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लाभ पद्धति

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Gayatri Pariwar

इस युग को शिक्षा और सभ्यता का युग कहा जाता है। चारों ओर शिक्षा और सभ्यता की धूम है। शिक्षित और सभ्य बनने तथा बनाने के लिए नाना विधि, आयोजन हो रहे हैं। बालक जैसे ही 5-6 वर्ष के होते हैं वैसे ही उन्हें शिक्षित बनाने के लिए स्कूल में भेज दिया जाता है। बालक पढ़ना आरम्भ करता है और पन्द्रह बीस वर्ष (अपने जीवन का लगभग एक तिहाई भाग) स्कूल कालेजों में व्यतीत करता हुआ शिक्षित बनकर निकलता है। उसके पास एम. ए., बी. ए. आदि की डिग्रियाँ होती हैं, जिन माता-पिता ने उन्हें पेट काट कर शिक्षा का अत्यन्त भारी खर्चा उठाया वे आशा करते हैं कि इतनी बड़ी साधना के बाद हमारा लड़का बहुत ही सुयोग्य बनकर निकलेगा। उसकी शिखा अपने शुभ परिणामों से आनन्दमय, वातावरण की सृष्टि करेगी।

परन्तु शिक्षा समाप्त करके निकले हुए छात्र की वास्तविक दशा देखकर अभिभावकों की आँखों तले अंधेरा छा जाता है। लड़के का स्वास्थ्य चौपट नजर आता है। हड्डियों का ढांचा एक पीले चमड़े के खोल में लिपटा होता है। ऐनक नाक पर रखे बिना उनकी आँखें काम नहीं करतीं। पिचका हुआ चेहरा, रोती सी सूरत, बैठी हुई आंखें, यह बताती हैं कि शिक्षा के अनावश्यक भार ने इनके स्वास्थ्य को चबा डाला। रहा बचा जीवन, रस कुसंग की शर्मनाक भूखों में बह गया। शारीरिक दृष्टि से वे इतने अशक्त होते हैं कि भारी परिश्रम के काम उनकी क्षमता से बाहर हो जाते हैं।

सभ्यता के नाम पर लाभ पद्धति फैशन और उच्छृंखलता दो ही बातें वे सीख पाते हैं। बालों के सजाव शृंगार में वेश्याएं उनकी होड़ नहीं करतीं। अनावश्यक, असुविधाजनक, बेढ़ंगों, खर्चीली, यूरोपीय फैशन की, नये-नये तर्ज का पोशाक पहनने में वे बहुत आगे बढ़े-चढ़े रहते हैं। बड़ों के प्रति आदर भाव का दर्शन नहीं होता। यही इनकी सभ्यता है जीवन यापन के लिये क्लर्की करने के अतिरिक्त और कोई चारा इनके पास नहीं होता। जीवन भर पराई ताबेदारी करके पेट पालने के अतिरिक्त और साधन उनके पास नहीं होता। स्वर्गीय कविवर अकबर की उक्ति उनके विषय में पूरी तरह चरितार्थ होती हैं

“गुजर उनका हुआ कब,

कब आलमें अल्लाह अकबर में।

कालिज के चक्कर में,

मरे साहब के दफ्तर में॥”

जीविकोपार्जन की दिशा में वे सर्वथा लुँज पुँज, दूसरों की दया पर निर्भर होते हैं। जब किसी नौकरी के लिए कोई छोटा-मोटा स्थान खाली होने की सरकारी विज्ञप्ति अखबारों में निकलती है तो एक-2 जगह के लिए हजारों दरख्वास्तें पहुँचती हैं।

जिन्हें सरकारी नौकरी मिल जाती है वे समझते हैं कि इन्द्र का इन्द्रासन मिल गया। यदि वहाँ बुरी से बुरी परिस्थिति में रहना पड़े, दिन-रात अपमानित होना पड़े एवं आत्म हनन करके अनुचित काम भी करना पड़े तो भी इसे छोड़ने का साहस नहीं कर पाते, क्योंकि वे जानते हैं कि जितने पैसे यहाँ मिलते हैं अपनी हीन योग्यता और हीन अनुभव के आधार पर उतना भी कमाना उनके लिये कठिन है।

लार्ड मेकाले की निश्चित योजना के अनुसार वर्तमान अँग्रेजी शिक्षा पद्धति केवल अंग्रेजों लिए ही उपयोगी है। विदेशी शासन यंत्र ढोने के लिए खस्सी बैल उन्हें सुविधापूर्वक मिलते रहने के लिए यह फैक्टरी उनके बहुत काम की है। परन्तु भारतीय दृष्टिकोण से विचार करने पर वर्तमान शिक्षा पद्धति व्यर्थ ही नहीं हानिकर भी है। इनमें छात्र की व्यक्तिगत योग्यताएं विकसित होने के लिये गुंजाइश नहीं है। अनुपयोगी, अनावश्यक जीवन में कुछ काम न आने वाली बातें रटते-रटते लड़कों का दिमाग चट जाता है, स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, जीवन का सबसे कीमती भाग नष्ट हो जाता है। बदले में एक सनद का कागज मिलता है जिसे दिखाकर किसी किसी को कहीं, “मोस्ट ओविडियन्ट सर्वेन्ट” कहाने का सौभाग्य प्रदान करने वाली नौकरी मिल जाती है। जिन्हें वह भी नहीं मिलती वे फटे हाल बाबू इधर से उधर जूतियाँ चटकाते फिरते हैं और उस सनद की निरर्थकता पर भारी पश्चात्ताप प्रकट करते हैं।

हाथ से काम करना अपमान जनक अनुभव होता है बाबूजी के लिए अपना सूट केस लेकर आधे मील चलना अपमानजनक है। घर के काम काज करते हुये, परिश्रम पड़ने वाले कामों में हाथ डालते हुये उन्हें ऐसी लज्जा लगती है मानो कोई भयंकर पाप कर रहे हों। ऐसी दशा में कोई स्वतन्त्र कारोबार उनके द्वारा होना भला किस प्रकार सम्भव है। बिना पढ़े ताँगे वाले, खोमचे वाले, कुली, गाड़ी वाले, मजूर आदि उससे कहीं अधिक कमा लेते हैं जितना कि बाबू लोगों को तनख्वाह मिलती है। स्वस्थता एवं दीर्घ जीवन का उपयोग भी इन शिक्षितों की अपेक्षा वे अशिक्षित अधिक करते हैं।

लड़कियाँ भी इस शिक्षा प्रणाली के दोषों से अधिक बच नहीं पाती। पढ़ लिखकर जहाँ उन्हें गृहलक्ष्मी बनना चाहिये वहाँ वे फैशन परस्त तितलियाँ बन जाती हैं। हाथ से काम करने में वे अपनी हेठी समझती हैं। उच्छृंखलता, तुनकमिज़ाजी, अवज्ञा एवं विलासिता के कुसंस्कार उन्हें भी सफल गृहस्थ जीवन के सुसंचालन में अयोग्य बना देते हैं। यूरोप में भी दुखदायी वातावरण वहाँ के गृहस्थ जीवनों को नरक बनाये हुए हैं उसकी छाया किन्हीं अंशों में इस शिक्षा पद्धति द्वारा भारतीय गृहस्थों में भी जा पहुँचती है।

माता-पिता अपने बालकों को इसलिये पढ़ाते हैं कि पढ़ लिखकर अधिक सुयोग्य बनें। परन्तु जिस शिक्षा के द्वारा सुयोग्यताओं का लोप होकर अयोग्यताऐं उपलब्ध होती हैं। उसके लिए अभिभावकों का पैसा और बालकों का समय बर्बाद होने से क्या लाभ? अब तक ‘कोई अच्छी सरकारी नौकरी” मिलने की एक आशा प्रधान रूप से रहती थी पर अब तो उसका भी मार्ग बन्द हो चला है। क्योंकि एक तो अंग्रेजी शिक्षा का प्रचलन इतना अधिक हो गया है कि उनमें से एक प्रतिशत को भी सरकारी नौकरियाँ नहीं मिल सकती, दूसरे सेना से लौटे हुए व्यक्तियों को उन नौकरियों में प्रथम स्थान मिलेगा। इसके अतिरिक्त भारत, स्वशासन प्राप्त करने की दिशा में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। जैसे-जैसे इस दिशा में प्रगति होगी वैसे ही वैसे विदेशी भाषा जानने वालों को जो महत्व अब प्राप्त है वह घटेगा। इन सब कारणों से सरकारी नौकरी के लिए पढ़ने वालों का मार्ग क्रमशः अधिक कंटकाकीर्ण होता जायगा।

इन सब बातों पर विचार करते हुए अभिभावकों को यह विचारना होगा कि अपने बालकों को क्या पढ़ायें? अब ऐसी शिक्षा पद्धति अपनाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा बालक अपनी शारीरिक, मानसिक, साँस्कृतिक, आर्थिक और आत्मिक उन्नति कर सके। समर्थ स्वावलम्बी और व्यवहार कुशल और पुरुषार्थी बन सके। ऐसी शिक्षा ही सच्ची शिक्षा कहला सकने की अधिकारिणी है।

एक अनुभवी शिक्षा शास्त्री का मत है कि—”शिक्षा का लाभ पद्धति मुख्य उद्देश्य ही यह है कि वह मनुष्य की बुद्धि तथा हृदय की गुप्त शक्तियाँ पूर्ण विकास करें और उसे सर्वांग सुन्दर नागरिक बनावें।” जो मानव जीवन को सब दृष्टियों से विकसित करे, ऊँचे उठावे और आगे बढ़ावे उसी को सच्चे अर्थों में शिक्षा कहा जा सकता है, वर्तमान अंग्रेजी शिक्षा पद्धति इस दृष्टि से निकम्मी साबित हुई है। अपने प्राणप्रिय बालकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए हमें उनके लिए समुचित शिक्षा की ही व्यवस्था करनी चाहिये।

आधुनिक भारत लाभ पद्धति का इतिहास-द्वैध शासन के लाभ Gk ebooks

द्वैध शासन के लाभ
क्लाइव की द्वैध शासन की व्यवस्था उसकी बुद्धिमत्ता और राजनीतिज्ञता का प्रमाण थी। यह प्रणाली उस समय कम्पनी के हितों के दृष्टिकोण से सर्वोत्तम थी। दोहरे शासन से कम्पनी को निम्नलिखित लाभ प्राप्त हुए-
(1) कम्पनी के पास ऐसे अंग्रेज कर्मचारियों की कमी थी, जो भारतीय भाषाओं तथा रीति-रिवाजों से अच्छी प्रकार परिचित हों और जिन्हें शासन चलाने अथवा मालगुजारी वसूल करने का पर्याप्त अनुभव हो। उस समय यह आशा करना कि कम्पनी के कर्मचारी रातों-रात योग्य प्रशासक बन जाएंगे, निरर्थक था। यदि कम्पनी अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करती, तो शासन में अव्यवस्था फैल जाति। ऐसी स्थिति में कम्पनी के शासन का समस्त उत्तरदायित्व भारतीयों पर डाल दिया। ऐसा करके उसे बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। भारतीयों को प्रशासनिक अनुभव पर्याप्त मात्र में था, जिसके कारण शासन सुव्यवस्थित ढंग से चलने लगा।
(2) इंग्लैण्ड में कम्पनी को अभी भी मूलत: एक व्यापारिक कम्पनी समझा जाता था। इसलिए क्लाइव ने ब्रिटिश जनता तथा कम्पनी के संचालकों को धोखा देने के लिए बड़ी चालाकी से काम किया था। यदि इस समय वह बंगाल का शासन प्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले लेता तो ब्रिटिश संसद कम्पनी के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती थी। इसके अतिरिक्त इससे कई प्रकार की अड़चने भी पैदा हो सकती थी।
(3) यदि कम्पनी बंगाल के नवाब को गद्दी से हटाकर प्रांतीय शासन प्रबन्ध प्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले लेती, तो उसे निश्चित रूप से अन्य यूरोपियन शक्तियों, पुर्तगालियों एवं फ्रांसीसियों आदि के साथ संघर्ष करना पड़ता। ये लोग उस समय भारत के साथ व्यापार करते थे और इष्ट इण्डिया कम्पनी के कट्टर विरोधी थी। क्लाइव ने बड़ी चतुराई से काम लेते हुए इन विदेशियों की आँखों में धूल झोंक दी। रॉबर्ट्स ने लिखा है, ब्रितानियों द्वारा खुलेआम बंगाल के शासन की बागड़ोर सम्भाल लेने का अर्थ होता, दूसरी यूरोपीय शक्तियों के साथ झगडा मोल लेना। लेकिन दोहरा शासन अत्यन्त जटिल होने से वे यूरोपियन प्रतिस्पर्द्धियों के ईर्ष्या-जन्य संघर्ष से बच गए। प्रो. एस.आर. शर्माने लिखा है, क्लाइव ने यह धोखा इसलिए बनाए रखा, जिससे कि ब्रिटिश जनता को, यूरोपीयन शक्तियों को था भारतीय देशी शासकों को वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल सके।
(4) कम्पनी द्वारा शासन को प्रत्यक्ष रूप से हाथ में लेने से मराठे भी भड़क सकते थे। मराठों की संयुक्त शक्ति का सामना करना कम्पनी के बस की बात नहीं थी।
(5) पिछले सात वर्षों में कम्पनी तथा बंगाल के नवाब के बीच कई बार झगड़े हुए थे, जिसके कारण बंगाल में तीन राजनीतिक क्रांतियाँ हुई। परिणामस्वरूप तीन महत्वपूर्ण शासकीय परिवर्तन हुए। क्लाइव इस प्रकार के परिवर्तनों के विरूद्ध था और उन्हें रोकना चाहता था। द्वैध शासन की स्थापना से कम्पनी और नवाबों के बीच चलने वाला संघर्ष हमेशा के लिए समाप्त हो गया और बंगाल में राजनीतिक क्रांतियों का भय नहीं रहा। विशेषत: इसलिए कि नवाब को केवल 53 लाख रूपए प्रतिवर्ष पेन्शन के रूप में दिए जाते थे। यह धनराशि शासन कार्य चलाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसलिए वह एक विशाल सेना का आयोजन करके कम्पनी से टक्कर नहीं ले सकता था।
(6) यद्यपि 1765 ई. तक बंगाल पर ब्रितानियों का पूर्णरूप से अधिकार हो गया, परन्तु क्लाइव ने बंगाल की जनता को अंधेरे में रखने के लिए नवाब को प्रांतीय शासन प्रबन्ध का मुखिया बनाए रखा और वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में रहने दी। इस प्रकार, क्लाइव ने 1765 की क्रांति को सफलतापूर्वक छिपा लिया और भारतीयों तथा देशी राजाओं के मन में किसी प्रकार का संदेह उत्पन्न नहीं होने दिया।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति से मिलेगा शहर वासियों को लाभ, चौधरी एंड गिरिजा ट्रामा सेंटर की हुई शुरुआत

नवादा : आधुनिक चिकित्सा पद्धति का लाभ प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन के नेतृत्व में उपलब्ध कराने को लेकर चौधरी एंड गिरजा ट्रामा सेंटर की शुरुआत हुई. प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ नरज कुमार चौधरी, डॉ नवनीत कुमार चौधरी, डॉ मोनिका, डॉ अनिल चंद्र, डॉ. नीतू कुमारी आदि की संयुक्त टीम ट्रामा सेंटर में मरीजों को सुविधा उपलब्ध कराएंगे।

पुरानी जेल रोड, इमली पेड़ के पूरब मुरारी एंड कृष्णा के मकान में चौधरी एंड गिरजा ट्रामा सेंटर की शुरुआत हुई है। डॉक्टर नीरज कुमार चौधरी ने बताया कि इस अस्पताल में दुर्घटना में क्षतिग्रस्त हड्डी का सफल ऑपरेशन c-arm मशीन द्वारा किया जाएगा। कमर दर्द, घुटना दर्द, गर्दन, पीठ दर्द और पुराना गठिया रोग का इलाज हड्डी, नस रोग विशेषज्ञ एवं सर्जन के द्वारा होगा. जबकि नस और मानसिक रोग से पीड़ित मरीजों के लिए न्यूरो और मानसिक रोग विशेषज्ञ ट्रॉमा सेंटर में उपलब्ध होंगे।

नाक, कान, गला से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए आधुनिक कंप्यूटर मशीन और विशेषज्ञ टीम लगाई गई है। नवजात शिशु बाल बच्चे के इलाज के लिए शिशु रोग विशेषज्ञ भी ट्रामा सेंटर में रहेंगे। संस्थान से जुड़े श्याम जी ने बताया कि एक ही छत के नीचे सभी प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए ट्रामा सेंटर वरदान साबित होगा। अस्पताल में आधुनिक एक्सरे मशीन और अन्य तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध होगी। उद्घाटन के मौके पर जिला के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. सावित्री शर्मा, डॉ विमल कुमार, डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद सहित सभी प्रसिद्ध चिकित्सक मौजूद रहे।

लागत लेखा पद्धति के मुख्य लाभ और नुकसान क्या हैं?

ईश्वर करे किसी के हाथ मे न हो ये निशान,केवल 2 प्रतिशत लोगों की हथेली में होता है यह चिन्ह (दिसंबर 2022)

लागत लेखा पद्धति के मुख्य लाभ और नुकसान क्या हैं?

विषयसूची:

सामान्य लेखांकन या वित्तीय लेखांकन के विपरीत, लागत लेखा पद्धति एक आंतरिक रूप से केंद्रित, फर्म-विशिष्ट प्रणाली है जो लाभ पद्धति लाभ पद्धति लागत नियंत्रण, इन्वेंट्री और मुनाफे का अनुमान लगाती है। लागत लेखांकन अधिक लचीला और विशिष्ट हो सकता है, विशेषकर जब यह लागत और सूची मूल्य निर्धारण के लाभ पद्धति उपखंड में आता है। दुर्भाग्य से, यह जटिलता-बढ़ती ऑडिटिंग जोखिम अधिक महंगा हो जाता है, और इसकी प्रभावशीलता एक फर्म के चिकित्सकों की प्रतिभा और सटीकता तक सीमित होती है।

लागत लेखांकन कुछ व्यापक शैलियों और लागत आवंटन प्रथाओं में आता है, लेकिन वे प्राथमिक लाभ और नुकसान साझा करते हैं। इसे मूल रूप से विनिर्माण कंपनियों में विकसित किया गया था, लेकिन वित्तीय और खुदरा संस्थानों ने समय के साथ इसे अपनाया है।

लागत लेखांकन के मुख्य लाभ

प्रबंधक लागत लेखांकन की सराहना लाभ पद्धति करते हैं क्योंकि यह व्यवसाय की बदलती जरूरतों के अनुरूप अनुकूलित, कार्यान्वित और कार्यान्वित किया जा सकता है। स्थिर, वित्तीय लेखा मानक बोर्ड (एफएएसबी) के विपरीत-वित्तीय लेखाकरण, लागत लेखांकन को केवल आंतरिक आंखों और आंतरिक प्रयोजनों के साथ ही चिंता की आवश्यकता है

लागत लेखांकन के माध्यम से श्रमिक लागत की निगरानी और नियंत्रण आसान है। व्यापार की प्रकृति के आधार पर, मजदूरी के खर्च आदेश, नौकरियों, ठेके, या विभागों और उप-विभागों से लिया जा सकता है। इसका मतलब है प्रबंधन चुन सकते हैं और चुन सकते हैं कि यह दक्षता और उत्पादकता कैसे निर्धारित करता है। व्यक्तिगत कर्मचारियों की सीमांत उत्पादकता का अनुमान लगाने में यह बहुत महत्वपूर्ण है।

लागत लेखांकन को एक तीन-आयामी पहेली के रूप में माना जा सकता है खातों, गणना और रिपोर्टों को अलग-अलग कोणों से छेड़छाड़ और देखा जा सकता है। प्रबंधन मानदंडों के आधार पर जानकारी का विश्लेषण कर सकता है, जो इसे मानता है, जो कीमतें निर्धारित की जाती हैं, संसाधनों का वितरण किया जाता है, पूंजी उठायी जाती है और जोखिमों को ग्रहण किया जाता है। यह प्रबंधन चर्चा और विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण तत्व है।

लागत लेखा के मुख्य नुकसान

लागत लेखा के लाभ मूल्य के साथ आते हैं चूंकि लागत के तरीके संगठन से संगठन में भिन्न होते हैं, यह स्पष्ट नहीं है कि इन लागतों को कैसे स्पष्ट किया जा सकता है जब तक कि किसी विशिष्ट फर्म की जांच नहीं की जाती।

आम तौर पर, जटिल लागत लेखा प्रणालियों को सामने के अंत पर बहुत काम की आवश्यकता होती है, और सुधार के लिए लगातार समायोजन की आवश्यकता होती है यह जटिलता समय और संसाधनों की खपत करती है और गलत व्याख्या के लिए कमरे छोड़ देती है।

अगर वित्तीय लेखा की कठोरता कुछ अंतर्निहित नुकसानों को पैदा करती है, तो यह लागत लेखांकन के लेखांकन दिशानिर्देशों की अनिश्चितता और गलत इस्तेमाल को दूर करती है। अनिश्चितता जोखिम के बराबर होती है, जो हमेशा एक लागत पर आती है।इसका अर्थ है अतिरिक्त, और सटीकता को सत्यापित करने के लिए अक्सर अधिक सशक्त समाधान।

उच्च-कुशल लेखाकार और लेखा परीक्षक अपनी सेवाओं के लिए और अधिक शुल्क ले सकते हैं। कर्मचारियों को अतिरिक्त प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा और डेटा इनपुट के साथ पर्याप्त रूप से सहयोग करना होगा; गैर-सहयोग अप्रभावी एक अन्य खूबसूरती से निर्मित प्रणाली प्रदान कर सकता है।

किसी भी लेखा पद्धति में दोहराया तानाशाह अत्यावश्यकता बनाम सटीकता है कॉस्ट एकाउंटिंग इस बात को और अधिक नाटकीय ढंग से दर्शाती है क्योंकि इसके लचीलापन के कारण अन्य लेखांकन विधियों की तुलना में। हर व्यवसाय के लिए दोनों के बीच अपना संतुलन प्राप्त करना आवश्यक है।

लागत वाली विधियां आमतौर पर कर देनदारियों का पता लगाने के लिए उपयोगी नहीं होती हैं, जिसका अर्थ है कि लागत लेखांकन व्यवसाय की सही लागत का पूर्ण विश्लेषण नहीं दे सकता है। लागत लेखांकन के साथ वित्तीय लाभ पद्धति लेखा के संयोजन के द्वारा इस के लिए क्षतिपूर्ति करना काफी आसान है, लेकिन फिर भी, लागत लेखांकन में एक दोष पर प्रकाश डाला गया है।

सरल मूविंग औसत (एसएमए) का उपयोग करने के मुख्य लाभ और नुकसान क्या हैं? | इन्वेंटोपैडिया

सरल मूविंग औसत (एसएमए) का उपयोग करने के मुख्य लाभ और नुकसान क्या हैं? | इन्वेंटोपैडिया

सरल चलती औसत या एक घातीय चलती औसत के उपयोग में शामिल कुछ संभावित फायदे और नुकसान की जांच करें।

फीफो लेखा पद्धति के क्या नुकसान हैं?

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सीखें कि फीफो खाता विधि LIFO विधि से कैसे अलग है और एफआईएफओ विधि का उपयोग करके किसी कंपनी के लिए प्राथमिक नुकसान।

किसी परिसंपत्ति को कम करने के लिए डूबने की निधि पद्धति का उपयोग करने के क्या नुकसान हैं?

किसी परिसंपत्ति को कम करने के लिए डूबने की निधि पद्धति का उपयोग करने के क्या नुकसान हैं?

सीखें कि मूल्यह्रास की डूबने वाली निधि पद्धति क्या है, क्यों एक कंपनी इसका उपयोग करना चुन सकती है और इस मूल्यह्रास विधि का उपयोग करने के क्या नुकसान हैं

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