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साझा मुद्राएं

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आर्थिक एवं सामाजिक विकास लोकसेवा अध्यायवार हल प्रश्नोत्तर/मुद्रा एवं बैंकिंग

कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत संस्था,जिसका प्रमुख कार्य उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों,प्रतिभूतियों,बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित कार्यों में निवेश करना होता है। भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाली यह संस्‍थाओं का विजातीय समूह है (वाणिज्यिक सहकारी बैंकों को छोड़कर) जो विभिन्‍न तरीकों से वित्तीय मध्यस्स्थता का कार्य करता साझा मुद्राएं है जैसे –

  1. जमा स्‍वीकार करना
  2. ऋण और अग्रिम देना
  3. प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप में निधियाँ जुटाना
  4. अंतिम व्ययकर्त्ता को उधार देना
  5. थोक और खुदरा व्यापारियों तथा लघु उद्योगों को अग्रिम ऋण देना।

बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में क्या अंतर है? NBFC ऋण प्रदान करते हैं और निवेश भी करते हैं। इस प्रकार उनकी गतिविधियाँ बैंकों के समान ही होती हैं, हालाँकि उनके बीच निम्नलिखित अंतर भी होता है: NBFC मांग जमा (Demand Deposits) स्वीकार नहीं कर सकते हैं; NBFC भुगतान और निपटान प्रणाली का अंग नहीं होते हैं तथा स्वयं द्वारा भुगतेय चेक जारी नहीं कर सकते हैं; बैंकों की तरह NBFC के जमाकर्त्ताओं को निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation) की निक्षेप बीमा सुविधा उपलब्ध नहीं होती है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक साझा मुद्राएं के गवर्नरों के साथ की बैठक

अमेरिका यात्रा पर गईं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों (एफएमसीबीजी) की चौथी बैठक में भाग लिया। वर्तमान में आईएमएफ-विश्व बैंक की वार्षिक बैठकों से साथ वाशिंगटन डीसी में चल रही है।

दो दिवसीय बैठक के दौरान वित्त मंत्री कई सत्रों में हिस्सा लेंगी। पहले सत्र में वित्त मंत्री ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बात की, जो आर्थिक विकास, वैश्विक वित्तीय संकट और आर्थिक नीति प्रतिक्रियाओं पर केंद्रित थी। देश की अर्थव्यवस्था पर बात करते हुए वित्त मंत्री ने कहा भारत ने दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के साथ अर्थव्यवस्था की तात्कालिक जरूरतों को संतुलित करके पर जोर दिया है। वर्ष 2020 से संकुचित वैश्विक अर्थव्यवस्था के बावजूद भारत तीव्र विकास दर बनाए हुए है।

IMF ने आरबीआई के फैसले को बताया उचित

आईएमएफ ने भारत में महंगाई को काबू में करने के लिए मौद्रिक नीति को सख्त करने पर आरबीआई की सराहना की। मुद्रा कोष के मौद्रिक एवं पूंजी बाजार विभाग में उप खंड प्रमुख गार्सिया पास्क्वाल ने कहा, मई से ही तय सीमा से ऊंचे स्तर पर बनी महंगाई से निपटने के लिए आरबीआई ने मौद्रिक नीति को सख्त कर उचित किया है। “मुझे ध्यान है आरबीआई ने रेपो दर में 1.90 फीसदी की वृद्धि की है। हमारा मानना है कि महंगाई को निश्चित स्तर तक लाने के लिए और सख्ती करनी होगी।

केन्द्रीय वित्त मंत्री ने कहा है कि देश का आर्थिक विकास और उनके नकारात्मक वित्तीय जोखिमों से निपटने के लिए वैश्विक नीतिगत सहयोग और अनुभवों को साझा करने की आवश्यकता है। वित्त मंत्री ने इससे निपटने के लिए जी20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों को उनके नीतिगत अनुभव साझा करने का आह्वान किया।

वैश्विक नीतिगत सहयोग के लिए वित्त मंत्री का आह्वान महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ती ब्याज दरें भारतीय रुपये सहित कई देशों की मुद्राओं पर दबाव डाल रही हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी अपनी मौद्रिक नीति को सख्त कर रहा है। भारत की खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के ऊपरी स्तर से ऊपर बनी हुई है। और हाल के महीनों में घरेलू मुद्रा में तेज मूल्यह्रास का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही भारत, क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर वैश्विक सहमति बनाने पर जोर दे रहा है।

कई प्रमुख मुद्दों को लेकर चर्चा

वित्त मंत्री ने दुनिया भर के कई देशों के वित्त मंत्रियों के साथ एक-एक करके द्विपक्षीय बैठकें की। उन्होंने ओईसीडी, यूरोपीय आयोग और यूएनडीपी के नेताओं और प्रमुखों के साथ भी बैठकें की हैं। आईएमएफ और विश्व बैंक की बैठकों से इतर सीतारमण ने मंगलवार को मिस्र, भूटान, नीदरलैंड, सऊदी अरब और दक्षिण कोरिया के मंत्रियों से मुलाकात की। उन्होंने ओईसीडी के महासचिव माथियास कॉर्मन और एफएटीएफ के अध्यक्ष राजा कुमार से भी मुलाकात की।

इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि आत्मनिर्भर भारत न तो ‘पृथकतावाद’ है और न ही ‘संरक्षणवाद’, बल्कि यह इस तथ्य की स्वीकार्यता है कि भारत को जीडीपी में अपनी विनिर्माण हिस्सेदारी बढ़ानी चाहिए। वित्त मंत्री ने वाशिंगटन डीसी में प्रतिष्ठित ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में व्यापक तौर पर औद्योगिकीकरण नहीं हुआ क्योंकि इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी की कमी थी।

शब्द बने भाव और मुद्राएं बनीं अभिव्यक्ति

शब्द बने भाव और मुद्राएं बनीं अभिव्यक्ति

इंदौर, नईदुनिया रिपोर्टर। कथा को कहने का इतना खूबसूरत अंदाज कि जिसे उसकी पृष्ठभूमि पता हो उसके लिए आनंद दोगुना और जो उससे अनजान हो उसके लिए उत्सुकता के साथ सुखद अनुभूति का भंडार। जिस कला का जिक्र महाभारत काल और मौर्य काल के अभिलेख में मिलता हो उसे समझने और समझाने की एक अभिनव पहल स्पिक मेके द्वारा की जा रही है। इसके तहत शहर में विश्व विख्यात कथक नृत्यांगना शोवना नारायण ने न केवल प्रस्तुति दी, बल्कि बालमन की जिज्ञासा भी शांत की।

मंगलवार को शहर में शिशुकुंज स्कूल में शोवना ने कथक की प्रस्तुति दी। इसमें शास्त्रीय परंपरा की धरोहर कथक को न केवल सुंदर तरीके से पेश किया, बल्कि चर्चा और सवाल- जवाब द्वारा इसके बारे में समझाया भी। जब एक विद्यार्थी ने उनसे सवाल किया कि शिक्षा, प्रशासनिक कार्य और कला के बीच किस तरह तालमेल स्थापित किया जा सकता है तो इसका मंत्र साझा करते हुए उन्होंने कहा कि यदि आपके मन में जुनून, समर्पण और प्रतिबद्धता है तो आप सभी के बीच तालमेल स्थापित कर मंजिल तक पहुंच सकते हैं।

दूसरे अन्य विद्यार्थी ने उनसे सवाल किया कि ताल पक्ष को मजबूत किस तरह बनाया जाए तो उन्होंने इसका सबसे कारगर तरीका सतत रियाज को बताते हुए कहा कि आप जितना अभ्यास करते जाएंगे परिपक्वता आती जाएगी। द्रौपदी चीरहरण की सुंदर प्रस्तुति आयोजन में सवाल-जवाब के दौर से पहले प्रस्तुतियों का सिलसिला चला, जिसकी शुरुआत विष्णु वंदना से हुई। इसके बाद शुद्ध कथक में आमद, उत्थान, तोड़े-टुकड़े आदि पेश किए गए। वास्तव में यह वह पल था, जब शब्द भाव बन गए थे और मुद्राएं उसे जाहिर करने का सुंदर जरिया। इसके जरिए कथक के शास्त्रीय रूप और उसकी गंभीरता को बताया गया, वहीं विद्यार्थियों की रुचि और दिलचस्पी को देखते हुए गतभाव को भी प्रस्तुत किया गया।

गतभाव में द्रौपदी चीरहरण की सुंदर प्रस्तुति दी गई तो साझा मुद्राएं सुरदास का पद 'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो' पर भी शोवना नारायण ने प्रस्तुति दी। इन प्रस्तुतियों के माध्यम से उन्होंने बहुत ही सहज भाव से विद्यार्थियों को कथक के सौंदर्य और भावों से अवगत करा दिया। इन प्रस्तुतियों की खास बात यह थी कि ये लाइव म्यूजिक पर किया गया था, जिसमें गायन और हारमोनियम वादन माधो प्रसाद ने किया। वायलिन पर अजहर शकील ने साथ दिया और तबले पर शकील अहमद खान ने संगत की।

भारतीय दर्शन शास्त्र की खासियत

प्रस्तुति के साथ उन्होंने हस्तमुद्राओं के जरिए भाव समझाने और साझा मुद्राएं उन्हीं भावों को पद संचालन से भी बताया। जिससे विद्यार्थी यह जान सके कि पद संचालन से वही भाव कैसे अभिव्यक्त किए जा सकते हैं। उन्होंने नटराज, वीणावादिनी, मुरलीधर जैसे नामों को आधार बनाते हुए कहा कि हमारे देश में जिन्हें हम पूजते हैं, उन्हें कलाकार के रूप में जानते हैं, यही बात भारतीय दर्शन शास्त्र को सबसे अलग बनाती है। आज भी अयोध्या के मंदिर में कथाकार हैं, जो कि साहित्य को गाकर सुनाते हैं और नृत्य भी करते हैं।

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black money

('नोट-बंदी: डेमोनेटिज़ेशन एंड इंडियाज का एलूसिव चेज़ फॉर ब्लैक मनी, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की एक आगामी पुस्तक है, जो उन "भारतीय नागरिकों की स्मृति को समर्पित है जिन्होंने नोटबंदी की वजह से अपना जीवन गंवा दिया"). उन अध्यायों में से चंद उद्धरण. )

किसी भी नोटबंदी की सफ़लता बैंकिंग सिस्टम वापस ना आयी राशी से मापी जाती है. लम्बे समय तक अर्थशास्त्री एवं प्रेक्षक इस बात से चिंतित थे कि आखिर 10 दिसंबर 2016 के बाद आर.बी.आई. एस.बी.एन. (निर्दिष्ट या प्रतिबंधित बैंक नोट्स) जो बैंकों में वापस आये हैं उनके सम्बन्ध में डाटा/आंकड़ा क्यों नहीं साझा कर रही है.

एस.बी.एन. के बारे में जानकारी पाना इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जो भी मुद्रा बैंकिंग व्यवस्था में नहीं लौट पाई है वह 'काला धन' कहलाएगी जिसे आर.बी.आई. ‘मृतप्राय” घोषित कर देगी. इसके फलस्वरूप, आर.बी.आई. उसी मात्रा का धन सरकार को ऑफर कर सकती थी, जिसे सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च कर सकती थी.

सरकार की इस उम्मीद को भारत सरकार के महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पेश किया. रोहतगी के मुताबिक़, सरकार का अंदाजा था कि बैंकों में 12 लाख करोड़ से अधिक मुद्रा वापस नहीं आएगी, जिसका सीधा मतलब है कि बाकी बची हुई 3 लाख करोड़ की मुद्रा को मृतप्राय घोषित कर दिया जाएगा और सरकार के खर्च के लिए दे दिया जाएगा.

जैसे-जैसे नोटबंदी आगे बढी, सारी उम्मीदे पानी में मिलती चली गयी. सबसे पहले तो, “आर.बी.आई. के गवर्नर उरिजित पटेल ने 7 दिसंबर 2016 को यह सफाई देने साझा मुद्राएं पर बाध्य होना पडा कि "कानूनी निविदा की वापसी का मकसद किसी भी आर.बी.आई. बैलेंस शीट या वापस न आयी मुद्रा को मृतप्राय घोषित करने की नहीं है. और कहा कि वे अब भी आरबीआई की देनदारी हैं”.

8 दिसंबर को राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने पत्रकारों को बताया कि “उम्मीद यह है कि जितनी मुद्रा चलन में है वह बैंकों में वापस आ जायेगी”. दुसरे शब्दों में कहें तो, जिस गति से एस.बी.एन. प्रतिबंधित मुद्रा बैंकों में वापस आ रही थी उससे सरकार को विश्वास हो गया था कि मुद्रा की कोई भी मात्र ऐसी नहीं बचेगी जिसे मृत घोषित करने की आवश्यकता होगी. 10 दिसंबर तक 12.44. लाख करोड़ की प्रबंधित मुद्रा सीधे बैंकिंग व्यवस्था में आ चुकी थी.

सरकार ने 10 दिसंबर के बाद एसएनबीएस(प्रतिबंधित मुद्रा) वापस आने वाले किसी भी आंकड़े को साझा करने से इनकार कर दिया. इसके उलट सरकार ने तथ्यों को अस्पष्ट करने और 'दोहरी गिनती' की जटिल कहानियों के जरिए जनता को भ्रमित करने का प्रयास किया. 15 दिसंबर को (आर्थिक मामलों के सचिव, शक्तिकान्ता) दास ने मीडिया को बताया कि प्रतिबंधित मुद्रा पर आंकड़ों को अभी जारी नहीं किया जाएगा क्योंकि आर.बी.आई. को यह शक है कि मुद्रा की “दोहरी गिनती” की गयी है.

प्रतिबंधित मुद्रा को गिनने के दो रास्ते हैं. सभी व्यक्तिगत बैंकों में प्रतिबंधित मुद्रा के जरिए उत्पन्न नकदी की साझा मुद्राएं स्थिति से. या फिर वहां दोबारा गिनती की स्थिति पैदा हुई जिन बैंकों के पास मुद्रा रखने की व्यवस्था नहीं थी, या नकद को सीधे उन बैंकों में जमा कर दिया जिनके पास करेंसी चेस्ट है.

दुसरे, अगर सीधे करेंसी चेस्ट से नकदी आई है तो उस मामले में दोहरी गिनती की गुंजाईश नहीं थी. (आर.बी.आई. की उप-निदेशक, उषा) थोरात ने एक साक्षात्कार में कहा “ कि दोहरी गिनती की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है..आर.बी.आई. केवल करेंसी चेस्ट के आंकड़े को सही मानती है.”.

इकोनॉमिक्स टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में रजनीश कुमार, एस.बी.आई. निदेशक ने अनिश्चित अंदाज़ में कहा कि करेंसी चेस्ट की स्थिति ही सही स्थिति साझा मुद्राएं है, और कहा उसमें कोई दोष नहीं हो सकता. दोहरी गिनती उसी स्थिति में हो सकती है अगर बैंक या पोस्ट ऑफिस जामा धन की स्थिति को अवगत कराते हैं. लेकिन करेंसी चेस्ट हर रोज़ जामा धन के सम्बन्ध में रिपोर्ट करती है और जोकि एक स्वचालित प्रक्रिया है, इसलिए किसी गलती की कोई संभावना नहीं है. अगर आर.बी.आई. करेंसी चेस्ट के आधार पर किसी मात्रा को साझा मुद्राएं बताती है तो उसमें कोई गलती की संभावना नहीं है. लेकीन अगर डाटा प्रत्येक दिन की बैंकों में जमा राशि की रिपोर्टिंग के आधार पर दिया है फिर इसमें दोहरी गिनती की संभावना हो सकती है.

अपनी निरंतर प्रेस वार्ता में आर.बी.आई. हमेशा करेंसी चेस्ट की नकदी की स्थिति के आधार पर ही आंकड़े बताती थी न कि व्यक्तिगत बैंकों में जमा मुद्रा के आधार पर. आर.बी.आई. के उप-निदेशक, आर. गांधी ने 13 दिसंबर 2016 को मीडिया को बताया कि “500 और 1000 के प्रतिबंधित नोट 12.44 लाख करोड़ की मात्रा में आर.बी.आई. में 10 दिसंबर 2016 तक वापस आ गए है”.

2017 के अगस्त में अंतत: आर.बी.आई. ने प्रतिबंधित मुद्रा की संख्या की वापसी के अंतिम आंकड़े जारी किये. आर.बी.आई. की 2016-17 की वार्षिक रपट के मुताबिक़, 8 नवम्बर 2016 तक चलन में जो मुद्रा थी वह 15.44 लाख करोड़ थी और में से 15.3 लाख करोड़ के प्रतिबंधित नोट वापस आ गए थे. दुसरे शब्दों में कहे तो 98.96 प्रतिशत प्रतिबंधित मुद्रा बैंकिंग व्यवस्था में वापस आ गयी थी और मात्र 1.04 प्रतिशत प्रतिबंधित मुद्रा बहार रह गयी

आखिर अंतिम फैंसला आ ही गया: जैसाकि ज्यादातर आलोचकों ने अटकलें लगाई थी, नोटबंदी ऐसी किसी भी मृत पूँजी को नहीं ढूंढ पायी जिसे “कला धन” कहा जा सके.

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देश के हर परिवार में एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाना, माननीय .

देश के हर परिवार में एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाना, माननीय प्रधानमंत्री के “डिजिटल भारत” अभियान का एक अभिन्न अंग है | राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता अभियान में देश के प्रत्येक राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश में आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता और अधिकृत राशन डीलरों के अतिरिक्त हर उपयुक्त घर में 52.5 लाख व्यक्तियों को सूचना एवं प्रौद्योगिकी का प्रशिक्षण दिया जाएगा | इस अभियान का उद्देश्य प्रशिक्षु की जरूरत के अनुसार प्रासंगिक बुनियादी आई. सी. टी. कौशल प्रदान करना है | इसके द्वारा नागरिकों को उनकी आजीविका के लिए आई. सी. टी. और संबंधित अवसरों का उपयोग करने में, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने में और आगे बढ़ने में सहायता मिल सकेगी |

कृपया डिजिटल रूप से निरक्षर को शिक्षित करने के लिए राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन (NDLM) या डिजिटल साक्षरता अभियान (दिशा) योजना को बढ़ावा देने के लिए अपने विचारों को साझा करें, और ग्रामीण भारत में तथा जमीनी स्तर पर डिजिटल डिवाइड को कम करने के लिए इस मिशन में मदद करें ।

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