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क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं

क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं
भारत से विदेश केवल इतनी रकम ले जाने की होती है इजाजत, ज्यादा कैश ले जाने से लौटा दिया जाता है घर

भारत से विदेश केवल इतनी रकम ले जाने की होती है इजाजत, ज्यादा कैश ले जाने से लौटा दिया जाता है घर

अगर आप भारतीय हैं और विदेश यात्रा के बारे में सोच रहे हैं, तो यहां यात्री को एक सीमा के अंदर कैश ले जाने की अनुमति है। वरना सीमा से ज्यादा कैश ले जाने पर आपको घर वापस लौटा दिया जाता है। इसलिए यात्रा से पहले ऐसे नियमों के बारे में जरूर जान लेना चाहिए।

if you are travelling abroad you can carry this much cash for foreign

भारत से विदेश केवल इतनी रकम ले जाने की होती है इजाजत, ज्यादा कैश ले जाने से लौटा दिया जाता है घर

कितनी विदेशी मुद्रा साथ ले जा सकते हैं-

नेपाल और भूटान जैसे कुछ देशों को छोड़कर लगभग सभी देशों की यात्रा पर जा रहे यात्रियों को हर यात्रा पर 3000 डॉलर तक की विदेशी मुद्रा साथ ले जाने की इजाजत है। अगर आप इससे ज्यादा राशि साथ ले जाना चाहते हैं, तो उस राशि को स्टोर वैल्यू कार्ड, ट्रेवल चैक और बैंकर्स ड्राफ्ट के रूप में ले जा सकते हैं।

विदेश यात्रा से लौटते वक्त भारतीय यात्री कितनी विदेशी मुद्रा साथ ला सकते हैं-

नेपाल और भूटान को छोड़कर यदि कोई भारतीय यात्री किसी देश में अस्थाई दौरे पर गया है, तो वह भारत लौटते वक्त भारतीय नोट वापस ला सकता है। लेकिन ध्यान रहे कि यह राशि 25 हजार से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। बात अगर नेपाल और भूटान की करें , तो कोई भी व्यक्ति वहां से लौटते वक्त 100 रूपए से ज्यादा मूल्य वर्ग के भारत सरकार के करेंसी नोट व भारतीय रिजर्व बैंक के नोट नहीं ले जा सकता।

विदेशी व्यक्ति भारतीय यात्रा के लिए भारत में कितनी विदेशी मुद्रा साथ ला सकता है-

विदेश से भारत की यात्रा करने आने वाला व्यक्ति बिना किसी लिमिट के अपने साथ विदेशी मुद्रा ला सकता है। लेकिन अगर करेंसी नोट, बैंक नोट और ट्रेवलर चैक के रूप में साथ ले आए विदेशी मुद्रा का मूल्य 10,000 डॉलर है, तो एयरपोर्ट पर कुछ कार्यवाही की जा सकती है। उन्हें भारत आने पर करेंसी डिक्लेरेशन फॉर्म CDF में एयरपोर्ट पर कस्टम ऑफिसर्स के सामने घोषणा करने की जरूरत होगी।

क्या विदेश यात्रा के लिए खरीदी जाने वाली विदेशी मुद्रा का रूपए में भुगतान कर सकते हैं-

विदेश यात्रा करने के लिए 50,000 रूपए से कम राशि का रूपए में नगद भुगतान कर खरीद सकते हैँ। लेकिन अगर फॉरेन करेंसी की रकम 50, 000 रूपए से ज्यादा है, तो पूरा भुगतान क्रॉस्ड चैक, , बैंकर्स चैक, पे ऑर्डर, क्रेडिट कार्ड , डेबिड कार्ड या प्री पैड कार्ड के जरिए कर सकते हैं।

क्या भारत लौटने वाले यात्री के लिए विदेशी मुद्रा लौटाने की कोई लिमिट तय है-

जी हां, विदेश यात्रा से लौटने पर यात्रियों को करेंसी नोट और चैकों को लौटाने का नियम है। आमतौर से वापस आने की तारीख से 180 दिन के अंदर विदेशी मुद्रा लौटा देनी चाहिए। हालांकि, कभी आगे उपयोग करने के लिए यात्री विदेशी मुद्रा को चैक के रूप में 2000 अमेरिकी डॉलर रख सकते हैं।

विदेश यात्रा से कितने दिन पहले विदेशी मुद्रा ले लेनी चाहिए-

यात्रा से केवल 60 दिन यानी लगभग 2 महीने पहले आपको अपनी रकम को विदेशी मुद्रा में बदलवा लेना चाहिए। ये काम आप मनी एक्सेंजर, बैंक या फिर एयरापोर्ट से करा सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैँ कि इस काम को यदि आप मनी एक्सचेंजर या बैंक से कराएं तो अच्छा है, क्योंकि बाद में एयरपोर्ट से कराने पर यह बाजार से 3-4 फीसदी महंगा ही पड़ता है।

क्या विदेश में क्रेडिट कार्ड से शॉपिंग कर सकते हैं-

अगर आप खुलकर पैसा खर्च करने वालों में से हैं, तो आपको इंटरनेशनल क्रेडिट कार्ड यूज करना चाहिए। इससे पेमेंट करने पर आपको कनवर्जन चार्ज के साथ 90-150 रूपए हर बार ट्रांजैक्शन फीस के रूप में देने पड़ेंगे। जबकि नगद पेमेंट करना काफी सस्ता पड़ता है।

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2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?

डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, बाद में मामूली रिकवरी दिखी।

2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?

अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने के बाद भारतीय करेंसी रुपया एक बार फिर रेंगने लगा है। इस बीच, विदेशी मुद्रा भंडार ने भी चिंता बढ़ा दी है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सातवें सप्ताह गिरा है और अब यह 2 साल के निचले स्तर पर आ चुका है।

रुपया की स्थिति: डॉलर के मुकाबले रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, कारोबार के अंत में मामूली रिकवरी हुई। इसके बावजूद रुपया 19 पैसे गिरकर 80.98 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर बंद हुआ। यह पहली बार है जब भारतीय करेंसी की क्लोजिंग इतने निचले स्तर पर हुई है।

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति: आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 16 सितंबर को सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर 545.652 बिलियन डॉलर पर आ गया। पिछले सप्ताह भंडार 550.871 अरब डॉलर था। विदेशी मुद्रा भंडार का यह दो साल का निचला स्तर है। अब सवाल है कि रुपया के कमजोर होने या विदेशी मुद्रा भंडार के घट जाने की कीमत आपको कैसे चुकानी पड़ सकती है?

रुपया कमजोर होने की वजह: विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत बने रहने की वजह से रुपया कमजोर हुआ है। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के समक्ष डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.72 प्रतिशत चढ़कर 112.15 पर पहुंच गया है। डॉलर इसिलए मजबूत बना हुआ है क्योंकि अमेरिकी फेड रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्याज दर में 75 बेसिस प्वाइंट बढ़ोतरी कर दी है।

दरअसल, ब्याज दर बढ़ने की वजह से ज्यादा मुनाफे के लिए विदेशी निवेशक अमेरिकी बाजार की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस वजह से डॉलर को मजबूती मिल रही है। इसके उलट भारतीय बाजार में बिकवाली का माहौल लौट आया है। बाजार से निवेशक पैसे निकाल रहे हैं, इस वजह से भी रुपया कमजोर हुआ है।

असर क्या होगा: रुपया कमजोर होने से भारत का आयात बिल बढ़ जाएगा। भारत को आयात के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। रुपया कमजोर होने से आयात पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन कम होगा, जिसकी भरपाई दाम बढ़ाकर की जाएगी। इससे महंगाई बढ़ेगी। खासतौर पर पेट्रोलियम उत्पाद के मामले में भारत की आयात पर निर्भरता ज्यादा है। इसके अलावा विदेश घूमना, विदेश से सर्विसेज लेना आदि भी महंगा हो जाएगा।

विदेशी मुद्रा भंडार पर असर: रुपया कमजोर होने से विदेशी मुद्रा भंडार कमजोर होता है। देश को आयात के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं तो जाहिर सी बात है कि खजाना खाली होगा। यह आर्थिक लिहाज से ठीक बात नहीं है।

रुपये क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

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Dollar vs Currency: गिरता रुपया सिक्के के दो पहलू जैसा, 6 नुकसान तो ये 4 फायदे भी

Rupee vs Dollar: लगातार गिरता रुपया भारत के कुछ सेक्टर्स के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. वहीं, कुछ सेक्टर्स में उत्पादन की लगात बढ़ जाएगी और इसका असर देश की आम जनता की जेब पर पड़ेगा. अमेरिका से वास्ता रखने वाली कंपिनयों को फायदा होने वाला है. ईंधन की ऊंची कीमतों से महंगाई में भी इजाफा होता है.

फायदे का सौदा भी साबित हो सकता है गिरता रुपया

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 25 जुलाई 2022, 5:39 PM IST)
  • दवाई उद्योग के सेक्टर को होगा फायदा
  • तेल और गैस की कीमतों पर पड़ेगा असर

डॉलर (Dollar) के मुकाबले लगातार गिरते रुपये (Rupee) को बचाने के लिए भारत (India) अपने विदेशी मुद्रा भंडार (India Forex Reserves) से खर्च कर रहा है. विदेशी निवेशक भारत से अमेरिका भाग रहे हैं. जहां के केंद्रीय बैंक ने दरें बढ़ा दी हैं. व्यापार संतुलन के पलड़े पर भी भारत को नुकसान उठाना पड़ रहा है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 80 वह कगार है, जहां से रुपये का लुढ़कना बेकाबू हो सकता है. इससे सरकारी वित्त और कारोबारी योजनाओं में भारी रुकावटें पैदा हो जाएंगी.

लगातार गिरता रुपया भारत के कुछ सेक्टर्स के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. वहीं, कुछ सेक्टर्स में उत्पादन की लगात बढ़ जाएगी और इसका असर देश की आम जनता की जेब पर पड़ेगा.

गिरते रुपये का नुकसान

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1. ऑटोः करीब 10-20 फीसदी कल-पुर्जों और दूसरे पार्ट्स का आयात होने के कारण कारें महंगी हो सकती हैं. यह असर कंपनी के निर्यात और आयात वाले मार्केट पर निर्भर करेगा.

2. टेलीकॉम: इस उद्योग के विभिन्न पुर्जों का बड़ा आयातक होने के नाते अनुमान है कि भारत में कमजोर रुपया कंपनियों की लागत पूंजी को 5 फीसदी तक बढ़ सकता है. इस वजह वो टैरिफ बढ़ाने को मजबूर हो जाएंगी.

3. कंज्यूमर क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं इलेक्ट्रॉनिक्स: इस कारोबार में आयातित वस्तुएं कुल लागत का 40-60 फीसदी के करीब बैठती हैं. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लाएंसेज निर्माताओं के मुताबिक, इस उद्योग की वस्तुओं की कीमतों में 4-5 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है.

4. सौर ऊर्जा: भारत के सौर ऊर्जा संयंत्र सोलर सेल और मॉड्यूल्स का आयात करते हैं. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में प्रति एक रुपये की गिरावट पर सौर ऊर्जा की लागत का खर्च 2 पैसे प्रति यूनिट बढ़ जाएगा.

5. एफएमसीजी: इन वस्तुओं के उत्पादन में करीब आधी लागत तो आयात किए कच्चे माल की होती है. दबाव बढ़ने पर कंपनियां इस लागत को उपभोक्ताओं पर डालने में गुरेज नहीं करेंगी.

6. तेल और गैस: भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल और गैस की आधी मात्रा का आयात करता है. इनके आयातकों के लिए कीमतें बढ़ती गई हैं. ऐसे में इसकी लागत या तो उपभोक्ताओं पर डाली जा सकती है या फिर सरकार इसे वहन करेगी. ऐसी स्थिति में उसके खजाने पर असर पड़ेगा. ईंधन की ऊंची कीमतों से महंगाई में भी इजाफा होता है.

गिरते रुपये का फायदा

1. दवाई उद्योग: अमेरिका से वास्ता रखने वाली कंपिनयों को फायदा होने वाला है. भारत का एक तिहाई निर्यात अमेरिका को ही होता है. 2013-14 के मुकाबले निर्यात 103 फीसदी बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 1.83 लाख करोड़ रुपये हो गया. लेकिन 4-5 अरब डॉलर के सामान का आयात भी हुआ. घरेलू बाजार पर केंद्रित रहने वाली कंपनियों और दवाओं के तत्व सप्लाई करने वालों पर असर पड़ेगा.

2. आईटी सर्विस: ज्यादातर कंपनियां क्लाइंट का बिल डॉलर में ही बनाती हैं और बड़ी कंपिनयों का 50-60 फीसदी राजस्व अमेरिकी मार्केट से ही आता है. रुपये में 100 बीपीएस की गिरावट का मतलब है मुनाफे में सीधे 30 बीपीएस का फायदा.

3. कपड़ा उद्योग: भारतीय निर्यातकों को बांग्लादेश जैसे मुल्कों से मुकाबले के लिए लागत के मामले में बढ़त मिल जाती है. ज्यादातर कच्चा माल यहीं मिल जाता है. चीन, इंडोनेशिया और बांग्लादेश से भारत भी सिलेसिलाए और दूसरे कपड़े आयात करता है.

4. स्टील: भारत अपने स्टील का 10-15 फीसदी निर्यात करता है. कमजोर रुपये ने उस नफे-नुकसान के असर को बराबर कर दिया, जो मई में सरकार के निर्यात पर 15 फीसदी टैक्स लगाने से पैदा हुआ था. (इनपुट: इंडिया टुडे मैगजीन-हिंदी)

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फायदे का सौदा भी साबित हो सकता है गिरता रुपया

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  • 25 जुलाई 2022,
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2. टेलीकॉम: इस उद्योग के विभिन्न पुर्जों का बड़ा आयातक होने के नाते अनुमान है कि भारत में कमजोर रुपया कंपनियों की लागत पूंजी को 5 फीसदी तक बढ़ सकता है. इस वजह वो टैरिफ बढ़ाने को मजबूर हो जाएंगी.

3. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स: इस कारोबार में आयातित वस्तुएं कुल लागत का 40-60 फीसदी के करीब बैठती हैं. कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लाएंसेज निर्माताओं के मुताबिक, इस उद्योग की वस्तुओं की कीमतों में 4-5 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है.

4. सौर ऊर्जा: भारत के सौर ऊर्जा संयंत्र सोलर सेल और मॉड्यूल्स का आयात करते हैं. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में प्रति एक रुपये की गिरावट पर सौर ऊर्जा की लागत का खर्च 2 पैसे प्रति यूनिट बढ़ जाएगा.

5. एफएमसीजी: इन वस्तुओं के उत्पादन में करीब आधी लागत तो आयात किए कच्चे माल की होती है. दबाव बढ़ने पर कंपनियां इस लागत को उपभोक्ताओं पर डालने में गुरेज नहीं करेंगी.

6. तेल और गैस: भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल और गैस की आधी मात्रा का आयात करता है. इनके आयातकों के लिए कीमतें बढ़ती गई हैं. ऐसे में इसकी लागत या तो उपभोक्ताओं पर डाली जा सकती है या फिर सरकार इसे वहन करेगी. ऐसी स्थिति में उसके खजाने पर असर पड़ेगा. ईंधन की ऊंची कीमतों से महंगाई में भी इजाफा होता है.

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1. दवाई उद्योग: अमेरिका से वास्ता रखने वाली कंपिनयों को फायदा होने वाला है. भारत का एक तिहाई निर्यात अमेरिका को ही होता है. 2013-14 के मुकाबले निर्यात 103 फीसदी बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में 1.83 लाख करोड़ रुपये हो गया. लेकिन 4-5 अरब डॉलर के सामान का आयात भी हुआ. घरेलू बाजार पर केंद्रित रहने वाली कंपनियों और दवाओं के तत्व सप्लाई करने वालों पर असर पड़ेगा.

2. आईटी सर्विस: ज्यादातर कंपनियां क्लाइंट का बिल डॉलर में ही बनाती हैं और बड़ी कंपिनयों का 50-60 फीसदी राजस्व अमेरिकी मार्केट से ही आता है. रुपये में 100 बीपीएस की गिरावट का मतलब है मुनाफे में सीधे 30 बीपीएस का फायदा.

3. कपड़ा उद्योग: भारतीय निर्यातकों को बांग्लादेश जैसे मुल्कों से मुकाबले के लिए लागत के मामले में बढ़त मिल जाती है. ज्यादातर कच्चा माल यहीं मिल जाता है. चीन, इंडोनेशिया और बांग्लादेश से भारत भी सिलेसिलाए और दूसरे कपड़े आयात करता है.

4. स्टील: भारत अपने स्टील का 10-15 फीसदी निर्यात करता है. कमजोर रुपये ने उस नफे-नुकसान के असर को बराबर कर दिया, जो मई में सरकार के निर्यात पर 15 फीसदी टैक्स लगाने से पैदा हुआ था. (इनपुट: इंडिया टुडे मैगजीन-हिंदी)

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