वित्तीय बाजार के प्रकार

वित्तीय बाजार अंग्रेजी में
The two Governments expect that this will contribute to the stability of global financial markets including emerging economies.
वैश्विक वित्तीय बाजारों और विश्व अर्थव्यवस्था में पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को गम्भीर धक्का पहुंचा है।
The Western dominance of the global financial markets and the global economy as a whole has been shaken to the core.
We are working with a number of countries, financial markets and funds on these financial instruments.
वित्तीय बाजारों में यह अप्रत्याशित अव्यवस्था और परिणामस्वरूप अस्थिरता, वैश्विक समृद्धि के लिए खतरा है ।
This unprecedented turbulence in financial markets and the resulting instability threatens global prosperity.
दोनों सरकारों को उम्मीद है कि इससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ वैश्विक वित्तीय बाजारों में स्थिरता आएगी।
The two Governments expect that this will contribute to the stability of global financial markets including emerging economies.
कार्यसमूह – 2 अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत बनाने और वित्तीय बाजारों में अखंडता को बढ़ावा देने के बारे में था ।
Working Group-2 was on reinforcing international cooperation and promoting integrity in financial markets.
पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार में आई मंदी से देश के हमारे कुछ भागों में भी असामान्य स्थिति उत्पन्न हुई।
Last year’s convulsions in the international financial markets have provoked an unseemly amount of gloating on the part of some in our country.
वित्तीय प्रणाली के घटक - components of the financial system
वित्तीय प्रणाली के घटक - components of the financial system
वित्तीय प्रणाली के चार मुख्य घटक होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
1. वित्तीय संस्थाएँ
3. वित्तीय प्रपत्र
1. वित्तीय संस्थाएँ यह वित्तीय प्रणाली का प्रथम घटक है। ये संस्थाएँ उद्योगों को संस्थानीय वित्त प्रदान करती है। ये बचतकर्ता तथा निवेशकर्ता के बीच मध्यस्थ का काम करती है तथा व्यक्तिगत बचतों के संस्थानीकरण में सहयोग देती है।
वित्तीय संस्थाओं तथा मध्यस्थों का मुख्य कार्य निगमों द्वारा निर्गमित प्रत्यक्ष संपत्तियों या प्रपत्रों या प्रतिभूतियों को अप्रत्यक्ष प्रतिभूतियों में बदलना है। ये अप्रत्यक्ष प्रतिभूतियां प्रत्यक्ष अथवा प्राथमिक प्रतिभूतियों की अपेक्षा व्यक्तिगत निवेशकर्ताओं को अधिक अच्छे निवेश उपलब्ध कराती है। उदाहरण के लिए, संयुक्त कोषों की इकाइयाँ, UTI तथा बीमा पालिसी तथा बैंक जमा आदि।
वित्तीय संस्थाएँ वे व्यावसायिक संगठन हैं जो वित्तीय लेन-देन करती हैं। वे निवेशकर्ताओं तथा ऋणियों को मिलने की सुविधाएँ प्रदान करती हैं। वित्तीय संस्थाएँ निवेशकों तथा ऋणियों को विभिन्न सेवाएँ प्रदान करती हैं;
जैसे निवेश अवसर, गृह वित्त, जोखिम पूँजी, दलाली, पुनर्गठन, विव्धिकरण आदि । वे वित्तीय प्रपत्रों का क्रय तथा विक्रय करती है। दलाल तथा वित्तीय संस्थाएँ भिन्न हैं। दलाल एक एजेंट है जो प्रतिभूतियों के क्रेताओं तथा विक्रेताओं के बीच लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है । परन्तु वह स्वयं धन उधार नहीं लेता जबकि वित्तीय संस्थाएँ स्वयं उधार लेती है तथा इसके बाद उच्च ब्याज दरों पर ऋण देती हैं।
वित्तीय संस्थाओं को विभिन्न रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें से दो महत्वपूर्ण वर्गीकरण निम्नलिखित हैं
i. बैंकिंग संस्थाएँ और गैर-बैंकिंग संस्थाएँ बैंकिंग संस्थाएँ साख का सृजन करती हैं
जबकि गैर-बैंकिंग संस्थाएँ साख की प्रबंधक होती हैं। बैंकिंग संस्थाओं का विशिष्ट लक्षण इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि यह अन्य संस्थाओं के विपरीत अर्थव्यवस्था की भुगतान तंत्र प्रक्रिया में भाग लेती हैं यानी की वे लेन-देन की सेवाएँ प्रदान करती हैं तथा उनकी जमा देयताएं राष्ट्रीय मुद्रा आपूर्ति का मुख्य भाग होती है।
ii. मध्यस्थ और गैर-मध्यस्थ संस्थाएँ - बचतकर्ताओं और निवेशकों के बीच में मध्यस्थता करने वाली संस्थाएँ मध्यस्थ संस्थाएँ है। वे मुद्रा उधार देती हैं तथा बचतों को गतिशील करती हैं; उनकी देयताएं अंतिम तौर पर बचतकर्ताओं के प्रति होती है, जबकि उनकी परिसम्पत्तियाँ निवेशकों या कर्जदारों से आती हैं।
गैर-मध्यस्थ संस्थाएँ ऋण का व्यापार करती हैं, परन्तु उन्हें सीधे बचतकर्ताओं से संसाधन प्राप्त नहीं होते हैं। सभी बैंकिंग संस्थाएँ मध्यस्थ हैं। बहुत-सी गैर-बैंकिंग संस्थाएँ भी मध्यस्थ के रूप में कार्य करती हैं तथा ऐसा करने पर उन्हें गैर-बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ संस्थाएँ कहा जाता है।
2. वित्तीय बाजार वित्तीय बाजार वित्तीय प्रणाली के संगठन का महत्वपूर्ण घटक है। व्यावसायिक वित्त का संबंध व्यावसायिक इकाइयों में निवेश के लिए कोषों का प्रबंधन करने से है। निवेशकर्ताओं को अवश्य ही कोष उपलब्ध करवाने चाहिए और इसका अर्थ यह है
कि निवेशकर्ताओं को उपभोग कम करके बचत को बढ़ाना चाहिए जिससे कोषों में वृद्धि होगी कोषों के बचतकर्ता तथा T उपभोगकर्ता एक बाजार में एकत्रित होते हैं जिसे वित्तीय बाजार कहा जा सकता है। अतः वित्तीय बाजारों की गतिविधियों में मुद्रा और मौद्रिक संपत्तियों में व्यापार कर्ण सम्मिलित है तथा वित्तीय बाजारों की प्रक्रियाओं को वित्तीय प्रणाली कहा जा सकता है। वित्तीय बाजार बचत निवेश प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वित्तीय बाजार वित्त के स्रोत नहीं हैं।
ऐसे संस्थागत प्रबंधों के रूप में वित्तीय बाजारों को निर्दिष्ट किया जा सकता है जहाँ पर वित्तीय संपत्तियों तथा साख प्रपत्रों का लेन-देन किया जाता है।
अतः यह भी कहा जा सकता है कि वित्तीय बाजार ऐसे बाजार हैं जहाँ विभिन्न व्यक्तियों, फर्मों तथा संस्थाओं की साख की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
वित्तीय बाजारों को दो प्रमुख बाजारों में वर्गीकृत किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं: i. प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार नए वित्तीय दावों या नई प्रतिभूतियों में लेन-देन का कार्य प्राथमिक बाजार द्वारा किया जाता है और इस कारण, वे नव निर्गमन बाजार' कहलाते हैं। द्वितीयक बाजार पहले से ही जारी या मौजूद या बकाया प्रतिभूतियों में लेन-देन करते हैं। प्राथमिक बाजार बचतों को गतिशीलता प्रदान करते हैं
तथा व्यापारिक इकाइयों को नई या अतिरिक्त पूँजी की आपूर्ति करते हैं। द्वितीयक बाजार अतिरिक्त पूँजी की आपूर्ति में सीधे योगदान नहीं करते हैं, बल्कि वे अप्रत्यक्ष रूप से प्राथमिक बाजार में जारी की गयी प्रतिभूतियों को तरल बनाकर पूँजी की आपूर्ति करते हैं।
ii. मुद्रा बाजार एवं पूँजी बाजार मुद्रा बाजार ऐसा बाजार है जहाँ पर अल्पकालिक मौद्रिक संपत्तियों अथवा मुद्रा के दावों में व्यवहार किया जाता है, जो कि प्रायः एक वर्ष से कम के होते हैं। इसमें अंतः बैंक कॉल पूँजी के व्यवहार शामिल हैं जिसे कॉल पूँजी बाजार कहा जाता है तथा इसमें सरकारी कोषागार बिल तथा निजी क्षेत्र के वाणिज्यिक बिल भी शामिल हैं, जिन्हें बिल बाजार के नाम से जाना जाता है।
यह वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है जो कि नकद की अस्थायी कमियों को पूरा करने के लिए अल्पकालीन कोष उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं। ये आय वित्तीय बाजार के प्रकार प्राप्ति के उद्देश्य से अतिरिक्त कोषों के पुनः प्रयोग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। रिज़र्व बैंक तथा वाणिज्यिक बैंक मुद्रा बाजार के मुख्य सहभागी वित्तीय बाजार के प्रकार हैं। इसके अलावा LIC, GIC, UTI, IDBI, NABARD, म्यूच्यूअल फंड तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ भी मुद्रा बाजार में कार्य कर रही हैं।
वे संस्थागत प्रबंध जो दीर्घकाल कोषों के उधार एवं ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं वे पूँजी बाजार कहलाते हैं।
वे सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रारंभ किये गए सार्वजानिक ऋणों तथा नए पूँजी निर्गमनों द्वारा निजी बचतों को औद्योगिक तथा वाणिज्यिक निवेशों में परिवर्तित करते हैं।
पूँजी / प्रतिभूति बाजार अब SEBI (Securities Exchange Board of India) द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं । संयुक्त कोष (Mutual Fund), LIC, GIC, FII, विकास एवं सार्वजानिक वित्त संस्थाएँ, निगम तथा व्यक्ति विशेष इस बाजार के मुख्य सहभागी हैं।
3. वित्तीय प्रपत्र – व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध, भावी तिथि हेतु धनराशि के भुगतान और / या ब्याज या लाभांश के रूप में सावधिक भुगतान के लिए वित्तीय प्रपत्र एक दावा या अधिकार है।
यहाँ शब्द ‘और/या' का वित्तीय बाजार के प्रकार तात्पर्य है कि इनमें से कोई एक भुगतान पर्याप्त होगा परन्तु दोनों के लिए वचन दिया जा सकता है।
प्राथमिक प्रतिभूतियाँ एवं द्वितीयक प्रतिभूतियाँ - वित्तीय प्रतिभूतियाँ प्राथमिक या द्वितीयक प्रतिभूतियाँ हो सकती हैं। प्राथमिक प्रतिभूतियों को प्रत्यक्ष प्रतिभूतियाँ भी कहा जाता है क्योंकि वे कोष के अंतिम तौर पर खरीददारों द्वारा मूलभूत उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष रूप से (या सीधे) जारी की जाती है।
वित्तीय संस्था में विपणन, तरलता, प्रतिवत्यर्ता विकल्पों के प्रकार, प्रतिफल, जोखिम और लेन-देन की लागतों के संबंध में अंतर पाया जाता है।
4. वित्तीय सेवाएँ प्रमुख वित्तीय सेवाएँ, जैसे- वाणिज्यिक बैंकिंग पट्टे पर देना या लेना, किराये पर क्रय, साख रेटिंग इत्यादि वित्त मध्यस्थों द्वारा प्रदान की जाती है। वित्तीय मध्यस्थों द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाएँ, निवेशकों के पास उपलब्ध जानकारी के अभाव और वित्तीय प्रपत्रों और बाजारों के ज्यादा से ज्यादा परिष्कृत होने के बीच पाए जाने वाले अन्तराल को पूरा करती है।
CBSE Notes for class 12 th
Chapter 10. वित्तीय बाज़ार : पेज 1 Business Study class 12th:Hindi Medium NCERT Book Solutions
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NCERT Books Subjects for class 12th Hindi Medium
Chapter 10. वित्तीय बाज़ार
पेज 1
अध्याय -10
वित्तीय बाजार
वित्तीय बाजार : वित्तीय बाजार से अभिप्राय वित्तीय संपत्तियों के सृजन व विनिमय से हैं |
वित्तीय बाजार वित्त के पूर्ति कर्ता व माँग पक्षकारों को जोड़ने का कार्य करता हैं |
वित्तीय बाज़ार के कार्य
(1) वित्तीय बाज़ार रोकड़ के रूप में पड़े वित्तीय को गति प्रदान कर उनकों उचित प्रयोग की ओर ली जाता हैं | यह वित्तीय बचत कर्ताओं और वित्त की माँग करने वालों को जोड़ने का कार्य करता हैं |
(2) वित्त्यी बाजार प्रतिभोतियों के मूल्य का निर्धारण में भी मददगार हैं |
(3) वित्तीय बाज़ार में कभी भी प्रतिभोतियों को रोकड़ में व रोकड़ को प्रतिभूतियों में बदलवाया जा सकता हैं | इस प्रकार वित्तीय बाज़ार वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करता हैं |
(4) वित्तीय बाज़ार प्रतिभूतियों से संबंधित सूचनाएं भी उपलब्ध करता हैं |
वित्तीय बाज़ार के प्रकार
(2) पूंजी बाज़ार ; इसके प्रकार
मुद्रा बाज़ार : मुद्रा बाज़ार से अभिप्राय ऐसे बाज़ार से है जिसकें अंतर्गत केवल अल्पकालीन प्रतिभूतियों में लेन-देन किए जाते हैं | इसकी भुगतान अवधि एक वर्ष या उससे कम की होती हैं | जैसे :- खजाना बिल, कॉमर्शियल बिल, कॉमर्शयल पेपर, माँग मुद्रा, जमा प्रमाण पत्र और वाणिज्यिक बिल आदि |
मुद्रा बाज़ार प्रपत्र
(1) खजाना बिल : इससें अभिप्राय उस अल्पकालीन प्रपत्र से है जो केंद्रीय सरकार द्वारा उनकी अल्पकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्तीय संस्थाओं अथवा लोगों को जारी किए जाते हैं | इसे जीरो कूपन बांड भी कहा जाता हैं |
(2) कमर्शियल पेपर : यह अल्पकालीन असुरक्षित प्रतिज्ञा पत्र होते हैं | यह एक प्रकार का असुरक्षित प्रतिज्ञा-पत्र होता हैं |
(3) माँग मुद्रा/अल्प-सुचना ऋण : यह ऐसे प्रपत्र है जिनका भुगतान ऋणी अथवा ऋणदाता की इच्छा पर किया जाता हैं | इसका उपयोग मुख्यता बैंकों द्वारा अपनी नकद आरक्षित अनुपात को बनाए रखने के लिए किया जाता हैं |
(4) जमा प्रमाण-पत्र : यह विनिमय साध्य प्रपत्र होते हैं जो कि बेचान द्वारा हस्तांतरण किए जा सकते हैं |
(5) वाणिज्यिक बिल : यह भी विनिमय साध्य प्रपत्र है जिसका उपयोग उधार बिक्री के लिए वित्तीय व्यवस्था करने के लिए किया जाता हैं |
Market Risk- मार्केट रिस्क
मार्केट रिस्क क्या होता है?
मार्केट रिस्क (Market Risk) या बाजार जोखिम यह संभावना है कि कोई व्यक्ति या अन्य संस्था वित्तीय बाजारों में निवेश के समग्र प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले कारकों के कारण नुकसान का अनुभव करेगा।बाजार जोखिम या संस्थागत जोखिम एक ही साथ समस्त बाजार के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। बाजार जोखिम को विविधीकरण के कारण खत्म नहीं किया जा सकता।
विशिष्ट जोखिम या अप्रणालीगत जोखिम में किसी विशिष्ट सिक्योरिटी का प्रदर्शन शामिल रहता है और इसे डायवर्सिफिकेशन के जरिये कम किया जा सकता है। मार्केट रिस्क ब्याज दरों, एक्सचेंज दरों, भूराजनैतिक घटनाओं या मंदी के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।
मार्केट रिस्क को समझना
मार्केट रिस्क और स्पेसफिक रिस्क (अप्रणालीगत) निवेश जोखिम के दो प्रमुख वर्ग हैं। मार्केट रिस्क जिसे प्रणालीगत जोखिम भी कहा जाता है, को डायवर्सिफिकेशन के जरिये खत्म नहीं किया जा सकता। हालांकि अन्य तरीकों से इसे हेज किया जा सकता है। मार्केट रिस्क के स्रोतों में मंदी, राजनीतिक भूचाल, ब्याज दरों में परिवर्तन, प्राकृतिक आपदायें और आतंकी हमले शामिल हैं। प्रणालीगत या मार्केट रिस्क एक ही समय पूरे बाजार को प्रभावित कर सकता है। इसका विपरीत अप्रणालीगत जोखिम होता है जो किसी विशिष्ट कंपनी या उद्योग के लिए अनूठा होता है। इसे निवेश पोर्टफोलियो के संदर्भ में स्पेसफिक रिस्क, डायवर्सिफाइएबल रिस्क या रेजीडुअल रिस्क भी कहा जाता है।
अप्रणालीगत जोखिम को डायवर्सिफिकेशन के जरिये कम किया जा सकता है। बाजार वित्तीय बाजार के प्रकार जोखिम कीमत परिवर्तनों के कारण होता है। स्टॉक्स, करेंसियों या कमोडिटी के मूल्यों में परिवर्तनों के मानक परिवर्तन को मूल्य अस्थिरता के रूप में संदर्भित किया जाता है। अस्थिरता को वार्षिक लिहाज से रेट किया जाता है और इसे पूर्ण तरीके से जैसेकि 10 डॉलर या आरंभिक मूल्य की प्रतिशतता जैसेकि 10 प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। अमेरिका में सार्वजनिक रूप से ट्रेड करने वाली कंपनियों को सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) के सामने इसका खुलासा करने की आवश्यकता होती है कि किस प्रकार उनकी उत्पादकता और परिणाम वित्तीय बाजारों के प्रदर्शन से लिंक किया जा सकता है। इस आवश्यकता का अर्थ है वित्तीय जोखिम के प्रति कंपनी के एक्सपोजर के बारे में विस्तृत जानकारी देना।
Financial Market Operation (वित्तीय बाजार परिचालन) For B.Com, BBA, MBA & M.Com
प्रस्तुत पुस्तक ‘वित्तीय बाजार परिचालन’ (Financial Market Operation) Book का यह नवीन संस्करण है। यह पुस्तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में लागू बी.कॉम (B.Com) पाठ्यक्रम के अनुसार तैयार की गई है। बी.बी.ए (BBA), एम.बी.ए (MBA).,बी. ए. (B.A), एम. ए.(M.A), म.कॉम (M.Com) और अन्य कोर्स कर रहे छात्रों के लिए भी यह पुस्तक उपयोगी होगी। पुस्तक को सरल हिन्दी भाषा में प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में सर्वत्र आम बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया गया है। पुस्तक में तीनों प्रकार के प्रश्न- दीर्घ उत्तरीय, लघु उत्तरीय एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का समावेश किया गया है। तकनीकी शब्दों को हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में दिया गया है। प्रस्तुत संस्करण विद्वान् प्राध्यापकों विद्यार्थियों तथा सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
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विषय सूची :-
1. भारतीय वित्त बाजार 2. मुद्रा बाजार – आशय, उद्देश्य, प्रकृति एवं लाभ 3. माँग मुद्रा बाजार 4. भारतीय मुद्रा बाजार की आधुनिक प्रवृत्तियाँ |
इकाई II – 5. पूँजी बाजार 6. पूँजी बाजार के विभिन्न मध्यस्थ 7. प्राथमिक ( नवप्रवर्तन ) बाजार 8. द्वितीय (स्टॉक) बाजार 9. स्टाक एक्सचेन्ज – भूमिका एवं कार्य 10. सूचीयन प्रक्रिया एवं वैधानिक औपचारिकताएँ 11. सार्वजनिक निर्गमन – मूल्य निर्धारण एवं विपणन 12. स्टॉक बाजार – उ म, विकास एवं वर्तमान स्थिति (एन. एस. ई. एवं ओ. टी. सी. ई. आई. सहित) |
इकाई III – 13. स्टॉक बाजार निवेशक संरक्षण 14. भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) 15. कम्पनी विधान मण्डल |
इकाई IV – 16. स्टॉक दलाल व वित्तीय बाजार के प्रकार उप – दलाल 17. बाजार निर्माता एवं जॉबर (कृत्यकी) 18. निवेश परामर्शदाता 19. संस्थागत निवेशक 20. अनिवासी भारतीय |
इकाई V – 21. मर्चेण्ट बैकिंग – कार्य एवं भूमिका 22. सेबी के दिशा निर्देश 23. साख आंकलन – अवधारणा, कार्य एवं प्रकार |