अमीर कैसे बने

Weather Forecast: इन राज्यों में 48 घंटे के दौरान होगी मूसलाधार बारिश, IMD ने जारी किया अलर्ट, जानें आपके राज्य में कैसा रहेगा मौसम
IMD Weather Forecast: मौसम विभाग ने 21 और 22 नवंबर को उत्तरी तमिलनाडु-पुडुचेरी और दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश सहित रायलसीमा में मध्यम से भारी बारिश की भविष्यवाणी की है
Weather Forecast: मौसम विभाग ने कहा है कि 24 घंटे के दौरान देश के कुछ दक्षिणी राज्यों में तेजी बारिश होने की आशंका है
Weather Forecast Updates: इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) ने सोमवार को कहा कि अगले 24 से 48 घंटे के दौरान बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) के ऊपर बने दबाव के दक्षिण आंध्र प्रदेश (South Andhra Pradesh), उत्तरी तमिलनाडु (North Tamil Nadu) और पुडुचेरी (Puducherry) तटों की ओर बढ़ने की आशंका है। मौसम विभाग ने कहा कि इस दौरान देश के कुछ दक्षिणी राज्यों में तेजी बारिश होने की आशंका है। IMD भारी बारिश की चेतावनी जारी करते हुए मछुआरों को इस दौरान समुद्र तट पर नहीं जाने की सलाह दी है।
इन राज्यों में बारिश की चेतावनी
- मौसम विभाग ने 21 और 22 नवंबर को उत्तरी तमिलनाडु-पुडुचेरी और दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश सहित रायलसीमा में मध्यम से भारी बारिश की भविष्यवाणी की है।
जलवायु संकट के लिये अमीर देशों की उदासीनता खतरनाक
जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए अमीर एवं शक्तिशाली देशों की उदासीनता एवं लापरवाह रवैया एक बार फिर मिस्र के अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन (कॉप-27) में देखने को मिली। दुनिया में जलवायु परिवर्तन की समस्या जितनी गंभीर होती जा रही है, इससे निपटने के गंभीर प्रयासों का उतना ही अभाव महसूस हो रहा है। कॉप-27 में मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण गरीब देशों को हुए नुकसान पर चर्चाएं हुई, इस तरह का नुकसान गरीब देश ही भुगतते हैं। इस सम्मेलन में इसकी भरपाई के लिए धन मुहैया कराने समेत अन्य अहम मुद्दों को लेकर गतिरोध ने इस कड़वे यथार्थ एवं खौफनाक सच को फिर रेखांकित कर दिया कि अमीर एवं शक्तिशाली देश इस वैश्विक समस्या के प्रति उदासीन है। गंभीर से गंभीरतर होते इस संकट को लेकर सम्मेलन के समापन पर 'नुकसान और क्षति' कोष स्थापित करने पर सहमति भले ही बन गई, लेकिन यह कोष कब तक बनेगा, कौन इसमें सहयोगी होंगे और किस तरह काम करेगा, यह स्पष्ट नहीं है। सम्मेलन में स्वीकार किया गया कि पिछले सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जो संकल्प किया गया था, वह पूरा नहीं हो सका। इसलिये एक बार फिर सभी 197 देशों ने कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने का संकल्प किया है। कॉप-27 से इसलिए भी काफी उम्मीदें थीं कि जलवायु परिवर्तन से पिछले एक साल में दुनिया में हालात ज्यादा गंभीर हुए है, बिगड़े हैं। दरअसल कार्बन उत्सर्जन घटाने एवं जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अमीर देशों ने जैसा रुख अपनाया हुआ है, वह इस संकट को गहराने वाला है। जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों ने भारत ही नहीं पूरी दुनिया की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अभी भी नहीं चेते तो यह समस्या हर देश, हर घर एवं हर व्यक्ति के जीवन पर अंधेरा बनकर सामने आयेगी।
भारतीय उपमहाद्वीप और कई यूरोपीय देशों को भीषण गर्मी तथा बाढ़ की मार झेलनी पड़ी है। भारत में ग्लोबल तापमान के चलते होने वाला विस्थापन अनुमान से कहीं अधिक है। मौसम का मिजाज बदलने के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में प्राथमिक आपदाओं की तीव्रता आई हुई है। दिल्ली-एनसीआर और इसके पड़ोसी राज्यों में वायु प्रदूषण की समस्या भी जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है। भारत में जलवायु परिवर्तन पर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फार एनवायरमेंट एंड डवलपमेंट की पूर्व में जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया था कि बाढ़-सूखे के चलते फसलों की तबाही और चक्रवातों के कारण मछली पालन में गिरावट आ रही है। देश के भीतर भू-स्खलन से अनेक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। भू-स्खलन उत्तराखंड एवं हिमाचल जैसे दो राज्यों तक सीमित नहीं बल्कि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, सिक्किम और पश्चिम बंगाल की पहाड़ियों में भी भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन के चलते लोगों की जानें गई हैं, इन प्राकृतिक आपदाओं के शिकार गरीब ही अधिक होते हैं, गरीब लोग प्राथमिक विपदाओं का दंश नहीं झेल पा रहे और अपनी जमीनों से उखड़ रहे हैं। गरीब लोग सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर चुके हैं। विस्थापन लगातार बढ़ रहा है। महानगर और घनी आबादी वाले शहर गंभीर प्रदूषण के शिकार हैं, जहां जीवन जटिल से जटिलतर होता जा रहा है।
भारत का पडौसी देश पाकिस्तान तो इतिहास की सबसे अमीर कैसे बने विनाशकारी बाढ़ से अब तक नहीं उबर पाया है। धरती की आबो-हवा बिगाड़ने में रूस-यूक्रेन युद्ध ने आग में घी का काम किया है। इस युद्ध से गैस की सप्लाई में बाधा के कारण कोयला आधारित बिजलीघरों को फिर सक्रिय करना पड़ा। इससे यूरोपीय देशों में मौसम इतना गर्म हुआ कि कई नदियों का पानी सूख गया। कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दुनियाभर में कोयले का इस्तेमाल घटाने पर जोर दिया जा रहा है, जबकि युद्ध ने कोयले का इस्तेमाल कई गुना बढ़ा दिया। एक बड़ा सवाल उठना लाजिमी है कि शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य आखिर हासिल कैसे होगा? पर्यावरण के बिगड़ते मिजाज एवं जलवायु परिवर्तन के घातक परिणामों ने जीवन को जटिल बना दिया है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए विकसित देशों को गरीब मुल्कों की मदद करनी थी। इसके लिए 2009 में एक समझौता भी हुआ था, जिसके तहत अमीर देशों को हर साल सौ अरब डालर विकासशील देशों को देने थे। पर विकसित देश इससे पीछे हट गए। इससे कार्बन उत्सर्जन कम करने की मुहिम को भारी धक्का लगा। इसलिए अब समय आ गया है जब विकसित देश इस बात को समझें कि जब तक वे विकासशील देशों को मदद नहीं देंगे तो कैसे ये देश अपने यहां ऊर्जा संबंधी नए विकल्पों पर काम शुरू कर पाएंगे।
वैज्ञानिक और पर्यावरणविद चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले दशकों में वैश्विक तापमान और बढ़ेगा इसलिए अगर दुनिया अब भी नहीं सर्तक होगी तो इक्कीसवीं सदी को भयानक आपदाओं से कोई नहीं बचा पाएगा। अमीर देश कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य विकासशील और गरीब देशों पर थोपने लगे हैं। अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसे देश भी कोयले से चलने वाले बिजली घरों को बंद नहीं कर पा रहे। भारत के साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान सहित 11 ऐसे देश हैं जो जलवायु परिवर्तन के लिहाज से चिंताजनक श्रेणी में हैं। ये ऐसे देश हैं, जो जलवायु परिवर्तन के कारण सामने आने वाली पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों से निपटने की क्षमता के लिहाज से खासे कमजोर हैं। आने वाले समय में विश्व तापमान की दशा तय करने में चीन और भारत की अहम भूमिका रहने वाली है। आखिर चीन दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। भारत भी चीन के साथ जुड़ इसलिए जाता है क्योंकि इन दोनों ही देशों में उत्सर्जन की मात्रा साल-दर-साल बढ़ रही है। हालांकि यह भी कोई छुपा तथ्य नहीं है कि भारत जैसे देशों के लिए उत्सर्जन कम करना आसान नहीं है। इसके लिए जिम्मेदार सबसे बड़ा कारक कोयले का बहुतायत में इस्तेमाल है, जिसे रातोरात कम करना संभव नहीं। क्योंकि इसके सारे विकल्प अपेक्षाकृत महंगे पड़ते हैं।
पर्यावरण के निरंतर बदलते स्वरूप ने निःसंदेह बढ़ते दुष्परिणामों पर सोचने पर मजबूर किया है। औद्योगिक गैसों के अमीर कैसे बने लगातार बढ़ते उत्सर्जन और वन आवरण में तेजी से हो रही कमी के कारण ओजोन गैस की परत का क्षरण हो रहा है। इस अस्वाभाविक बदलाव का प्रभाव वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु परिवर्तनों के रूप में दिखलाई पड़ता है। वर्तमान समय में पर्यावरण के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियां गंभीर चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्र का जलस्तर तीव्रगति से बढ़ा रहे हैं। जिससे समुद्र किनारे बसे अनेक नगरों एवं महानगरों के डूबने का खतरा मंडराने लगा है। दुनिया ग्लोबल वार्मिंग, असंतुलित पर्यावरण, जलवायु संकट एवं बढ़ते कार्बन उत्सर्जन जैसी चिंताओं से रू-ब-रू है। जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर धरती की हालत 'मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की' वाली है। इसीलिए कॉप-27 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को कहना पड़ा कि हमारी पृथ्वी एक अमीर कैसे बने तरह से जलवायु अराजकता की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि इंसानी सभ्यता के सामने अब सिर्फ 'सहयोग करने या खत्म हो जाने' का विकल्प बचा है। जाहिर है, पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है। सभी देश कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम के साथ-साथ ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने और जैव विविधता के नुकसान को खत्म करने के प्रयासों को जितना तेज करेंगे, उसी अमीर कैसे बने में सबकी भलाई है। इसके लिए वैश्विक महाअभियान इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है। सार्वभौमिक तापमान में लगातार होती इस वृद्धि के कारण विश्व के पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, उससे मुक्ति के लिये जागना होगा, संवेदनशील होना होगा एवं विश्व के शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को सहयोग के लिये कमर कसनी होगी तभी हम जलवायु परिवर्तन के संकट से निपट सकेंगे अन्यथा यह विश्व मानवता के प्रति बड़ा अपराध होगा, उसके विनाश का कारण बनेगा।
जब नौकरियां जाने लगें तो संभल जाइए, मंदी दरवाजा खटखटा रही है, Jeff Bezos ने क्यों चेताया
Twitter में layoffs का दौर थमा नहीं है। Elon Musk के आने के बाद धड़ाधड़ नौकरियां गईं। Meta समेत कई बड़ी IT कंपनियां भी जॉब्स ले रही हैं। इस बीच एमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस ने कहा कि वे घर-गाड़ी न खरीदें क्योंकि मंदी आ रही है। तो क्या दो साल कोविड झेल चुकी दुनिया अब मंदी नाम का वायरस झेलेगी!
नई दिल्ली। जो आईटी कंपनियां पहले भर-भरकर पैसे और ल्गजरी जिंदगी देने के लिए जानी जाती थीं, वे अपने कर्मचारियों अमीर कैसे बने को बेरहमी से निकाल रही हैं। 50 फीसदी लोगों को निकालने वाले ट्विटर की चर्चा खूब है, लेकिन मेटा यानी फेसबुक, सिस्को, अमेजन और नेटफ्लिक्स से भी ले-ऑफ हो चुका। आमतौर पर ऐसा तभी होता है, जब कंपनी घाटे में जा रही हो। मंदी की आहट भी एक वजह होती है, जो आम लोगों से बहुत पहले कंपनियों को सुनाई पड़ जाती है।
विज्ञापन: "जयपुर में निवेश का अच्छा मौका" JDA अप्रूव्ड प्लॉट्स, मात्र 4 लाख में वाटिका, टोंक रोड, कॉल 8279269659
क्या है मंदी और कब आती है?
जैसा कि नाम से जाहिर है, मंदी यानी मंद पड़ जाना। इकनॉमी की बात करें तो जब किसी देश की अर्थव्यवस्था एकदम से धीमी पड़ जाए। जीडीपी गिरने लगे और ये हालात लगातार दो क्वार्टर तक बने रहे तो माना जाता है कि देश में आर्थिक मंदी आ चुकी है। युद्ध, गृह युद्ध, बीमारी जैसे कई हालात इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। मिसाल के तौर पर हाल ही में दुनिया ने कोविड महामारी झेली। सालभर से ज्यादा वक्त से यूक्रेन-रूस लड़ाई चल रही है। अरब देशों में लगातार गृह युद्ध जैसे हालात बने रहते हैं। इस सबका मिला-जुला असर बाकी देशों की अर्थव्यवस्था पर भी दिख रहा है।
क्या होता है मंदी आने पर?
इस दौरान लोगों की नौकरी जाने लगती है, महंगाई बढ़ जाती है, यहां तक कि खरीद-फरोख्त भी कम हो जाती है। इसके साथ ही लोगों का खर्च बढ़ जाता है। ये इसलिए नहीं कि मंदी के बाद भी लोग घर-दुकान खरीदते हों, बल्कि बेसिक जरूरतें ही इतनी महंगी हो जाती हैं कि खर्च अपने-आप बढ़ जाता है।
कौन बताता है कि मंदी आ चुकी?
हम-आप जैसे लोग महंगाई ही समझते रहते हैं, जब तक कि अर्थशास्त्री न बता दें कि भई, अब चेत जाओ, मंदी आ चुकी। वैसे तो हर देश में इसका अलग पैमाना होता है, लेकिन अगर दुनिया के सबसे ताकतवर देश का उदाहरण लें तो अमेरिका में नेशनल ब्यूरो ऑफ इकनॉमिक रिसर्च ये पक्का करता है। ये 8 लोगों की टीम है, जो लगातार देश की इकनॉमी पर नजर रखती है, और तभी मंदी या तेजी बताती है।
क्या बच रहा है अमेरिका?
वैसे दिलचस्प बात है कि अमेरिकी जीडीपी पिछले दो क्वार्टर में कुछ कमाल नहीं कर पाई, बल्कि निगेटिव में ही है। हाल में अमेजन के फाउंटर और पूर्व सीईओ जेफ बेजोस ने अमीर कैसे बने भी लोगों को बड़ी खरीदी से चेताया। ये एक तरह से मंदी का सीधा इशारा है, लेकिन अमेरिकी टीम ने अब तक इसका एलान नहीं किया है।
बीच-बीच में दुनिया स्टेगफ्लेशन से भी जूझती है
वो दौर, जब इकनॉमी स्थिर हो जाए। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जैसे लंबे समय तक एक संस्थान में रहने के बाद कई लोग शिकायत करते हैं कि वे कुछ नया नहीं सीख पा रहे, स्थिरता आ गई है। कुछ इसी तरह का हाल देशों का हो जाता है। उनकी जीडीपी कम तो नहीं होती, लेकिन बढ़ती भी नहीं है। ये भी खराब स्थिति है, लेकिन इससे उबरना आसान है।
एक और स्थिति है, जिसे डिफ्लेशन कहते हैं
इस दौरान महंगाई पर कंट्रोल के लिए बैंक ब्याज दर बढ़ा देते हैं। अब ब्याज दर बढ़ेगी तो लोग खरीदी कम कर देंगे। खरीदी कम होगी, तो चीजों की कीमत धड़ाम हो जाएगी। हालांकि लोग तब भी बाजार पर पैसे नहीं लगाएंगे, फिर चाहे वे आम लोग हों, या बड़े व्यापारी। इसके बाद भी मंदी आ जाती है। यही वजह है कि ब्याज दरें बढ़ाते हुए किसी भी देश का बैंक बहुत गणित लगाता है।
कोई देश नहीं रह जाता सेफ
मंदी के साथ सबसे खतरनाक बात ये है कि एक देश में इसका आना बहुत से देशों पर असर डालता है। जैसे चीन में कोविड के कारण मंदी आ जाए, तो वहां से भेजा जाने वाला सामान दूसरे देशों तक नहीं पहुंच सकेगा। इससे सप्लाई चेन प्रभावित होगी। वे चीजें ज्यादा कीमत पर दूसरे देशों से खरीदी जाएंगी, जिसका बोझ देश की जीडीपी और आम आदमी की जेब पर भी पड़ेगा। यानी मंदी कोविड जैसा ही वायरस है, जो कहीं ज्यादा-कहीं कम अमीर कैसे बने असर डालता है।
वो दौर जिसने सबको हिलाकर रख दिया
दुनिया की सबसे बड़ी मंदी 1925 के आसपास आई, जिसे ग्रेट डिप्रेशन भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई। हुआ ये कि पहले वर्ल्ड वॉर के बाद अमेरिका में इंडस्ट्रिअलाइजेशन बढ़ा। लोगों के पास पैसे आने लगे और वे उसे मार्केट में लगाने लगे। खूब घर खरीदे गए। महंगी से महंगी गाड़ियां आईं। लोगो वेकेशन्स के लिए बाहर जाने लगे। ठीक तभी, बाजार क्रैश हो गया। तिसपर अकाल भी आ गया। लोगों के सारे पैसे बाहर लग चुके थे। नौकरियां चली गईं। इस दौर को कई जगहों पर खुदकुशी का वक्त भी कहा अमीर कैसे बने गया। बेगार लोगों ने आत्महत्याएं कर लीं।
अमेरिका के बाद डिप्रेशन ब्रिटेन और पूरे यूरोप समेत भारत तक भी पहुंचा। इसके बाद आर्थिक नीतियों में बदलाव किया गया। लोगों ने भी समझा कि सारे पैसे मार्केट पर लगाने की बजाए सेविंग्स भी होनी चाहिए। तब जाकर हालात बदले।
कैसे जाती है मंदी?
हर मंदी के बाद यही होता है। सरकारें खुद भी निवेश करती हैं, और अपने यहां के बड़े उद्योगपतियों को भी कहती हैं कि वे बाजार पर इनवेस्ट करें। इससे पैदा होती है नौकरी, यानी पैसे। आम लोग भी खरीद-फरोख्त करने लगते हैं और दुनिया दोबारा चल निकलती है।
फिलहाल राहत की बात ये है कि भारत को लेकर लगातार अर्थशास्त्रियों समेत हर कोई कह रहा है कि हमपर मंदी का खतरा नहीं। हाल ही में आरबीआई गर्वनर शक्तिकांत दास ने भी यही बात की। हालांकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की सुस्त पड़ती इकनॉमी के बीच पूरी तरह से बेफिक्र नहीं रहा जा सकता।
Ind Vs Nz 2nd T20 : टिम साउदी ने हैट्रिक बनाया और रोका भारत के रनों का तूफान, जानिए
Newz Fast, New Delhi: माउंट माउनगनुई के बे ओवल के मैदार में आज रविवार को भारत और न्यूजीलैंड के बीच तीन मैचों की टी20 सीरीज का दूसरा मैच खेला जा रहा है। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए न्यूजीलैंड को 192 रन का लक्ष्य दिया है।
टीम इंडिया के लिए जहां सूर्यकुमार यादव के शानदार शतक ठोका है तो वहीं न्यूजीलैंड के तेज गेंदबाज टिम साउदी ने शानदार हैट्रिक बनाई अमीर कैसे बने है। हालांकि साउदी की यह हैट्रिक न्यूजीलैंड को कुछ ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा सकी। क्योंकि तब भारतीय टीम 190 के स्कोर तक पहुंच चुकी थी। इस हैट्रिक के साथ टिम साउदी ने लसिथ मलिंगा के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है।
टीम साउदी ने अपने 20वें ओवर की तीसरी गेंद पर भारत के कप्तान हार्दिक पांड्या को नीसम के हाथों कैच कराया। इसके बाद भारत की तरफ से बल्लेबाजी के लिए उतरे दीपक हुड्डा को टिम साउदी ने फर्गुसन के हाथों कैच कराकर आउट किया। उधर, दूसरे छोर पर सूर्यकुमार यादव खड़े थे तो इधर विकेटों की झड़ी लग रही थी।
जब टिम साउदी हैट्रिक पर थे तो वासिंगटन सुंदर बल्लेबाजी के लिए उतरे, लेकिन वह भी टिम साउदी की हैट्रिक को नहीं रोक सके और नीसम को कैच थमाकर चलते बने। इस हैट्रिक के साथ टिम साउदी की टी20 क्रिकेट में दो हैट्रिक हो गई हैं। इससे पहले टी20 में दो हैट्रिक का रिकॉर्ड लसिथ मलिंगा के नाम था। अब टिम साउदी ने लसिथ मलिंगा के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है।
बारिश के अमीर कैसे बने कारण रुका खेल
बता दें कि न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियमसन ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया था। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए निर्धारित 20 ओवर में 6 विकेट खोकर 191 रन बनाए हैं। भारत की शुरुआत अच्छी रही।
टीम ने पहले पांच ओवर में बिना विकेट खोए 36 रन बोर्ड पर लगा दिए थे। इसी बीच भारत को पहला झटका ऋषभ पंत के रूप में लगा। ऋषभ 13 गेंद में महज 6 रन बनाकर आउट हो गए हैं। इसके बाद 6.4 ओवर के बाद एक बार फिर बारिश ने खेल को रोक दिया।
सूर्यकुमार ने 49 गेंद में बनाया शतक
बारिश के बाद खेल शुरू होने पर 10वे ओवर में भारत को दूसरा झटका लगा। ईशान किशन 31 गेंद पर 36 रन बनाकर ईश सोढ़ी की गेंद पर टिम साउदी को कैच थमा बैठे। फिर 108 रन पर भारत का तीसरा विकेट श्रेयस अय्यर के रूप में गिरा।
इसके बाद सूर्यकुमार यादव ने 32 गेंद में अपना अर्धशतक पूरा किया। इसके बाद सूर्यकुमार की आतिशी पारी जारी रही और उन्होंने 49 गेंद पर अपना शतक पूरा किया। उनके शतक की बदौलत ही भारत 192 रन का लक्ष्य देने में कामयाब हो सका है।
एलन मस्क इस साल 100 अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति गंवाने वाले पहले अरबपति बने
हिन्दुस्तान 4 घंटे पहले लाइव हिन्दुस्तान
दुनिया के सबसे बड़े रईस ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने अपने नाम एक अनोखा रिकॉर्ड दर्ज कर लिया है। वह इस साल अब तक 101 अरब डॉलर गंवाकर पहले ऐसे अरबपति बन गए हैं, जिन्होंने इतनी रकम गंवाई है। टॉप-10 अरबपतियों में चार ऐसे अरबपति हैं, जिनकी जीवन भर की कमाई भी 100 अरब डॉलर नहीं है।
एलन मस्क ने सोमवार को 8.59 अरब डॉलर गंवाया। उनकी कुल संपत्ति अब केवल 170 अरब डॉलर रह गई है। इसके साथ ही इस साल वह संपत्ति गंवाने के मामले में नंबर वन पोजीशन पर अमीर कैसे बने बने हुए हैं। दूसरे नंबर पर फेसबुक के फाउंडर और सीईओ मार्क जुकरबर्ग हैं, जिन्होंने इस अब तक कुल 83.5 अरब डॉलर की संपत्ति गंवाई है। टॉप-10 अमीरों में केवल अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ही एक मात्र ऐसे शख्स हैं, जिनकी संपत्ति बढ़ी है। उनकी संपत्ति में इस साल अब तक 53 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है।
क्यों घट रही संपत्ति
दरअसल एलन मस्क के नेटवर्थ का बड़ा हिस्सा उनके टेस्ला के शेयरों का है। इस साल अब तक टेस्ला इंक के शेयर 58 फीसद से अधिक टूट चुके हैं, जो एलन मस्क की संपत्ति में सेंध लगने की बड़ी वजह है। वहीं, फेसबुकके सीईओ मार्क जुकर बर्ग की संपत्ति में भी बड़ी गिरावट के पीछे मेटा के शेयर हैं। मेटा यानी फेसबुक के शेयर इस साल अब तक 67 फीसद से अधिक टूट चुके हैं।
© हिन्दुस्तान द्वारा प्रदत्त
मुकेश अंबानी अब 9वें पायदान पर
दुनिया के अमीरों की लिस्ट में रिलायंस इंडस्ट्री के चेयरमैन मुकेश अंबानी (88.2 अरब डॉलर) अब 9वें पायदान पर हैं। बिल गेट्स (113 अरब डॉलर) पांचवें, वॉरेन अमीर कैसे बने बफेट (109अरब डॉलर) छठे, लैरी एलिशन (92.5) सातवें, लैरी पेज (88.7 अरब डॉलर) 8वें और स्टीव बॉल्मर (86.3 अरब डॉलर) 10वें स्थान पर हैं।
दूसरे नंबर की रेस में अडानी बरकरार
एशिया के सबसे बड़े अमीर गौतम अडानी एक बार दुनिया के अरबपतियों की लिस्ट में दूसरे पायदान की रेस में थोड़ा पीछे जरूर हुए हैं, लेकिन वह जेफ बेजोस से आगे हैं। ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स की ताजी सूची में अडानी अब दूसरे नंबर पर काबिज बर्नार्ड अर्नाल्ट से 27 अरब डॉलर की दूरी पर हैं। पहले नंबर पर एलन मस्क हैं और चौथे नंबर पर 116 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ जेफ बेजोस हैं।
जेफ बेजोस अडानी से बहुत पीछे
कभी दुनिया के सबसे अमीर शख्स रहे अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ब्लूमबर्ग टॉप-10 बिलेनियर लिस्ट में चौथे नंबर पर है। अब उनके पास कुल संपत्ति 116 अरब डॉलर रह गई है। अडानी का नेटवर्थ जेफ बेजोस के नेट वर्थ से 14 अरब डॉलर अधिक है। इस समय अडानी के पास कुल 130 अरब डॉलर की संपत्ति है।
ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स (Bloomberg Billionaires Index) के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया के टॉप-10 अमीरों में शामिल भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी की भी नेटवर्थ में एक दिन में 2.58 अरब डॉलर की कमी हुई है। वहीं, एलन मस्क की संपत्ति एक दिन में 8.59 अरब डॉलर कम हो गई है। इसके अलावा दुनिया के दूसरे सबसे अमीर लुई विटन के बॉस बर्नार्ड अर्नाल्ट की संपत्ति में 1.02 अरब डॉलर की गिरावट देखी गई।