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स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर

स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर
2017 में पिछले सम्मेलन के बाद से, वैश्विक नीति में उल्लेखनीय प्रगति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की पूर्व योग्यता के साथ शुरू करते तथा बाद में टाइफाइड की संयुग्मी वैक्सीन के प्रयोग की सिफारिश करके एंटेरिक बुखार के खिलाफ तीव्र प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया। यह नियमित टीकाकरण के द्वारा छह माह जितनी छोटी उम्र के बच्चों को सुरक्षित रखने की दिशा की ओर पहला कदम है। इन वैक्सीन की पहुँच कम आय वाले देशों के लिए सुनिश्चित करने में मदद के लिए, गावी, वैक्सीन अलायंस (GAVI) ने 2018 में उनकी शुरूआत के लिए $85 मिलियन समर्पित किए। देशों ने नियमित टीकाकरण हेतु गावी के समर्थन के लिए आवेदन प्रस्तुत करना शुरू कर दिया। भारत, पाकिस्तान तथा ज़िम्बाब्वे जैसे परिवेश में पहले ही, टाइफाइट की रोकथाम तथा प्रकोप के नियंत्रण के लिए इस जीवन-रक्षक हस्तक्षेप का प्रयोग किया जा रहा है।

हमारे सामने हाइब्रिड वॉर की चुनौती

दक्षिण कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के दो माह बाद सेना फिर वहां पूरी ताकत के साथ सड़कों पर जारी उपद्रव के केंद्र में लौट आई। उसे सामान्य हालात बहाल करने को कहा गया है। समझने की बात यह है कि सेना कानून-व्यवस्था बहाल नहीं कर रही स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर है, बल्कि उसे एक तरह से पूरी सार्वजनिक व्यवस्था ही बहाल करनी है, जो पूरी तरह पंगु हो गई है और पुलिस बल इससे निपटने में नाकाम रहा है। सेना को आबादी के अदृश्य नेतृत्व वाले हठी तबके से निपटना है, जिसे नियंत्रण-रेखा के पार से वित्तीय, स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर वैचारिक, मनोवैज्ञानिक व योजना के स्तर पर समर्थन मिल रहा है।


पूंछ के बाद उड़ी में आतंकी हमले के साथ पाकिस्तान तनाव बढ़ाने पर तुल गया है ताकि उपद्रव का दायरा बढ़ाने के लिए अांदोलनकारियों का मनोबल बढ़ाया जा सके और भारतीय सेना को दक्षिण कश्मीर को काबू में लाने से रोका जा सके। उड़ी में 18 बेशकीमती जिंदगियां जाने से पाकिस्तान ने भारत की बर्दाश्त करने की हद को पार कर लिया है। यह ऐसा तथ्य है, जिस पर पाकिस्तान ने हमले की साजिश रचते समय गौर नहीं किया होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह सारगर्भित बयान दिया है कि हमले के कसूरवारों को छोड़ा नहीं जाएगा, उससे संकेत स्पष्ट हैं कि इस घटना से भारत कितना विचलित है। दक्षिण कश्मीर में सेना को लाने की चर्चा स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर करें तो उसे वहां लोगों से संपर्क का लंबा अनुभव है और 2008-10 में उसने सड़कों के उपद्रव में ग्रामीण आबादी को शामिल कराने के पाकिस्तानी फौज के प्रयासों को नाकाम कर दिया था। फर्क इस बार यही है कि इस बार जो भी परदे के पीछे से आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, उनकी रणनीति पहले से कहीं ज्यादा कारगर रही है। शायद पाकस्तानी फौज ने निष्कर्ष निकाला कि ग्रामीण आबादी के उदासीन रहने से 2008-10 में आंदोलन उतना कारगर नहीं रहा। शहरों में कर्फ्यू लागू करना आसान होता है, लेकिन दूर तक फैले कस्बों व गांवों में ऐसा करना कठिन होता है।

स्पेन का गृह युद्ध (1936-1939) : स्थानीय स्तर पर लड़े जाने के बावजूद युद्ध के दूरगामी महत्व

1936-1939 के मध्य, स्पेन में नई स्थापित हुई रिपब्लिकन सरकार के प्रति वफादार लोगों तथा रूढ़िवादी, सैन्यवादी व्यवस्था के समर्थकों के मध्य गृह युद्ध लड़ा गया। विशेषतः वहां उपस्थित राजनीतिक परिदृश्य के कारण इस युद्ध को प्रायः लोकतंत्र और फासीवाद के मध्य संघर्ष के रूप में चित्रित किया जाता है।

जुलाई, 1936 में स्पेन की सेना ने अपनी पहली वामपंथी रिपब्लिकन सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इसके परिणामस्वरूप घटित गृह युद्ध जिस प्रकार व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समुदायों के मध्य फैल गया था, उसके कारण इसे द्वितीय विश्व युद्ध की एक पूर्ववर्ती घटना के स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर रूप में देखा जाता है।

हालांकि, यह नव निर्वाचित वामपंथी सरकार द्वारा किसानों की भूमि संबंधी मांगों को पूरा करने, राजनीतिक स्वतंत्रताओं को पुनःस्थापित करने जैसे सुधारों के विरुद्ध दक्षिण-पंथी प्रतिरोध के साथ आरंभ हुआ, परन्तु स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर इस ‘स्थानीय’ युद्ध ने स्पेन की राष्ट्रीय सीमाओं से परे भी कई घटनाओं को प्रभावित किया।

टाइफाइड और संबंधित बीमारियों के जोखिम वाले समुदायों की सुरक्षा हेतु स्थानीय प्रभाव के लिए बहुविषयक विशेषज्ञों द्वारा वैश्विक क्रिया का लाभ उठाना

हनोई, वियतनाम , March 26, 2019 (GLOBE NEWSWIRE) -- तथा अन्य तेजी से फैलने वाली साल्मोनेलोसेस पर आज से शुरू होने वाला , 11 वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 450 से अधिक शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं तथा टाइफाइड, पैराटाइफाइड और तेजी से फैलने वाले गैर-टाइफाइड साल्मोनेलासे पीड़ित छोटे बच्चों और उनके परिवारों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए समर्पित समर्थकों को एक साथ लाता है। साबीन वैक्सीन इंस्टीट्यूट (साबीन) के कार्यक्रम, टाइफाइड के खिलाफ गठबंधन द्वारा आयोजित इस तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान, 40 से स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर अधिक देशों के लोग, समुदाय के स्तर पर रोकथाम और नियंत्रण के लिए स्थानीय प्रभाव में हाल ही के वैश्विक उन्नति को रूपांतरित करने के लक्ष्य के साथ, एंटेरिक बुखार पर नवीनतम शोध तथा अपनायी जाने वाली रणनीतियों पर चर्चा करेंगे।

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tarunkumaon

‌उत्तराखण्ड के प्रथम बैरिस्टर तथा स्थानीय राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रमुख संग्रामी मुकुन्दी लाल ने जुलाई, 1922 में लैंसडाउन से तरुण कुमाऊँ का प्रकाशन किया। तरूण कुमाऊँ ने अपने सीमित प्रकाशन काल में राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों ही स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर स्तर पर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए स्थानीय जनता में उत्साह और विश्वास का संचार किया। तरुण कुमाऊँ ने अपने लेखों और सम्पादकियों द्वारा जनचेतना को जागृत करते हुए घोषणा की कि बिना स्वराज्य स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर के कोई जाति सरसब्ज, गौरववान, प्रभावशाली, शक्तिशाली और आदरणीय नहीं हो सकती। परतन्त्र राष्ट्रों का कोई सम्मान नहीं करता और आज हमारी यह शोचनीय दशा भारतवर्ष में स्वराज्य न होने के कारण ही है।

‌कुली बेगार आन्दोलन के संबंध में तरूण कुमाऊँ का रूख आक्रामक था। आन्दोलन के अंतिम दिनों में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए दमन और दमन के विरोध में आन्दोलनकारियों द्वारा किये गये जबरदस्त प्रतिरोध के संबंध में तरुण कुमाऊँ ने लगातार समाचार प्रकाशित किए। स्थानीय आन्दोलन के साथ-साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में भी तरुण कुमाऊँ ने आक्रामक सक्रियता दिखायी। स्वराज्यवादी दल का तरुण कुमाऊँ कुमाऊँ ने प्रारम्भ से ही समर्थन किया। तरुण कुमाऊँ का मानना था कि चुनावों से जनता में राजनैतिक चेतना का स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर प्रसार होगा। 1923 में तरुण कुमाऊँ ने सम्पादक मुकुन्दी लाल के समर्थन स्थानीय समर्थन और प्रतिरोध स्तर में एक प्रचारक पत्र का रूप धारण कर लिया था। चुनाव प्रचार के दौरान ही मुकुन्दीलाल अपनी व्यस्त्तता के कारण तरुण कुमाऊँ के प्रकाशन की ओर ध्यान न दे सके और अगस्त-सितम्बर, 1923 में चुनावों से पहले ही तरुण कुमाऊँ बन्द कर दिया गया। तरुण कुमाऊँ ऐसे समय बन्द किया गया, जब गढ़वाल ओर मुकुन्दी लाल दोनों को ही उसकी आवश्यकता थी। इस प्रकार तरुण कुमाऊँ लगभग एक डेढ़ वर्ष तक प्रकाशित हुआ। अपने सीमित प्रकाशन काल में भी स्थानीय तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में अपनी सक्रियता के कारण तरुण कुमाऊँ स्पष्ट छाप अंकित कर सका।

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