आधुनिक बाजार

कृषि बाजार की आधुनिक व्यवस्था
कृषि बाजार के वर्तमान स्वरूप में किसानों (उत्पादकों) तथा उपभोक्ताओं के मध्य बिचौलियों (मध्यस्थों) का जरूरत से अधिक दखल होने से किसानों के हितों को भारी नुकसान हो रहा है। किसी भी प्रकार के बाजार में मध्यस्थों की सेवाओं को अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। मगर जब उनका दखल जरूरत से अधिक होने लगता है तब यह नुकसानदायक होता है।
आज की स्थिति में कुल लाभ का 50 से 60 प्रतिशत बाजार खर्च तथा मध्यस्थों के भेंट चढ़ जाता है तथा मात्र 40 से 50 प्रतिशत रकम ही किसानों तक पहुंच पाती है। कृषि उपज के संग्रह तथा उनके विक्रय के लिये जिस तरह के सहकारी बाजार व्यवस्था की आवश्यकता है उसका आज भी अभाव महसूस हो रहा है।
बाजार व्यवस्था में कई प्रकार की कमियां देखने को मिलती है उदाहरण के लिये नियमित बाजारों में नियमों के अनुसार नीलामी नहीं होती है। कई व्यापारी समूह बनाकर पहले से ही कृषि उत्पादों का भाव निर्धारित कर लेते है। परिणामस्वरूप आधुनिक बाजार किसानों को उत्पादों का सही भाव नहीं मिल पाता है तथा वे ठगा सा महसूस करते हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में कृषि उत्पाद को बेचने के लिये कई व्यवस्थाएं प्रचलन में हैं । ये सभी वैकल्पिक रूप किसानों को उनकी उपज का किफायती मूल्य प्रदान करवाने और उनको अधिक सक्षम बनाने की दिशा में सार्थक सिद्ध हो रहे हैं। इनका संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है जिसमें की किसान इनके बारे में आधुनिक बाजार जानकर लाभ उठा सकें।
1. सीधा विक्रय (डायरेक्ट मार्केर्टिंग)
ऐसी व्यवस्था में किसान सीधे ही अपने उत्पादों को बाजार में ले जाकर बेच सकते हैं। इस व्यवस्था में किसान तथा उपभोक्ता सीधे संपर्क में रहते हैं। यहां पर मध्यस्थों की कोई भूमिका नहीं होती है। हमारे देश में यह प्रणाली थोडे़ समय में कई राज्यों में शुरू हुई है।
हैदराबाद में इस तरह की व्यवस्था है जिसे रायतु बाजार के नाम से जाना जाता हैं। इन राज्यों में तो किसानों के खेती उत्पादों को बाजारों तक ले जाने के लिये साधनों की भी व्यवस्था की जाती है।
2. ईलेक्ट्रोनिक कॉमर्सः
विश्व व्यापार संगठन के अनुसार ईलेक्ट्रोनिक कॉमर्स में उत्पादन वितरण विक्रय आदि ईलेक्ट्रोनिक माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं का मुक्त प्रवाह द्वारा आदान-प्रदान होता हैं। जिससे सारी दूनिया एक बाजार में सिमट कर रह जाती है।
3. नियंत्रित बाजारः
ए.पी.एम.सी. या कृषि उत्पादन बाजार समिति के मार्फत किसान अपने कृषि उत्पादों को बेचकर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। कृषि बाजार व्यवस्था में ए.पी.एम.सी. की भूमिका बहुत ही सराहनीय है। सभी राज्यों के प्रत्येक तालुकों में नियंत्रित बाजार की व्यवस्था हैं। किसान इसका भरपूर फायदा भी उठा रहे हैं।
4. समूह विक्रयः
समूह विक्रय से बाजार संयुक्त योजना बनाने, वित पोषण, क्रियान्वयन, मूल्य निर्धारण, समान रूप से पूरे समूह द्वारा जोखिम वहन करने आदि से परोक्ष रूप से अधिक मूल्य प्राप्त किया जा सकता हैं। समूह विक्रय व्यवस्था से औद्योगिक कौशल को विकसित करने मे सहायता मिलती है। इससे विक्रय लागत को कम करना, थोक आपूर्ति उपलब्ध कराना, मूल्य अनिशिचतता के जोखिम को कम करने जैसे अनेक फायदे होतेे है ।
5. सहकारी बाजारः
हमारे यहां कृषि बाजार व्यवस्था करने में सहकारी क्षत्रे का अत्यंत ही महत्वूपर्ण योगदान हैं। गुजरात जैसे राज्य में सहकारी संस्थाओं का बहुत ही बढ़िया तरीके से विकास हुआ है तथा किसानों ने भी इसका भरपूर लाभ उठाया है।
जब कृषि उत्पादों का बाजार भाव बहुत ही नीचे गिर जाता हैं तब सरकार किसान से कृषि उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर खरीद करती है तथा ये खरीद इन्हीं सहकारी बाजरों के मार्फत की जाती है। किसान भी व्यक्तिगत रूप से कृषि उत्पादों का विक्रय नहीं करके सहकारी मण्डली बना कर अपने कृषि उत्पादों को लाभकारी भावों पर बेचकर अधिक लाभ कमा सकते हैं।
6. संविदा खेती ( कांट्रेक्ट फार्मिग )
यह एक प्रकार की करार आधारित खेती हैं जिसमें किसान, कंपनी तथा बाजार समिति के मध्य त्रिपक्षीय करार किया जाता हैं। इसमें बाजार समिति की भूमिका एक सहायक के समान होती है। इस पद्वति में कंपनी की तरफ से कृषि आदान जैसे की उन्नत बीज, खाद, कीटनाशक दवा, अन्य साधन-सामग्री तथा समय-समय पर विषेशज्ञ का मार्गदर्शन मिलता हैं।
किसान को जरूरत पडने पर शर्तों के अनुसार वित्तीय सहायता भी दी जाती है। करार की शर्त की अवहेलना किसी भी पक्ष द्वारा करने पर यदि विवाद उत्पन्न होता हैं तो उस स्थिति में राज्य कृषि बाजार बोर्ड इसे सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका अदा करता है।
7. वायदा बाजारः
यह बाजार किसानों को उनके कृषि उत्पादों के उचित भाव दिलाने का पूरा वायदा करता हैं। ये प्रोसेसरों को भी कच्चे माल की निर्धारित दाम पर आपूर्ति करने का वचन देता है। भारत में एम.सी.एक्स. तथा एन.सी.डी.इ.एक्स. इसके लिये प्रमुख एक्सचेंज है। तथा ये सरकार के नीति नियमों के अनुसार वायदा बाजार का संचालन करते हैं।
8. निर्यातः
अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में वैश्वीकरण के इस युग में कृषि उत्पादों की बिक्री के लिये द्वार खुले हुए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को बेचा जा सकता है जिससे उनके बहुत ही बढ़िया दाम मिल सकते हैं।
उदारीकरण के इस युग में कृषि उत्पादों के निकासी की प्रक्रिया सरल बनी है तथा इसका लाभ लेने के लिये किसानों को यदि किसी प्रकार की मुश्किल महसूस होती है तो वे सहकारी समिति का निर्माण करके यह काम बडी़ सरलता के साथ कर सकते हैं जिससे उन्हें अपने उत्पादों का स्थानीय बाजारों की अपेक्षा अच्छे भाव मिल सकें।
हमारे देश में कृषि बाजार के साथ जुडी कुछ प्रमुख संस्थाएं इस प्रकार से हैं :
- नेशनल एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फैडरेश्न (आधुनिक बाजार नेफेड)
- फूड कारर्पोरेषन आफ इंडिया (एफ.सी.आई.)
- एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॅारिटी (ऐपिडा)
- सेंट्रल वेयर हाउस कार्पोरेषन
- डायरेक्टरेट आफ इकोनामिकस एंड स्टेटिस्टिक्स
- कृषि आयोग, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग
- ए.पी.एम.सी. तथा राज्य कृषि बाजार बोर्ड
निष्कर्ष
किसी भी बाजार व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए उनके बारे में जानकारी होना अत्यंत ही जरूरी है। इस सबन्ध में बाजार की विषय विषेषज्ञता के कारण, कृषि अर्थषास्त्री किसानों के लिये लाभकारी व कल्याणकारी भूमिका निभाता है। आज भी हमारे कई गाँवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है।
परिवहन एवं गोदाम जैसी आधारभूत सुविधाओं का सर्वथा अभाव है। तैयार फसलों को और अधिक उपयोगी बनाने के लिये ग्रेडिंग एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
हमारे यहाँ पर ग्रेडिंग की सुविधाओं का सर्वथा अभाव है, इसके साथ ही किसानों को ग्रेडिंग करने की प्रक्रिया की पूरी समझ नहीं है जिससे उत्पाद का पूरा लाभ नही मिल पाता है। इन सब बातों को ध्यान देने की जरूरत है।
1 राजेन्द्र जांगिड 2 रामनिवास 3 गोगराज ओला एवं 4 मधु कुमारी
1 विद्यावाचस्पति, छात्र कृषि अर्थशास्त्र विभाग] कृषि महाविधालय] बीकानेर
2]3 विद्यावाचस्पति] सस्य-विज्ञान विभाग] कृषि महाविधालय] बीकानेर
4 स्नातकोत्तर] उद्यान-विज्ञान विभाग, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि महाविधालय] जोबनेर (जयपुर)
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आधुनिक बाजार किन सामग्रियों से भरा पड़ा है? सौंदर्य
⏩ ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ में लेखक ने बताया है कि आधुनिक बाजार विलासिता पूर्ण सामग्रियों से भरा पड़ा है। लेखक के अनुसार नई जीवनशैली उपभोक्तावाद भ्रमजाल में पढ़कर व्यक्ति अधिक से अधिक वस्तुएं खरीदने लगा है और उसकी इस प्रवृत्ति को भुनाते हुए बाजार भी विलासिता पूर्ण वस्तुओं से भर गया है। तरह-तरह की नई विलासिता पूर्ण वस्तुएं लोगों को लुभाती हैं। लेखक के अनुसार उपभोक्तावाद की संस्कृति आज की नई जीवनशैली बन गई है।
सदर को आधुनिक बाजार बनाने का खाका तैयार
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: सदर बाजार को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए खाका तैयार कर लिया गया है। मार्च में सदर को आधुनिक बाजार बनाया जाना था, लेकिन योजना सिरे नहीं चढ़ी। इस बार आधुनिक बाजार 15 अगस्त से सदर बाजार को नो-व्हीकल जोन बनाया जाएगा। बाजार में बड़े वाहनों के साथ ही दोपहिया वाहनों का प्रवेश पूरी तरह बंद किया जाएगा। दुकानदारों और ग्राहकों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था होगी और बाजार में आने वाले ग्राहकों को पैदल न चलना पड़े, इसके लिए ई-रिक्शा का इंतजाम किया जाएगा। अगर यह एक्शन प्लान सफल रहा तो बाजार की सूरत बदल जाएगी। तैयारियां पूरी करने के लिए महज चार दिन ही बाकी हैं। नगर निगम के संयुक्त आयुक्त जितेंद्र गर्ग के मुताबिक बाजार को आधुनिक बनाने के लिए तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं
फिलहाल ये है स्थिति
- बाजार की कई फुट चौड़ी गलियां अतिक्रमण के कारण संकरी हो गई हैं।
- दुकानों के आगे रेहड़ी-पटरी के कारण अतिक्रमण है।
- दुपहिया से लेकर बड़े वाहनों का बाजार में प्रवेश है और बाजार पैदल चलने योग्य नहीं है।
- पार्किंग की उचित व्यवस्था नहीं है।
- रेहड़ी वालों के बेतरतीब खड़े होने के कारण दिनभर परेशानी होती है।
- शौचालयों में सुविधा नहीं होने से यहां आने वाले लोग व दुकानदारों को समस्या है।
- बाजार में अतिक्रमण होने के कारण आगजनी जैसी घटना होने पर दमकल पहुंचने के लिए भी रास्ता नहीं है।
अधिकारियों का दावा, अब नया ये किया जाएगा
वेंडिग जोन: अव्यवस्थित रेहड़ियों को हटाकर एक जगह पर वेंडिग जोने बनाया जाएगा।
पार्किंग: दुकानदारों और ग्राहकों के लिए पार्किंग बनेगी।
बागवानी: बाजार की सुंदरता बढ़ाने के लिए फूल वाले पौधों के गमले लगाए जाएंगे।
शौचालय: एक कंपनी द्वारा सीएसआर के तहत शौचालयों की मरम्मत की जाएगी।
वाहन: वाहनों का प्रवेश बंद होगा। बैरिकेड्स लगाए जाएंगे। दुकानों में सामान लेकर आने वाले वाहनों के लिए बैरिकेड्स एक तय समय में ही खुलेंगे।
सफाई: सुबह बाजार खुलने से पहले और रात में बाजार बंद होने के बाद सफाई होगी।
क्या आधुनिक बाजार व्यवस्था जन-साधारण विरोधी नहीं है?
क्या आधुनिक बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण की विरोधी नही है ?
हम आधुनिक युग में जी रहे है | आधुनिक युग की बाज़ार व्यवस्था में जी रहे है | क्योंकि हमारे भोजन – वस्त्र , घर – मकान , शिक्षा – इलाज़ की सभी बुनियादी जरूरते बाज़ार से जुड़ने पर ही मिल पाती है और फिर छोटे – बड़े लाभ – मुनाफे कमाना तो बाज़ार व्यवस्था का अपरिहार्य हिस्सा है और यही बाज़ार व्यवस्था का वास्तविक लक्ष्य भी है | वर्तमान सामाजिक – व्यवस्था को बाज़ार व्यवस्था क्यों कहा जा रहा है ? इसका एकदम सीधा जबाब है कि इस सामाजिक व्यवस्था में राष्ट्र व् समाज के सभी लोगो को खरीद – बिक्री की प्रक्रिया से जुड़ना लाजिमी है | कुछ भी पाने के लिए कुछ बेचना और खरीदना जरूरी है | कुछ बेचे बिना कोई भी कुछ खरीद नही सकता | उदाहरण के लिए मजदूर को अपना भोजन , कपड़ा खरीदने के लिए अपनी श्रमशक्ति को बेचना जरूरी है .अपरिहार्य है | किसानो को अपनी खेती के लिये तथा अपने कपड़े -लत्ते तथा दूसरी जरुरतो के लिए अपने कृषि उत्पाद को या अपने किसी सदस्य की श्रम शक्ति को बेचना जरूरी है | यही स्थिति तमाम छोटे उत्पादकों की है |
इसके अलावा, चिकित्सा , शिक्षा तथा कानून व न्याय के क्षेत्र के लोगो के लिए भी जरूरी है कि वे पहले अपनी बौद्धिक क्षमता को बेचने लायक बने| इसके लिए विभिन्न क्षेत्रो का शिक्षा ज्ञान हासिल करे | फिर अपने शिक्षा ज्ञान का बिक्री – व्यापार करे | चाहे उसका नौकरी के जरिये वेतन आदि के रूप में मूल्य पाए या फिर अपने निजी काम धंधे के जरिये उसका व्यापार करे| अपनी सेवा का कम या ज्यादा मूल्य पाए और फिर उससे अपने जीवन को संसाधनों , सुविधाओं को खरीदे | व्यापारियों , उद्योगपतियों के मालो , सामानों की बिक्री से लाभ – मुनाफे के लिए आवश्यक ही है की वे अपने मालो , सामानों की बिक्री बाज़ार बढाये | इसी लक्ष्य से उत्पादन विनिमय को संचालित करे| यही वह हिस्सा है , जो बाज़ार – व्यवस्था का प्रबल हिमायिती है | उसका संचालक है | इसे आप इस तरह भी कह सकते है कि जंहा व्यापारी , उद्योगपति नही है या छोटे स्तर के है तो वंहा बाज़ार व्यवस्था नही है | अगर कंही व्यापारी व उद्योगपति अत्यंत छोटे स्तर के है तो इस बात का सबूत है कि अभी वंहा छोटे – मोटे बाज़ार तो है , पर बाज़ार व्यवस्था भी नही है | उदाहरण —- आज से 100 – 200 साल पहले भारतीय समाज में खासकर ग्रामीण समाज में लोगो के आवश्यकताओ कि पूर्ति ग्रामीण समाज में मौजूद श्रम विभाजन से ही पूरी हो जाती थी | किसी ख़ास सामान के लिए ही उन्हें बाज़ार जाना पड़ता था |लेकिन आधुनिक बाज़ार व्यवस्था के आगमन के साथ बाज़ार का यानी खरीद – बिक्री केंद्र का विकास नगर , शहर , कस्बे से होता हुआ हर चट्टी – चौराहे तक फ़ैल गया है | हर आदमी खरीद – बिक्री कि प्रक्रिया से जुड़ गया है और अधिकाधिक जुड़ता जा रहा है |आधुनिक युग कि बाज़ार व्यवस्था ने हर किसी कि महत्ता महानता को चीन लिया है , कयोंकि हर तरह का हुनर , ज्ञान , अनुभव , बिकाऊ माल बन गया है | उसे पाने का लक्ष्य मालो , सामानों कि तरह ही उसकी खरीद – फरोख्त बन गया है |आज कोई आश्चर्य नही कि , मनुष्य का आधुनिक बाजार मूल्य उसके गुणों के आधार पर नही बल्कि खरीद – बिक्री की क्षमता के आधार पर किया जा रहा है |इस बाज़ार व्यवस्था का अनिवार्य पहलु यह भी है कि यदि किसी के पास बेचने के लिए कुछ भी नही है या जिसका श्रम – सामान बिकाऊ नही है तो उसके जीने का अधिकार भी नही है |फिर तो वह किसी के सहारे या फिर भीख – दान अथवा ठगी , चोरी के जरिये ही जीवन जी सकता है |बाज़ार व्यवस्था के वर्तमान दौर के विकास में यही हो रहा है |आधुनिक आर्थिक व तकनिकी विकास के दौर में साधारण श्रम और साधारण उत्पादन कि बाज़ार में मांग घटी जा रही है | या तो उनकी बिक्री ही नही हो पा रही है , या फिर उनका मूल्य इतना कम है कि उससे न तो उपभोग के सामानों को खरीदकर श्रम शक्ति का पुनरुत्पादन किया जा सकता है और न ही बढ़ते लागत के चलते उन साधारण मालो , सामानों का ही पुन: उत्पादन किया जा सकता है | साधारण मजदूरों , किसानो ,सीमांत व छोटे किसानो, दस्तकारो तथा छोटे कारोबारियों कि यही स्थिति है| वे बाज़ार में टूटते जा रहे है आधुनिक बाजार |
चूँकि वर्तमान दौर की बाज़ार व्यवस्था विश्व – बाज़ार व्यवस्था का एक अंग है | इसका संचालन व नियंत्रण देश – दुनिया के धनाढ्य एवं उच्च हिस्से कर रहे है | उसे वे अपने जैसे लोगो के लिए या फिर अपने सेवको के लिए बाज़ार व्यवस्था को बदल रहे है |आम आदमी को उससे बाहर करते जा रहे है |बेकार , बेरोजगार , संकटग्रस्त होकर जीने और मरने के लिए छोड़ते जा रहे है |क्या यह बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण के जीवन- यापन कि उसके बुनियादी हितो कि विरोधी नही है ? क्या जनहित में देश व समाज कि व्यवस्था में जनसाधारण कि आवश्यकतानुसार बदलाव अनिवार्य , अपरिहार्य नही हो गया है ?
क्या इस देश के लोगो को इसपे सोचना नही चाहिए ………….