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आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है?

आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है?
जानिए Forex Card कार्ड के लाभ (फोटो-Freepik)

मुक्त व्यापार समझौते के मोर्चे पर भारत के लिए कई अवसर

वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा रही है। ऐसी स्थिति में विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी यदि 3-4 फीसदी भी बढ़ती है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहजनक होगा। इसी कारण भारत ने मुक्त व्यापार समझौते अर्थात एफटीए पर अपना रुख बदला है। विश्व में अनेक क्षेत्रीय व्यापार समझौते हुए हैं। भारत ने भी 2012 के बाद श्रीलंका, बांग्लादेश, जापान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत में उद्योग एवं सरकार में अवधारणा बनी कि एफटीए पर पहले के रुख से भारत को लाभ नहीं मिला, बल्कि उद्योग जगत को नुकसान हुआ। यही कारण था कि भारत, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से 2019 में अलग हो गया।
आरसीईपी समझौते को लेकर भारत की आशंका थी कि शुल्क मुक्त चीनी सामान से घरेलू बाजार भर जाएगा। हालांकि आरसीईपी से अलग होने के बावजूद चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बीते तीन सालों से बढ़ता ही जा रहा है। यही कारण है कि भारत ने एफटीए को लेकर एक अंतराल के बाद अपना रुख बदला है। संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए हो चुका है। इस क्रम में ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन से वार्ता विभिन्न चरणों में जारी है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार ब्रिटेन के साथ एफटीए वार्ता जल्द पूरी होने वाली है।

प्रतीकात्मक चित्र

भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय कमजोर होती मुद्रा, घटते विदेशी मुद्रा भंडार, तीव्र गति से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी, व्यापार घाटे में वृद्धि इत्यादि की समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में निर्यात वृद्धि आवश्यक है। इसके लिए भारत का ग्लोबल वैल्यू चेन यानी जीवीसी से जुडऩा जरूरी है। जीवीसी से संबद्ध होने में एफटीए की विशिष्ट भूमिका है। हमारे व्यापार में एफटीए की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 16 प्रतिशत थी जो अब 18.5 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि भारत एफटीए से आशा के अनुरूप लाभ नहीं उठा सका है। हमारे व्यापार में ज्यादा हिस्सेदारी गैर-एफटीए की है, जिसमें अमरीका, चीन और ईयू प्रमुख हैं। हमारे आयात-निर्यात की दृष्टि से अमरीका का महत्त्व बरकरार है, जबकि ईयू का महत्त्व पहले से कम हुआ है। हमें वर्तमान में उपयोगी देशों और क्षेत्रों से संबंधित एफटीए की जरूरत है। हमें वर्तमान में उच्च निर्यात बाजार अमरीका, ईयू और बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भविष्य के प्रमुख बाजारों अफ्रीका और लैटिन अमरीकी देशों पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

भारत ने 2019 में आरसीईपी से दूरी बनाई, पर अब एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आइपीईएफ) में शामिल होने का मौका है, जो हाल ही में बना है। इस समूह में 14 देश शामिल हैं और वैश्विक जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी 28 फीसदी है।
ट्रांस पैसिफिक भागीदारी का नेतृत्व कभी अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा करते थे, परंतु ट्रंप ने इससे दूरी बना ली थी। इस समझौते से अलग रहने का खमियाजा अमरीका भुगत रहा है। उसके व्यापार अवसर छूट रहे हैं और उसका भू-राजनीतिक प्रभाव भी घट रहा है। यही कारण है कि अमरीका ने आइपीईएफ की स्थापना में अति सक्रियता दिखाई। भारत को भी त्वरित तौर पर इसमें शामिल होकर व्यवस्थित और सुसंगठित रूप से अपने व्यापार के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। आइपीईएफ में अमरीका, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और वियतनाम हैं, जो भारत के लिए भी खास हैं। गौरतलब है कि चीन, आइपीईएफ में शामिल नहीं है।

यह कोई संयोग नहीं है कि हमारा बीते दो दशकों में चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से कारोबार बढ़ा है। ये विश्व के सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धी देश हैं और प्राय: सभी देशों का व्यापार संतुलन का झुकाव इन तीन देशों की तरफ हो गया है। भारत गैर शुल्कीय बाधाओं और अधिक लागत की शिकायत कर सकता है, पर अंतत: प्रतिस्पर्धा को बढ़ाकर ही व्यापार संतुलन को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके लिए एफटीए सबसे बेहतर विकल्प है।

कई वैश्विक निवेशक ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति अपना रहे हैं। जाहिर है इससे भारत को भी लाभ होगा, क्योंकि ये निवेशक चीन से बाहर वियतनाम, थाईलैंड, भारत जैसे देशों में फैक्ट्री लगाना चाहते हैं। चीन-अमरीका ‘ट्रेड वार’ के समय भी भारत के लिए स्वर्णिम अवसर उपलब्ध थे, पर उनका समुचित लाभ नहीं उठाया जा सका था। वैश्विक भागीदारी से मूल्य संवर्धन के साथ रोजगार के अवसर भी बनेंगे। ‘चाइना प्लस वन’ से उत्पन्न हुए अवसर हमेशा नहीं रहेंगे। इसलिए भारत के लिए आवश्यक है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खुलेपन के सिद्धांतों तथा प्रतिस्पर्धी बनने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए। भारत का विकास मुख्य रूप से उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर है।

विदेशी मुद्रा व्यापार के लिए विश्लेषण का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

विदेशी मुद्रा विश्लेषण का उपयोग खुदरा मुद्रा जोड़े पर निर्णय लेने या बेचने के लिए किया जाता है । यह चार्टिंग टूल जैसे संसाधनों का उपयोग करके प्रकृति में तकनीकी हो सकता है। यह आर्थिक संकेतकों और / या समाचार-आधारित घटनाओं का उपयोग करके प्रकृति में मौलिक भी हो सकता है।

विदेशी मुद्रा बाजार विश्लेषण के प्रकार

विश्लेषण एक नए विदेशी मुद्रा व्यापारी के लिए एक अस्पष्ट अवधारणा की तरह लग सकता है । लेकिन यह वास्तव में तीन मूल प्रकारों में आता है।

मौलिक विश्लेषण

मौलिक विश्लेषण का उपयोग अक्सर विदेशी मुद्रा बाजार में आंकड़ों की निगरानी के लिए ब्याज दरों, बेरोजगारी दर, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), और अन्य प्रकार के आर्थिक आंकड़ों से होता है जो देशों से बाहर आते हैं। उदाहरण के लिए, EUR / USD मुद्रा जोड़ी के एक मौलिक विश्लेषण करने वाले व्यापारी को यूरोज़ोन में ब्याज दरों के बारे में जानकारी मिल जाएगी जो कि अमेरिका में उन लोगों की तुलना में अधिक उपयोगी है, जो व्यापारी भी किसी भी महत्वपूर्ण समाचार के शीर्ष पर रहना चाहेंगे। प्रत्येक यूरोजोन देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं के स्वास्थ्य के संबंध का अनुमान लगाने के लिए।

तकनीकी विश्लेषण

तकनीकी विश्लेषण दोनों मैनुअल और स्वचालित प्रणाली के रूप में आता है। एक मैनुअल सिस्टम का आमतौर पर मतलब है कि एक व्यापारी तकनीकी संकेतकों का विश्लेषण कर रहा है और उस डेटा को खरीदने या बेचने के फैसले की व्याख्या कर रहा है। एक स्वचालित ट्रेडिंग विश्लेषण का मतलब है कि व्यापारी कुछ संकेतों को देखने और उन्हें खरीदने या बेचने के निर्णयों को निष्पादित करने के लिए व्याख्या करने के लिए सॉफ़्टवेयर को “शिक्षण” कर रहा है। जहां स्वचालित विश्लेषण का अपने मैनुअल समकक्ष पर एक फायदा हो सकता है, वह यह है कि व्यवहार के अर्थशास्त्र को व्यापारिक निर्णयों से बाहर निकालना है। विदेशी मुद्रा प्रणाली यह निर्धारित करने के लिए पिछले मूल्य आंदोलनों का उपयोग करती है कि किसी दी गई मुद्रा का नेतृत्व कहाँ किया जा सकता है।

सप्ताहांत विश्लेषण

सप्ताहांत विश्लेषण करने के दो मूल कारण हैं। पहला कारण यह है कि आप किसी विशेष बाज़ार के “बड़े चित्र” दृश्य को स्थापित करना चाहते हैं जिसमें आप रुचि रखते हैं। चूंकि सप्ताहांत में बाजार बंद हैं और गतिशील प्रवाह में नहीं हैं, इसलिए आपको स्थितियों पर प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे खुलासा नहीं कर रहे हैं, लेकिन परिदृश्य का सर्वेक्षण कर सकते हैं, इसलिए बोलने के लिए।

दूसरे, सप्ताहांत का विश्लेषण आपको आने वाले सप्ताह के लिए अपनी ट्रेडिंग योजनाएं स्थापित करने और आवश्यक मानसिकता स्थापित करने में मदद करेगा। एक सप्ताहांत विश्लेषण एक वास्तुकार के लिए एक आकर्षक बनाने के लिए एक इमारत का निर्माण करने के लिए एक खाका तैयार करने के समान है। एक योजना के बिना व्यापार करने के लिए अस्थायी? बुरा विचार: कूल्हे से शूटिंग आपकी जेब में छेद छोड़ सकती है।

विदेशी मुद्रा बाजार विश्लेषण लागू करना

फॉरेक्स मार्केट विश्लेषण के सिद्धांतों के बारे में गंभीर रूप से सोचना महत्वपूर्ण है। यहां एक चार-चरण की रूपरेखा है।

1. ड्राइवर्स को समझें

सफल ट्रेडिंग की कला आंशिक रूप से बाजारों के बीच मौजूदा रिश्तों की समझ और इन संबंधों के मौजूद होने के कारणों के कारण है। समय के साथ इन रिश्तों को बदल सकते हैं और कर सकते हैं, यह याद रखना महत्वपूर्ण है।

उदाहरण के लिए, स्टॉक मार्केट रिकवरी को उन आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? निवेशकों द्वारा समझाया जा सकता है जो आर्थिक सुधार की आशा कर रहे हैं। इन निवेशकों का मानना ​​है कि कंपनियों ने कमाई में सुधार किया होगा और इसलिए, भविष्य में अधिक से अधिक मूल्यांकन – और इसलिए यह खरीदने का एक अच्छा समय है। हालांकि, अटकलबाजी, तरलता की बाढ़ पर आधारित हो सकती है, गति बढ़ सकती है और अच्छे पुराने लालच में कीमतें ऊंची होती जा रही हैं जब तक कि बड़े खिलाड़ी बोर्ड पर नहीं होते हैं ताकि बिक्री शुरू हो सके।

इसलिए पूछने वाले पहले प्रश्न हैं: ये चीजें क्यों हो रही हैं? बाजार की कार्रवाइयों के पीछे चालक क्या हैं?

2. इंडेक्स को चार्ट करें

यह एक व्यापारी के लिए लंबी अवधि के लिए प्रत्येक बाजार के लिए महत्वपूर्ण अनुक्रमित चार्ट के लिए सहायक होता है। यह अभ्यास एक व्यापारी को बाजारों के बीच संबंधों को निर्धारित करने में मदद कर सकता है और चाहे एक बाजार में एक आंदोलन उलटा हो या दूसरे के साथ संगीत कार्यक्रम में।

उदाहरण के लिए, 2009 में, सोना उच्च रिकॉर्ड करने के लिए प्रेरित किया जा रहा था।  क्या यह कदम इस धारणा के जवाब में था कि कागज का पैसा इतनी तेजी से कम हो रहा था कि कठोर धातु की ओर लौटने की जरूरत थी या क्या यह कमोडिटी बूम की वजह से सस्ते डॉलर के ईंधन का परिणाम था? इसका उत्तर यह है कि यह दोनों हो सकता है, या जैसा कि हमने ऊपर चर्चा की, बाजार की चालें अटकलों से प्रेरित थीं।

3. अन्य बाजारों में एक आम सहमति की तलाश करें

हम इस बात का एक परिप्रेक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं कि बाजार उसी साप्ताहिक या मासिक आधार पर अन्य उपकरणों को दान करके एक मोड़ पर पहुंच रहे हैं या नहीं। वहां से, हम एक उपकरण में किसी व्यापार में प्रवेश करने के लिए आम सहमति का लाभ ले सकते हैं जो मोड़ से प्रभावित होगा। उदाहरण के लिए, यदि USD / JPY मुद्रा जोड़ी एक ओवरसोल्ड स्थिति को इंगित करती है और बैंक ऑफ जापान ( BOJ ) येन को कमजोर करने के लिए हस्तक्षेप कर सकती है, तो जापानी निर्यात प्रभावित हो सकता है। हालांकि, एक जापानी वसूली येन के किसी भी कमजोर पड़ने के बिना बिगड़ा होने की संभावना है।

4. टाइम ट्रेड्स

एक सफल व्यापार की बहुत अधिक संभावना है यदि कोई लंबी समय सीमा पर मोड़ पा सकता है, तो एक प्रविष्टि को ठीक करने के लिए एक छोटी समय अवधि में स्विच करें। पहला व्यापार सटीक फिबोनाची स्तर पर हो सकता है या लंबी अवधि के चार्ट पर संकेत के अनुसार डबल नीचे हो सकता है, और यदि यह विफल रहता है, तो एक दूसरा अवसर अक्सर समर्थन स्तर के एक पुलबैक या परीक्षण पर होगा।

धैर्य, अनुशासन, और तैयारी आपको उन व्यापारियों से अलग करेगी जो बिना किसी तैयारी या एकाधिक विदेशी मुद्रा संकेतकों के विश्लेषण के बिना केवल मक्खी पर व्यापार करते हैं।

विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग सिस्टम और रणनीतियाँ प्राप्त करना

एक दिन व्यापारी की मुद्रा व्यापार प्रणाली को मैन्युअल रूप से लागू किया जा सकता है, या व्यापारी स्वचालित विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीतियों का उपयोग कर सकता है जो तकनीकी और मौलिक विश्लेषण को शामिल करता है। ये शुल्क के लिए, मुफ्त में उपलब्ध हैं, या अधिक तकनीक-प्रेमी व्यापारियों द्वारा विकसित किए जा सकते हैं।

इंटरनेट के माध्यम से खरीद के लिए स्वचालित तकनीकी विश्लेषण और मैनुअल ट्रेडिंग रणनीतियों दोनों उपलब्ध हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सफलता के मामले में ट्रेडिंग सिस्टम की “पवित्र कब्र” जैसी कोई चीज नहीं है। यदि सिस्टम विफल-प्रूफ मनी मेकर था, तो विक्रेता इसे साझा नहीं करना चाहेगा। इस बात का सबूत है कि कैसे बड़ी वित्तीय कंपनियां अपने “ब्लैक बॉक्स” ट्रेडिंग कार्यक्रमों को लॉक और की के तहत रखती हैं।

तल – रेखा

तकनीकी और मौलिक विश्लेषण के बीच विदेशी मुद्रा व्यापार के लिए विश्लेषण का कोई “सर्वोत्तम” तरीका नहीं है। व्यापारियों के लिए सबसे व्यवहार्य विकल्प उनके समय सीमा और सूचना तक पहुंच पर निर्भर है। केवल अल्पकालिक व्यापारी के लिए आर्थिक आंकड़ों में देरी से जानकारी के लिए, लेकिन उद्धरणों के लिए वास्तविक समय तक पहुंच, तकनीकी विश्लेषण पसंदीदा तरीका हो सकता है। वैकल्पिक रूप से, जिन व्यापारियों के पास अप-टू-द-मिनट समाचार रिपोर्ट और आर्थिक डेटा है, वे मौलिक विश्लेषण पसंद कर सकते हैं। या तो मामले में, यह सप्ताहांत के विश्लेषण का संचालन करने के लिए चोट नहीं करता है जब बाजार में उतार-चढ़ाव की स्थिति नहीं होती है।

अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, जिनपिंग ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार

24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.

सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?

जवाबः 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने के मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

1944 से ही अमेरिकी डॉलर दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर राज कर रहा है। (फाइल फोटो)

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था, क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

डॉलर की मजबूती की एक बड़ी वजह थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

सवाल- 2: डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए अडाणी ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1: सबसे पहले अडाणी ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ब्रासीलिया की एक बैठक में साथ-साथ मौजूद।

रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है और उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।

यानी जो देश पहले रूस से गैस खरीदने के लिए अमेरिकी बैंक में डॉलर रिजर्व रखते थे, उन्हें अब रूसी सेंट्रल बैंक में रूबल रिजर्व रखना पड़ रहा है। इसी तरह बाकी चीजों के निर्यात के लिए आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? भी रूस अनफ्रेंडली देशों से रूबल में पेमेंट करने की मांग कर रहा है।

जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही थी। पुतिन के इस प्रपोजल पर फिलहाल विचार किया जा रहा है। BRICS देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका हैं।

डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें

SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे।

युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।

इसके अलावा सऊदी अरब से भी युआन में तेल बेचने की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा।

रूस-चीन की इस कोशिश में भारत का किरदार

डॉलर के दबदबे को कम करने की चीन-रूस की कोशिश में भारत भी एक किरदार निभा रहा है। यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया।

14 सितंबर को फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट ए. शक्तिवेल ने कहा है कि भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को आथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे रुपए को मजबूती मिलेगी।

आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले एक पोल पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं.

आगे का रास्ता.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन और रूस की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

References…

ऐसे ही नॉलेज बढ़ाने वाले एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

Forex Card: कौन ले सकता है फॉरेक्‍स कार्ड, क्‍या हैं इसके फायदे और कितना देना होगा चार्ज; जानिए सबकुछ

फॉरेक्‍स कार्ड लोगों को विदेशी मुद्रा देने में मदद करता है। यह आसानी से कई देशों की मुद्रा प्रोवाइड करा सकता है।

Forex Card: कौन ले सकता है फॉरेक्‍स कार्ड, क्‍या हैं इसके फायदे और कितना देना होगा चार्ज; जानिए सबकुछ

जानिए Forex Card कार्ड के लाभ (फोटो-Freepik)

विदेश में सफर करने के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्‍यकता होती है। अगर आप विदेश में सफर करने वाले हैं, तो विदेशी मुद्रा हासिल करने में आपको समस्‍याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में फॉरेक्‍स कार्ड विदेशी मुद्रा प्राप्‍त करने के काम को आसान बनाता है। यह आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? एक डेबिट कार्ड की तरह है, जो विदेश में आवश्‍यकता पड़ने पर निकासी के लिए इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

कौन ले सकता है फॉरेक्‍स कार्ड

केवल भारतीय नागरिक, जिन्‍होंने केवाईसी की प्रक्रिया पूरी की है फॉरेक्‍स कार्ड के लिए अप्‍लाई कर सकता है। नॉन रेजिडेन्ट भारतीय फॉरेक्‍स कार्ड के लिए अप्‍लाई नहीं कर सकते हैं। माता-पिता या पैरेंट की ओर से आवेदन पत्र पर सिग्‍नेचर करने के बाद 12 वर्ष से अधिक आयु के नाबालिगों को कार्ड जारी किया जा सकता है।

किन दस्‍तावेजों की होगी जरूरत

फॉरेक्‍स कार्ड आवेदन फॉर्म ऑनलाइन और ऑफलाइन भरा जा सकता है। इस फॉर्म के साथ कुछ दस्‍तावेजों की आवश्‍यकता होती है। फॉरेक्‍स कार्ड के लिए सेल्‍फ अटेस्‍टेड पासपोर्ट की एक कॉपी, वीज़ा और कन्फर्म टिकट की खुद से सत्‍यापित की गई कॉपी देनी होती है।

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कितना लगेगा चार्ज

फॉरेक्‍स कार्ड बनवाने से पहले लोगों को इसके चार्जेज के बारे में जान लेना चाहिए। कार्ड जारी करने, मुद्रा लोड करने या टॉप अप करने, एटीएम से निकासी, बैलेंस पूछताछ, सुविधा शुल्क इत्यादि के संबंध में कार्ड पर किए गए लेनदेन पर लगाए गए शुल्क की जांच करनी चाहिए। यह चार्ज बैंक या कंपनी की ओर से अलग-अलग लगाया जाता है।

फॉरेक्‍स कार्ड के फायदे

इस कार्ड के तहत कंपनी या बैंक यात्री पर बीमा भी प्रदान करती है। एक फॉरेक्‍स कोर्ड के तहत कई विदेशी मु्द्रा रखी जाती है। फॉरेक्‍स कार्ड की समय सीमा 5 साल के लिए होती है। इस कार्ड को 60 दिनों के अंदर प्राप्‍त किया जा सकता है। अगर विदेश यात्रा के दौरान धन का उपयोग नहीं किया गया है, तो इसे भारत आने की तारीख से 180 दिनों के भीतर बैंक को वापस करना होगा।

रिकॉर्ड स्‍तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, कोरोना काल में भी क्‍यों हो रहा इजाफा?

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 3.436 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई और यह 493 ( करीब 37 लाख करोड़ रुपये) अरब डॉलर हो गया है.

विदेशी मुद्रा भंडार में 3.436 अरब डॉलर की वृद्धि

aajtak.in

  • नई दिल्‍ली,
  • 06 जून 2020,
  • (अपडेटेड 06 जून 2020, 6:14 PM IST)
  • विदेशी मुद्रा भंडार 493 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर
  • RBI साप्ताहिक आधार पर इसके आंकड़े पेश करता है

कोरोना संकट के बीच देश की इकोनॉमी को लेकर लगातार निगेटिव आंकड़े आ रहे हैं. इस माहौल में एक राहत की खबर मिली है. दरअसल, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है.

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 29 मई को समाप्त हुए सप्‍ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.43 अरब डॉलर बढ़ा है. इस बढ़ोतरी के साथ विदेशी मुद्रा भंडार 493.48 अरब डॉलर (37 लाख करोड़ रुपये) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. आपको बता दें कि आरबीआई साप्ताहिक आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े पेश करता है. देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती का प्रतीक माना जाता है.

क्‍या है इसके मायने?

इस बढ़ोतरी का मतलब ये हुआ कि सरकारी खजाने में व्‍यापार की लेनदेन के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की कमी नहीं है. दरअसल, विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं ताकि जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सके. यह भंडार एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखे जाते हैं. आमतौर पर भंडार डॉलर या यूरो में रखा जाता है.

कोरोना संकट में भी क्‍यों बढ़ा भंडार

यह बढ़ोतरी ऐसे वक्त में हुई है, जब देश की इकोनॉमी कोरोना और लॉकडाउन की वजह से पस्‍त नजर आ रही है. लेकिन सवाल है कि कोरोना संकट के बाद भी यह बढ़ोतरी क्‍यों हुई है. इसे समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि मई के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिली है. इसके अलावा लॉकडाउन की वजह से ईंधन की डिमांड भी कम रही है.

कहने का मतलब ये हुआ कि कच्‍चे तेल की सस्‍ती और कम खरीदारी हुई है. इस वजह से सरकार को कम डॉलर भुगतान करने पड़े हैं. जाहिर सी आपको विदेशी मुद्रा पर व्यापार करने की क्या आवश्यकता है? बात है कि कम डॉलर भुगतान की वजह से बचत हुई है और विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा हो गया है. बढ़ोतरी का ये सिलसिला बीते कुछ हफ्तों से चल रहा था लेकिन इस बार का इजाफा रिकॉर्ड स्‍तर पर है.

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