विदेशी मुद्रा व्यापार के प्रकार

साधन प्रकार और मूल्य-निर्धारण
शेयर, स्टॉक, इक्विटी CFDs - Apple, Google, Nike, JP Morgan, IBM, आदि
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विदेशी मुद्रा व्यापार - EUR/USD, USD/JPY, आदि।
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सूचकांक CFDs - S&P डो जोंस, आदि।
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मूल्य-निर्धारण
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क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार, क्या हैं इसके मायने ?
विदेशी मुद्रा भंडार को फॉरेक्स रिजर्व या एफएक्स रिजर्व भी कहा जाता है
कुल मिलाकर विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी बैंकनोट, विदेशी बैंक जमा, विदेशी ट्रेजरी बिल और अल्पकालिक और दीर्घकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होनी चाहिए. हालांकि, सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि भी विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा होता है. यह व्यापक आंकड़ा अधिक आसानी से उपलब्ध है, लेकिन इसे आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय भंडार या अंतर्राष्ट्रीय भंडार कहा जाता है.
विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. आमतौर पर, जब किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण पर किसी प्रकार का दायित्व होता है, तो उसे अन्य श्रेणियों जैसे कि अन्य निवेशों में शामिल किया जाएगा. सेंट्रल बैंक की बैलेंस शीट में, घरेलू ऋण के साथ विदेशी मुद्रा भंडार संपत्ति है.
आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय भंडार संपत्ति एक केंद्रीय बैंक को घरेलू मुद्रा खरीदने की अनुमति देती है, जिसे केंद्रीय बैंक के लिए लायबिलिटी माना जाता है.
देश का विदेशी पूंजी भंडार 11 जनवरी को समाप्त सप्ताह में 2.68 अरब डॉलर बढ़कर 396.08 अरब डॉलर हो गया, जो 27,671.0 अरब रुपये के बराबर है. विदेशी मुद्रा भंडार पर पाउंड, स्टर्लिग, येन जैसी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव का सीधा असर पड़ता है.
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विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (१९९९) अथवा संक्षेप में फेमा पूर्व में विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा) के प्रतिस्थापन के रूप में शुरू किया गया है । फेमा ०१ जून, २००० को अस्तित्व में आया । विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (१९९९) का मुख्य उद्देश्य बाहरी व्यापार तथा भुगतान को सरल बनाने के उद्देश्य तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के क्रमिक विकास तथा रखरखाव के संवर्धन के लिए विदेशी मुद्रा से संबंधित कानून को समेकित तथा संशोधन करना है । फेमा भारत के सभी भागों के लिए लागू है । यह अधिनियम भारत के बाहर की स्वामित्व वाली अथवा भारत के निवासी व्यक्ति के नियंत्रण वाली सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा एजेन्सियों के लिए लागू है ।. और अधिक
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इस नई तकनीक की मशीन ने गन्ना किसानों की बदली जिंदगी, कम लागत में होगी ज्यादा कमाई
किसानों को कम समय एवं लागत में अच्छा लाभ कमा कर देंगी
भारत में गन्ने की खेती काफी बडे पैमाने पर की जाती है। किसानों को गन्ने की खेती करने में कई तरह के चुनौती पूर्ण कार्य करने होते है। गन्ने की बुुवाई से लेकर कटाई तक में किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। गन्ने की पारंपरिक खेती में ज्यादा समय एवं मजदूरों की आवश्यकता होती है। जिस वजह से गन्ने की खेती में लागत अधिक होती है और उत्पादन कम आता है। लेकिन आज के इस आधुनिक दौर में नई तकनीक की मशीनों से इसकी खेती की लागत में कमी हुई है। नई तकनीक की मशीनों एवं तकनीकों के आने से अब गन्ने की खेती करना आसान हो गया है। अब गन्ने की खेती में बुवाई से लेकर कटाई तक के तमाम कार्य मशीनों से किया जा रहा है। जिस वहज से गन्ना खेती किसानों की मेहनत, समय एवं लागत में बचत हुई है। इन सब के बावजूद भी देश में गन्ना की खेती करने वाले किसान आर्थिक संकट से जूझते दिख जाते हैं। कारण स्पष्ट है- उत्पादन का सही दाम नही मिल पाना और लागत ज्यादा एवं उत्पादन का सही इस्तेमाल न कर पाना। लेकिन हम एक ऐसी मशीन के बारें में बताने जा रहे है, जिससे गन्ना खेती करने वाले किसानों को कम समय एवं लागत में अच्छा लाभ कमा कर दें सकती है। हम बात कर रहे है गन्ने का रस निकालने वाली नई इलेक्ट्रिकल मशीन की। दरअसल इस नई तकनीक की मशीन से आप आसानी से गन्ने का रस निकाल सकते है और उस रस से बनने वाले चीजों को बाजार में बेचकर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते है। तो चलिए ट्रैक्टरगुरू के इस पोस्ट में इस नई तकनीक रस मशीन के बारे में जानते है।
गन्ने का रस निकालने की नई तकनीक मशीन
बता दें कि भारत देसी जुगाड के लिए काफी जाना जाता है। यहां किसी भी प्रकार के काम को आसान बनाने से लेकर समय की बचत करने तक, हर का जुगाड़ तैयार कर लिया जाता है। फिर चाहे गांव हो या शहर, हर जगह अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से जुगाड़ तैयार हो ही जाता हैं। आपने कभी अपने गांव या शहर में गर्मी के सीजन में सड़क के किनारे खड़े जूस के ठेलों पर भीड़ देखी ही होगी। वहा अपने जूस पेरने के लिए दुकानदार को हाथ से जोर लगाते देखा जा सकता है। वहीं, कुछ दुकानों पर जेनरेटर के जरिए चलने वाली मशीन भी देखी जाती है, और भी कई देसी जुगाड़ देखे होगे। वो कहते है ना जुगाड़ से ही नए अविष्कार की शुरुआत होती है। बता दें कि हाल ही में गन्ने का रस निकालने वाली नई मशीन मार्केट में आई है। जिसमें बिना मेहनत के ही गन्ने का जूस कुछ ही सेकंड में निकाल सकते है। सिर्फ गन्ने को नई इलेक्ट्रिकल मशीन में डालना होता है और फिर रस अपने आप निकल आता है। गन्ने का जूस पीने के लिए काफी देर खड़े होने की जरूरत नहीं है। कुछ ही सेकेंड में आपके हाथ में गन्ने का रस होगा।
खड़ा कर सकते है खुद का अच्छा बिजनेस
यह तो हम सभी जानते है कि गन्ना देश की नहीं बल्कि हर राज्य की नगदी फसल है। गन्ना किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यदि किसान गन्ने के उत्पादन का सही इस्तेमाल करे, तो यह उन्हें लाखों तक की कमाई भी दे सकती है। गन्ने से बनने वाले चीजें आपको बाजार में अच्छा लाभ कमा कर देंगी। इसके लिए आपकों सिर्फ थोड़े से इन्वेस्टमेंट करने की आवश्यकता है। आप इस नई इलेक्ट्रिकल मशीन में इन्वेस्टमेंट करके खुद का एक अच्छा सा बिजनेस खड़ा कर सकते है। यह मशीन आपके लिए बड़े काम की साबित हो सकती है। सिर्फ थोड़े से इन्वेस्टमेंट के बदले आपको सीजन में अच्छा मुनाफा हो सकता है। इस मशीन की कीमत करीब 30 से 35 हजार रुपए है। हालांकि, एक सीजन में विदेशी मुद्रा व्यापार के प्रकार ही मशीन की लागत निकल आएगी। यदि कोई इस मशीन को खरीदने के बाद बिजनेस करता है तो बिना मेहनत के कमाई की जा सकती है। इस मशीन की खास बात यह है कि इस मशीन से सीधे ठंडा रस निकलता है और बर्फ डालने की जरूरत भी नहीं होती।
गन्ने से तैयार करे गुड़ और शक्कर
किसानों के लिए गन्ने से गुड़ और शक्कर तैयार कर बाजार में अच्छे दाम पर बचे सकते है। देखा जाए तो एक कुंतल गन्ने से 13 किलो तक किसान आसानी से गुड़ तैयार कर सकता हैं। क्योंकि चीनी या उसकी शाखा-प्रशाखाओं को प्राप्त करने का सबसे प्रमुख स्रोत गन्ना ही है।
चीनी उद्योग हमारे देश के प्रमुख उद्योगों में है। हालांकि इस उद्योग को बहुत पुराना नहीं कहा जा सकता चूंकि चौथे दशक के बाद, या दूसरे महायुद्ध के दौरान ही इसका तेजी से विकास हुआ है। किन्तु शक्कर, गुड़, मिश्री आदि के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती। हजारों वर्षों से यह उद्योग यहां स्थापित हैं, बल्कि हम अति प्राचीन काल से ही विश्व के प्रायः सभी भागों को इनका निर्यात करते रहे हैं। गुड़, राब, शक्कर, खांड, बूरा, मिश्री, चीनी आदि तैयार करने के लिए आप करीब 10 लाख रूपए की लागत वाली पेराई की मशीन से बिजनेश शुरू कर सकते है। एक बार के इन्वेस्टमेंट करने से किसानों को कई सालों तक इससे लाभ मिलता रहेगा।
केंद्र एवं राज्य सरकारें देती है सहूलियत
देश के सभी राज्यों में गन्ने की खेती होती है। गन्ना उत्पादक प्रमुख राज्यों में उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पंजाब , हरियाणा व बिहार आदि शामिल है। इसका सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तरप्रदेश राज्य से होता है, जो कि कुल उत्पादन का करीब 50 प्रतिशत है। संपूर्ण भारत में गन्ने की औसत उत्पादकता लगभग 720 क्विटल/हेक्टेयर है। सामान्य तौर पर कहा जाए तो गन्ना, भारत की महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों में से एक है और इसका नकदी फसल के रूप में एक प्रमुख स्थान है। गन्ने की खेती बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देती है और विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इन्हीं वजहों से देश की सभी राज्य सरकारें और केंद्र सरकार गन्ना खेती करने वाले किसानों खाद बीज पर सब्सिडी देना, उपज बेचने के लिए समुचित बाजार की व्यवस्था करना और नई तकनीक मशीनों पर विदेशी मुद्रा व्यापार के प्रकार सब्सिडी देना एवं किसानों को बकाया राशि का भुगतान करने जैसी तमाम तरह की सहूलियत देती है।
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SBI के सीईए बोले, हर रुपये के मूल्यह्रास पर सॉफ्टवेयर निर्यात 25 करोड़ डॉलर बढ़ता है
चेन्नई । भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने यहां कहा कि भारत का सॉफ्टवेयर निर्यात राजस्व और प्रेषण वैश्विक तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और रुपये के मूल्यह्रास के कारण चालू खाता घाटे (सीएडी) में वृद्धि के खिलाफ एक मजबूत काउंटर चक्रीय बफर के रूप में कार्य करता है। एसबीआई के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सौम्य कांति घोष ने एक शोध रिपोर्ट में कहा कि प्रत्येक रुपये के मूल्यह्रास के लिए सॉफ्टवेयर निर्यात में 25 करोड़ डॉलर की वृद्धि होती है।
घोष ने कहा कि उम्मीदों के विपरीत, वित्तवर्ष 23 की पहली तिमाही में भुगतान संतुलन (बीओपी) संख्या ने सेवा निर्यात और प्रेषण के रूप में एक मजबूत प्रति-चक्रीय बफर दिखाया है।
उदाहरण के लिए पहली तिमाही में भारत के सीएडी के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 30 अरब डॉलर/3.8 प्रतिशत को तोड़ने की उम्मीद थी, लेकिन वास्तविक संख्या सकल घरेलू उत्पाद के 2.विदेशी मुद्रा व्यापार के प्रकार 8 प्रतिशत पर आ गई।
घोष ने कहा कि मजबूत प्रेषण और सॉफ्टवेयर निर्यात के कारण सकारात्मक आश्चर्य हुआ, सीएडी को 60 आधार अंकों की वृद्धि मिली।
उन्होंने कहा, "हम उम्मीद करते हैं कि अगर मजबूत प्रेषण और सॉफ्टवेयर निर्यात के ऐसे रुझान जारी रहे हैं (आरबीआई डेटा से पता चलता विदेशी मुद्रा व्यापार के प्रकार है कि क्यू 2 में सॉफ्टवेयर निर्यात मजबूत था) और भारत का सीएडी दूसरी तिमाही में जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के थ्रेशोल्ड स्तर से नीचे आता है, तो सीएडी वित्तवर्ष 23 में भी 3 प्रतिशत बेंचमार्क के करीब हो सकता है और सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।"
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है, क्योंकि स्वैप लेनदेन रिवर्स होता है और इस प्रकार रुपये पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसा कि इस समय देखा जा रहा है।
भारत के सीएडी को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के लिए घोष ने स्ट्रक्चरल वेक्टर ऑटो-रिग्रेशन (एसवीएआर) मॉडल पर काम किया।
भारत के आयात बिल में तेल का 30 प्रतिशत हिस्सा होने के साथ, मैक्रो-इकोनॉमिक वैरिएबल पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है। तेल आयात मूल्य में वृद्धि सीधे व्यापार घाटे को प्रभावित करती है। इसके अलावा, इसका परिणाम मुद्रास्फीति में भी होता है।
घोष के अनुसार, एसवीएआर मॉडल सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात के रूप में तेल की बढ़ी हुई कीमतों के लिए एक काउंटर चक्रीय प्रतिक्रिया पेश करता है, जो रुपये के मूल्यह्रास के कारण सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है।
एसवीएआर मॉडल के परिणाम स्पष्ट रूप से सीएडी पर तेल की कीमत के झटके के नकारात्मक प्रभाव, मुद्रास्फीति और एक दिशा में विकास और रुपये के मूल्यह्रास के परिणामस्वरूप सीएडी पर सॉफ्टवेयर निर्यात के सकारात्मक प्रभाव का विचार देते हैं।
विशेष रूप से तेल की कीमतों में सकारात्मक झटके से सीएडी में तत्काल और तेज वृद्धि होती है, जो लगभग आठ तिमाहियों में पूरी तरह से समाप्त हो जाती है।
उन्होंने कहा कि शुरुआती सकारात्मक तेल कीमतों के झटके के बाद व्यापार घाटा भी दो तिमाहियों तक बढ़ जाता है।
घोष ने कहा, "इसका मतलब यह है कि तेल की कीमतों में झटके के कारण भारत का व्यापार घाटा चालू विदेशी मुद्रा व्यापार के प्रकार वित्तवर्ष की पहली छमाही में पहले से ही प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकता है।"
जीडीपी के मामले में, तेल की कीमतों में सकारात्मक झटके से तत्काल गिरावट आती है, जो हालांकि तीसरी तिमाही के बाद उलटने लगती है और सातवीं तिमाही के बाद पूरी तरह से समाप्त हो जाती है।