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जगह रोक आदेश

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Shanghai Disney: चीन में फिर कोरोना का कहर! शंघाई के डिजनी रिजॉर्ट में लॉकडाउन, विजिटर्स के जगह छोड़ने पर रोक

चीन में एक बार फिर कोरोना का कहर देखने को मिल रहा है. शंघाई के डिजनी रिजॉर्ट को बंद कर दिया गया है और विजिटर्स के जगह छोड़ने पर रोक लगा दी गई है. देखिए पूरी खबर इस वीडियो में.

1 दिसंबर तक शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक, कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश

कलकत्ता उच्च न्यायायलय में विद्यालय सेवा आयोग को शुक्रवार को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने एक दिसंबर तक व्यावसायिक शिक्षा और शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति पर एक दिसंबर तक अंतरिम रोक लगा दी है.

1 दिसंबर तक शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक, कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने स्कूलों में व्यावसायिक और शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति पर अंतरिम रोक लगा दी. वर्तमान में, राज्य स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) 1 दिसंबर तक कोई भर्ती प्रक्रिया आयोजित नहीं कर पाएगा. जस्टिस बिस्वजीत बोस ने शुक्रवार को यह आदेश दिया. उधर, उच्च न्यायालय द्वारा गुरुवार को नाराजगी जताए जाने के बाद आयोग के वकील ने शुक्रवार को अदालत से कहा कि बर्खास्त किए गए शिक्षकों के लिए आयोग याचना नहीं करेगा.

उच्च न्यायालय ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को उन जगह रोक आदेश लोगों को नियुक्ति पत्र जारी करने से भी रोक दिया, जिन्हें व्यावसायिक शिक्षा और शारीरिक शिक्षा के लिए सिफारिश के पत्र पहले ही मिल चुके हैं. साथ ही उन्होंने रिक्ति पर राज्य की स्थिति जानने के लिए कहा और एक हलफनामा प्रस्तुत करने का आदेश दिया. यह शपथ पत्र 28 नवंबर तक जमा करना होगा. अगली सुनवाई 30 नवंबर को होगी.

हाईकोर्ट ने स्कूल सेवा आयोग को लगाई फटकार

इस बीच शुक्रवार को कोर्ट आयोग के वकील ने सूचित किया कि वे अतिरिक्त रिक्तियों पर निरस्त किये गये अभ्यर्थियों की नियुक्ति के आवेदन पत्र वापस ले लेंगे. आयोग के वकील ने कहा कि इस संबंध में आयोग के अध्यक्ष से लिखित निर्देश भी मिल चुके हैं. हाल ही में जगह रोक आदेश आयोग ने कोर्ट में चार नए हलफनामे दाखिल किए हैं. इनमें अनुरोध किया है कि जिन अभ्यर्थियों का नियोजन निरस्त कर दिया गया है, उन्हें उनके राज्य द्वारा सृजित अतिरिक्त रिक्तियों में नियुक्ति की अनुमति दी जाये. जस्टिस बसु ने गुरुवार को राज्य और आयोग की परस्पर विरोधी स्थिति पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने कहा कि आयोग के खिलाफ कार्रवाई की जानकारी राज्य शुक्रवार को दें. न्यायाधीश ने यह भी राय दी कि यदि राज्य और स्कूल सेवा आयोग के पद समान नहीं हैं, तो आयोग को भंग कर दिया जाना चाहिए.

स्कूलों में अंग्रेजी की पढ़ाई बंद करने पर जताई चिंता

याचिकाकर्ताओं के वकील विकास रंजन भट्टाचार्य ने शुक्रवार को अदालत में दावा किया कि राज्य को अतिरिक्त रिक्तियां सृजित करने का कोई अधिकार नहीं है. महाधिवक्ता सौमेंद्रनाथ मुखोपाध्याय ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यदि आवश्यक हो तो राज्य अतिरिक्त रिक्तियां दें. इस संदर्भ में रोष व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति बसु ने कहा, ”आप जो चाहें करें, मुझे केवल छात्रों की शिक्षा की चिंता है. विभिन्न राजनीतिक युगों में शिक्षा का ह्रास हुआ है. एक सरकार ने अंग्रेजी बंद कर दी है, यह बहुत बड़ी भूल थी.”

फिलहाल नहीं दी गई है नियुक्ति पत्र, एसएससी के वकील का खुलासा

सुनवाई में जज ने आयोग से पूछा, ”क्या सिफारिश पत्र सभी को दे दिया गया है?” व्यावसायिक शिक्षा में 585 रिक्तियों में से 514 को सिफारिश पत्र और शारीरिक शिक्षा में 824 रिक्तियों में से 766 को सिफारिश पत्र दिए गए हैं. न्यायाधीश ने पूछा कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने नियुक्ति पत्र दिया है या नहीं. जवाब में, मध्य शिक्षा मंडल के वकील ने कहा, ”नहीं, आपने मौखिक निर्देश देकर नियुक्ति पत्र जारी करने से जगह रोक आदेश इनकार कर दिया, इसलिए बोर्ड ने कोई नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया.”

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अक्टूबर माह में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जारी हुई थी अधिसूचना

बता दें कि साल 2016 में, एसएससी ने उच्च प्राथमिक में शिक्षकों की भर्ती के लिए एक अधिसूचना जारी की है. बाद में, जून 2017 में, परीक्षा केवल व्यावसायिक शिक्षा पर आयोजित की गई थी. साक्षात्कार (व्यक्तित्व परीक्षण) मार्च 2018 में आयोजित किया गया था. इस साल अक्टूबर में, एसएससी ने शारीरिक जगह रोक आदेश शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा में अतिरिक्त पदों के लिए शिक्षकों की भर्ती को अधिसूचित किया है. इसके बाद हाई कोर्ट में मामला दायर किया गया था.

आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने के अपने आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि अधिनियम के तहत वास्तव में दावों का खारिज होना आदिवासियों को बेदखल करने का आधार नहीं है. अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर दावे के खारिज होने के बाद किसी को बेदखल किया जाए. The post आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने के अपने आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक appeared first on The Wire - Hindi.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि अधिनियम के तहत वास्तव में दावों का खारिज होना आदिवासियों को बेदखल करने का आधार नहीं है. अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर दावे के खारिज होने के बाद किसी को बेदखल किया जाए.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)

(सुप्रीम कोर्ट: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को 13 फरवरी के अपने उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें उसने देश के करीब 21 राज्यों के 11.8 लाख से अधिक आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को जंगल की जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया था. दरअसल, ये लोग अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून, 2006 के तहत वनवासी के रूप में अपने दावे को साबित नहीं कर पाए थे.

लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे वन अधिकार अधिनियम के तहत खारिज किए गए दावों के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और आदेशों को पास करने वाले अधिकारियों की जानकारी दें. इसके साथ ही पीठ ने यह जगह रोक आदेश जानकारी भी मांगी कि क्या अधिनियम के तहत राज्य स्तरीय निगरानी समिति ने प्रक्रिया की निगरानी की.

पीठ ने राज्यों को ये जानकारियों जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया. इसके साथ तब तक के लिए 13 फरवरी के अपने आदेश पर रोक लगा दी. पीठ इस मामले में अब 30 जुलाई को आगे विचार करेगी.

शीर्ष अदालत बुधवार को 13 फरवरी के अपने आदेश पर रोक लगाने के केन्द्र सरकार के अनुरोध पर विचार के जगह रोक आदेश लिये सहमत हो गई थी. न्यायालय ने इस आदेश के तहत 21 राज्यों से कहा था कि करीब 11.8 लाख उन वनवासियों को बेदखल किया जाये जिनके दावे अस्वीकार कर दिए गए हैं.

पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद कहा, ‘हम अपने 13 फरवरी के आदेश पर रोक लगा रहे हैं.’ पीठ ने कहा कि वनवासियों को बेदखल करने के लिये उठाये गये तमाम कदमों के विवरण के साथ राज्यों के मुख्य सचिवों को हलफनामे दाखिल करने होंगे.

केन्द्र ने 13 फरवरी के आदेश में सुधार का अनुरोध करते हुए न्यायालय से कहा, ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून, 2006 लाभ देने संबंधी कानून है और बेहद गरीब और निरक्षर लोगों, जिन्हें अपने अधिकारों और कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं है, की मदद के लिए इसमें उदारता अपनाई जानी चाहिए.’

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, ‘वह समय-समय पर राज्य सरकारों द्वारा अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी कर रहा है. उसने देखा कि अधिनियम को गलत तरीके से परिभाषित करने के कारण बड़ी संख्या में दावों को खारिज कर दिया गया. ग्राम सभाओं में दावे दाखिल करने की प्रक्रिया को लेकर जागरुकता का अभाव है. कई मामलों में दावा करने वालों को उनके दावे खारिज किए जाने का कारण नहीं बताया गया और वे उसके खिलाफ अपील नहीं कर पाए.’

केंद्र सरकार ने बड़ी संख्या में दावों को खारिज किए जाने की अपनी चिंता को लेकर पिछले कुछ वर्षों में राज्यों को भेजे गए अपने पत्रों का उल्लेख भी किया. उसने उन घटनाओं का भी जिक्र किया जहां वन अधिकारी अपील का मौका दिए बिना ही आदिवासियों को बेदखल करने का आदेश दे देते थे.

हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा, ‘अधिनियम के तहत वास्तव में दावों का खारिज होना आदिवासियों को बेदखल करने का आधार नहीं है. अधिनियम जगह रोक आदेश में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर दावे के खारिज होने के बाद किसी को बेदखल किया जाए.’

इससे पहले 13 फरवरी के अपने आदेश में पीठ ने राज्यों को चेतावनी देते हुए आदेश दिया था जगह रोक आदेश कि उन सभी को 24 जुलाई या उससे पहले जंगल की जमीनों से बेदखल किया जाए जिनके दावे खारिज हो गए हैं. अदालत ने कहा था कि अगर उनको बेदखल किए जाने का काम शुरू नहीं किया जाता है तो वह इसे गंभीरता से लेगी.

अदालत ने आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिवों को यह बताने के लिए भी कहा था कि जिनके दावे खारिज हो गए हैं उन्हें उनकी जमीन से बेदखल क्यों नहीं किया गया.

आदिवासी मामलों के मंत्री को इस महीने की शुरुआत में भेजे गए एक पत्र में, विपक्षी दलों और भूमि अधिकार कार्यकर्ताओं के समूहों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत सरकार ने कानून का बचाव नहीं किया है.

पत्र में कहा गया था, ‘पिछली तीन सुनवाई में – मार्च, मई और दिसंबर 2018 में – केंद्र सरकार ने कुछ नहीं कहा है.’ इसके अलावा बीते 13 फरवरी को हुई आखिरी सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकारी वकील मौजूद ही नहीं थे.

बता दें कि इससे पहले द वायर ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा एकत्र आंकड़ों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कोर्ट के आदेश की वजह से 10 की जगह लगभग 20 लाख आदिवासी और वनवासी परिवार प्रभावित हो सकते हैं.

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में, पूर्व राज्यसभा सांसद और माकपा की नेता बृंदा करात ने भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से प्रभावित लोगों की कुल संख्या बहुत अधिक हो सकती है.

वह कहती हैं कि चूंकि 42.19 लाख दावों में से केवल 18.89 लाख दावों को स्वीकार किया गया है, शेष 23.30 लाख दावेदारों को आदेश की वजह से बेदखल किया जाएगा. उन्होंने मोदी से आदिवासियों और वनवासियों की रक्षा के लिए अध्यादेश पारित करने का आग्रह किया था.

‘भारत जोड़ो’ जगह रोक आदेश ट्विटर हैंडल पर लगेगी रोक, कोर्ट के आदेश से कांग्रेस को तगड़ा झटका

बेंगलुरु। भारत जोड़ो ट्विटर हैंडल पर बेंगलुरु कोर्ट ने रोक लगाने का आदेश देते हुए कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया है। ये आदेश कॉपीराइट मामले को लेकर आया है। बता दें, एमआरटी म्यूजिक ने कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में केस दर्ज कराया था। कोर्ट ने भारत जोड़ो ट्विटर हैंडल को ब्लॉक करने का आदेश दिया …

बेंगलुरु। भारत जोड़ो ट्विटर हैंडल पर बेंगलुरु कोर्ट ने रोक लगाने का आदेश देते हुए कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया है। ये आदेश कॉपीराइट मामले को लेकर आया है। बता दें, एमआरटी म्यूजिक ने कॉपीराइट उल्लंघन के मामले में केस दर्ज कराया था। कोर्ट ने भारत जोड़ो ट्विटर हैंडल को ब्लॉक करने का आदेश दिया है।

शिकायत में कहा गया है कि कॉपीराइट एक्ट के सेक्शन 63 के तहत आरोपी की उपरोक्त गैरकानूनी कार्रवाई एक अपराध है। यह भी एक गंभीर अपराध है, जो वास्तविक रूप से इसे वास्तविक रूप में पेश करने के इरादे से एक गलत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनाने की राशि है और इस तरह बड़े पैमाने पर जनता को धोखा देता है।

कहा गया है कि प्रत्येक कॉपीराइट कंटेंट को अवैध रूप से संग्रहीत, होस्ट, डाउनलोड, साइडलोड, अपलोड किया गया है और इस प्रकार कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार ध्वनि रिकॉर्डिंग और दृश्य-श्रव्य सामग्री की उल्लंघनकारी प्रतियां बनाई गई हैं।

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