के खेल को संचालित करने वाली संस्था फ़ीफ़ा के मुताबिक़ 20 नवंबर से शुरू हो कर 18 दिसंबर तक चलने वाले इस वर्ल्ड कप को क़रीब पाँच अरब लोग देखेंगे.
ये 2018 के वर्ल्ड कप के चार अरब की दर्शकों की तुलना में एक अरब ज़्यादा होगा.
क़तर में होने वाला वर्ल्ड कप, कुल मिलाकर 22वाँ वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल का आयोजन है. लेकिन भारतीय खेल प्रेमियों के लिए इसमें कोई उत्साह की बात नहीं है, क्योंकि अब तक भारत इस टूर्नामेंट में एक बार भी हिस्सा नहीं ले पाया है.
भारत फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप में कभी हिस्सा नहीं ले पाया हो, लेकिन आज की पीढ़ी के कम ही खेल प्रेमियों को मालूम होगा कि एक मौक़ा ऐसा भी आया था, जब भारत वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल में हिस्सा ले सकता था.
यक़ीन करना भले मुश्किल हो लेकिन हक़ीक़त यही है कि भारतीय फ़ुटबॉल टीम आज से 72 साल पहले यानी 1950 में ब्राज़ील में खेले जाने वाले वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने वाली थी, लेकिन भारतीय टीम इसमें हिस्सा नहीं ले सकी.
कैसे मिला था भारत को मौक़ा
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के चलते 1942 और 1946 में वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल का आयोजन नहीं हो सका था.
1950 में 12 साल के इंतज़ार के बाद वर्ल्ड कप का आयोजन होने वाला था. ब्राज़ील में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए महज 33 देशों ने क्वालिफ़ाइंग राउंड में खेलने पर सहमति जताई थी.
क्वालिफ़ाइंग ग्रुप 10 में भारत को बर्मा (म्यांमार) और फिलीपींस के साथ जगह मिली थी. लेकिन बर्मा और फिलीपींस ने क्वालिफाईंग राउंड से अपना नाम वापस ले लिया था.
यानी भारत बिना खेले ही वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफ़ाई कर गया था. इतिहास बहुत दूर नहीं था. भारतीय टीम को पहली बार वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल में अपना करतब दिखाने के लिए टिकट मिल चुका था.
1950 के वर्ल्ड कप में भारत का ग्रुप
1950 के वर्ल्ड कप फ़ुटबॉल का जब फ़ाइनल राउंड ड्रॉ तैयार हुआ, तो भारत को पूल -3 में स्वीडन, इटली और पराग्वे के साथ जगह मिली.
अगर भारत इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेता, तो उसका प्रदर्शन कैसा होता?
इमेज स्रोत, PABLO PORCIUNCULA/Getty Images
इस बारे में दिवंगत फुटबॉल पत्रकार नोवी कपाड़िया ने वर्ल्ड कप फुटबॉल की गाइड बुक में लिखा है, "उस दौर में पराग्वे की टीम बहुत मज़बूत नहीं थी. इटली ने अपने आठ मुख्य खिलाड़ियों को टीम में अनुशासनहीनता के चलते शामिल नहीं किया था. टीम इतने बुरे हाल में थी कि ब्राज़ील पहुँचने के बाद टीम के कोच विटोरियो पोज्ज़ो ने इस्तीफ़ा दे दिया था. स्वीडन की टीम भारत के मुक़ाबले बहुत अच्छी स्थिति में थी. इस लिहाज से देखें तो भारत ग्रुप में दूसरे नंबर पर हो सकता था लेकिन टीम को बेहतरीन एक्सपोज़र मिलता."
1950 में क्या था भारतीय फ़ुटबॉल का हाल
1950 में भारतीय फ़ुटबॉल का बहुत ज़्यादा इंटरनेशनल एक्सपोज़र नहीं था लेकिन टीम की प्रतिष्ठा अच्छा गेम खेलने वाले मुल्क के तौर पर थी.
इसकी झलक भारतीय टीम ने 1948 के लंदन ओलंपिक खेलों में भी दिखाई थी. फ़्रांस जैसी मज़बूत टीम से भारत महज 1-2 के अंतर से हारा था.
उस दौर में टीम के फ़ॉरवर्ड और ड्रिब्लर के खेल की बदौलत भारतीय फ़ुटबॉल अपनी पहचान बनाने में जुटा था.
अहमद ख़ान, एस रमन, एमए सत्तार और एस मेवालाल जैसे खिलाड़ी के लोग फ़ैंस थे.
लंदन ओलंपिक में भारत के ये तमाम खिलाड़ी नंगे पाँव फुटबॉल खेलने उतरे थे.
हालाँकि राइट बैक पर खेलने वाले ताज मोहम्मद बूट पहन कर खेले थे.
ब्राज़ील वर्ल्ड कप में क्यों नहीं हिस्सा ले सकी टीम
1950 के वर्ल्ड कप में भारतीय फ़ुटबॉल टीम ने आख़िर क्यों नहीं हिस्सा लिया, इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता है.
हालाँकि ऑल इंडिया फ़ुटबॉल फ़ेडरेशन (एआईएफ़एफ़) ने जो अधिकारिक वजह बताई थी, उसके मुताबिक़, टीम चयन में असहमति और अभ्यास के लिए पर्याप्त समय नहीं होने के चलते टीम ने नाम वापस लिया था.
लेकिन इसको लेकर सालों तक कई चर्चाएँ होती रही हैं, इनमें सबसे ज़्यादा चर्चा इस बात की हुई कि भारतीय खिलाड़ी नंगे पांव फ़ुटबॉल खेलना चाहते थे और फ़ीफ़ा को यह मंज़ूर नहीं था.
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1948 के लंदन ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली भारतीय फ़ुटबॉल टीम के दो खिलाड़ी एस महालाल और एस नंदी नंगे पांव अभ्यास करते हुए
लेकिन नोवी कपाड़िया के अलावा वरिष्ठ खेल पत्रकार जयदीप बसु की हाल में आई किताब भी इस वजह को बहुत विश्वसनीय नहीं मानती है.
जयदीप बसु की संपादित किताब 'बॉक्स टू बॉाक्स : 75 ईयर्स ऑफ़ द इंडियन फ़ुटबॉल टीम' में लिखा है, "फ़ीफ़ा के भारतीय खिलाड़ियों के नंगे पांव खेलने पर आपत्ति का कोई सवाल ही नहीं था."
लंदन ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले सात-आठ खिलाड़ियों के हवाले से जयदीप बसु ने लिखा है, "उस टीम में शामिल सात-आठ खिलाड़ियों के ट्रैवल बैग में स्पाइक बूट रखे हुए थे और ये खिलाड़ियों के लिए अपनी पसंद का मामला था."
दरअसल यह वह दौर था, जब फुटबॉल खिलाड़ी अपने पांव पर मोटी पट्टी बांध कर खेलना पसंद करते थे और 1954 तक यह चलन दुनिया के कई दूसरे देशों में भी मौजूद था.
बटुकेश्वर दत्त: जिन्हें आज़ाद भारत में न नौकरी मिली न ईलाज!
18 नवंबर 1910 को बंगाल के पूर्व वर्धमान के खंडागोश गांव में जन्मे बटुकेश्वर दत्त ने अपनी हाईस्कूल और कॉलेज की पढ़ाई कानपुर में की जहां उनकी मुलाकात उनके भावी साथियों और कामरेड्स चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह से हुई. यहीं से शुरू हुआ बटुकेश्वर दत्त का राजनीतिक सफ़र. वे ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ (Hindustan Socialist Republican Army) के सदस्य भी थे. हिन्दुस्तान उन्हें असेंबली बमकांड में भगत सिंह के सहयोगी के रूप में याद करता है.
सेंट्रल असेंबली में बमकांड
असेंबली में धमाका कर हुकूमत को चेताए जाने का प्रस्ताव भगत सिंह ने रखा. जब इस कार्य को अंजाम देने के लिए व्यक्तियों के चुनाव की बात आई, तो दत्त ने कुछ खिन्नता से कहा कि वह दल के पुराने सदस्य हैं और काकोरी के समय से ही दल से जुड़े हैं फिर भी उन्हें किसी बड़े एक्शन के लिए नहीं चुना गया है. उन्होंने यहां तक कहा कि यदि उन्हें यह अवसर नहीं दिया गया तो वह संगठन के साथ-साथ क्रांति पथ से ही नाता तोड़ लेंगे. केंद्रीय समिति ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के नाम पर मुहर लगा दी.
भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ (Public Safety Bill) और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ (Trade Dispute Bill) लाया जाने वाला था. इन दो बिल के विरोध में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली जैसी अति सुरक्षा वाली इमारत के अंदर चलते सत्र दो बम फेंक कर पर्चे फेंके. दोनों की गिरफ्तारी हुई. 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया.
यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया. उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई. इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी की हत्या कर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों ने लिया. इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी.
इस सजा के बाद भगत सिंह पर लाहौर षड़यंत्र का केस चला जिसमें उन पर लाहौर सुप्रिंटेंडेंट सांडर्स की हत्या का आरोप था. इस मामले में उन्होंने राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुनाई गई.
कालापानी की सजा
बटुकेश्वर दत्त को असेंबली बमकांड की सज़ा काटने के लिए उनकी कर्मभूमि से दूर कालापानी की सजा के लिए अंडमान की सेल्यूलर जेल भेज दिया गया. जेल की नारकीय परिस्थिती को देखते हुए दत्त ने अन्य साथी कैदियों के साथ बेहतर भोजन, बेहतर व्यवहार और अन्य सुविधाओं के लिए जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी. तमाम हथकंडे अपनाने के बाद अंततः अंग्रेजों को कैदियों के लिए बेहतर भोजन, अखबार और पत्रिकाओं इत्यादि की व्यवस्था करनी ही पड़ी.
1937 में ही उन्हें सेल्यूलर जेल से बिहार की पटना स्थिति जेल लाया गया और 1938 में रिहा कर दिया गया. दत्त कालापानी की सज़ा से अत्यंत कमज़ोर हो चले थे जिसके बावजूद भी वे 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हुए. जिसके बाद उन्हें फिर जेल में डाल दिया गया.
आज़ादी के बाद
आजादी के बाद दत्त को रिहाई मिली. लेकिन इतनी यातनाएं और कठोर सज़ा झेलने से वे गंभीर रूप से बीमार पड़ चुके थे.
बटुकेश्वर दत्त देश की आज़ादी देखने के लिए जिंदा बचे रहे लेकिन उनका उनका सारा जीवन निराशा में बीता. आज़ादी के बाद भी ज़िंदा बचे रहने के कारण ही शायद दत्त अपने देशवासियों द्वारा भूला दिए गए थे.
देश की आजादी और जेल से रिहाई के बाद दत्त पटना में रहने लगे. पटना में अपनी बस शुरू करने के विचार से जब वे बस का परमिट लेने की ख़ातिर पटना के कमिश्नर से मिलते हैं तो कमिश्नर द्वारा उनसे उनके बटुकेश्वर दत्त होने का प्रमाण मांगा गयाबटुकेश्वर जैसे क्रांतिकारी को आज़ादी के बाद ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए पटना के सड़कों पर सिगरेट की डीलरशिप करनी पड़ती है तो कभी बिस्कुट और डबलरोटी बनाने का काम करना पड़ता है. कभी एक मामूली टूरिस्ट गाइड बनकर गुज़र-बसर करनी पड़ती है. पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश बटुकेश्वर दत्त की पत्नी मिडिल स्कूल में नौकरी करती थीं जिससे उनका गुज़ारा हो पाया.
अंतिम समय
उनके 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, पर उनका ढंग से उपचार नहीं हो रहा था. इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है.
चमनलाल आजाद के मार्मिक लेकिन कडवे सच को बयां करने वाले लेख को पढ़ पंजाब सरकार ने अपने खर्चे पर दत्त का इलाज़ करवाने का प्रस्ताव दिया. तब बिहार सरकार ने ध्यान देकर मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज़ करवाना शुरू किया.
पर दत्त की हालात गंभीर हो चली थी. 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया. दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था, “मुझे स्वप्न में अंतिम गाइड भी ख्याल न था कि मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाउंगा.”
दत्त को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती किये जाने पर पता चला की उन्हें कैंसर है और उनकी जिंदगी के चंद दिन ही शेष बचे हैं.
यह खबर सुन भगत सिंह की मां विद्यावती देवी अपने पुत्र समान दत्त से मिलने दिल्ली आईं.
पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए. छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए. बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए.
20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त इस दुनिया से विदा हो गये. उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू अंतिम गाइड और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया.
अंतिम गाइड
आज से पर्यटकों के लिए खुला दुधवा रिजर्व पार्क
लखीमपुर खीरी, 15 नवंबर (आईएएनएस)। दुधवा टाइगर रिजर्व (डीटीआर) मंगलवार से फिर से पर्यटकों के लिए खुल गया।
लखीमपुर खीरी, 15 नवंबर (आईएएनएस)। दुधवा टाइगर रिजर्व (डीटीआर) मंगलवार से फिर से पर्यटकों के लिए खुल गया।
इस राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटन सीजन 15 नवंबर से शुरू अंतिम गाइड होता है और 15 जून को समाप्त होता है। इस अवधि के दौरान पर्यटक और वन्यजीव प्रेमी डीटीआर, किशनपुर अभ्यारण्य और कतर्निया घाट वन्यजीव अभ्यारण्य का भ्रमण कर सकते हैं।
डीटीआर के क्षेत्र निदेशक, संजय कुमार पाठक ने कहा, पर्यटकों को दुधवा सफारी का आनंद लेने के अलावा वहां के समृद्ध जंगली, जलीय और एवियन जीवन को देखने की अनुमति दी जाएगी। इस साल राइनो रिहैबिलिटेशन एरिया के अंदर हाथी की सवारी की भी अनुमति दी गई है।
वन, पर्यावरण एवं वन्यजीव राज्य मंत्री डॉ. अरुण कुमार दुधवा में पर्यटन सीजन का उद्घाटन करेंगे।
हालांकि यहां आने वाले पर्यटकों को पहले की तुलना में अधिक पैसे चुकाने होंग,े क्योंकि प्रवेश शुल्क, कुटीर, छात्रावास, वाहन और हाथी की सवारी शुल्क सहित सभी दरों को दोगुना और कुछ मामलों में तीन गुना कर दिया गया है।
पाठक ने कहा, 2010 में इन दरों को अंतिम बार संशोधित किया गया था।
उन्होंने बताया, दुधवा में अब वयस्क को 300 रुपये का प्रवेश शुल्क देना होगा, जबकि 5 से 12 वर्ष की आयु के बच्चों का प्रवेश शुल्क 150 रुपये होगा। स्कूल या कॉलेज द्वारा प्रायोजित छात्रों के लिए प्रवेश शुल्क 50 रुपये प्रति छात्र होगा।
सड़क शुल्क, वाहन प्रवेश शुल्क और वन मार्ग शुल्क को संशोधित कर कुल 600 रुपये कर दिया गया है, जबकि हिंदी या अंग्रेजी भाषी गाइड शुल्क को संशोधित कर 400 रुपये और द्विभाषी के लिए 500 रुपये अंतिम गाइड कर दिया गया है। इस सीजन से वाहन पाकिर्ंग शुल्क भी वसूला जाएगा। इसके तहत पर्यटकों को पाकिर्ंग स्लॉट की अपनी श्रेणी के अनुसार 100 रुपये से 500 रुपये के बीच शुल्क देना होगा।