एसेट क्लास के रूप में मुद्रा

म्यूचुअल फंड कंपनियों में सिल्वर ईटीएफ लाने की होड़
म्युचुअल फंड कंपनियों ने इस साल सिल्वर ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) श्रेणी में निवेश के लिए कई नए फंड की पेशकश की गई है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा 2021 में पेश किए गए इस इनवेस्टमेंट एसेट क्लास की शुरुआत के बाद से म्यूचुअल फंड कंपनियों ने इसके जरिये 1,400 करोड़ रुपये की संपत्तियां जुटाई हैं।
सेबी के पास उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार, कोटक एसेट मैनेजमेंट कंपनी सहित म्यूचुअल फंड कंपनियों ने निवेशकों के लिए सिल्वर ईटीएफ के साथ-साथ सिल्वर ईटीएफ फंड ऑफ फंड्स के लिए बाजार नियामक के पास दस्तावेजों का मसौदा जमा कराया है। ये एनएफओ (नई कोष पेशकश) निवेशकों को डिजिटल तरीके से निवेश करने और चांदी का स्वामित्व रखने का अवसर प्रदान कर रहे हैं।
उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, अबतक आदित्य बिड़ला सन लाइफ म्यूचुअल फंड, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड और निप्पन इंडिया म्यूचुअल फंड ने सिल्वर ईटीएफ शुरू किया है। इसके अलावा, इन परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (Asset Management Companies) में से प्रत्येक के पास सिल्वर फंड ऑफ फंड (एफओएफ) है, जो अपने संबंधित ईटीएफ में निवेश करता है। इनके अलावा, डीएसपी म्यूचुअल फंड और एचडीएफसी म्यूचुअल फंड के सिल्वर ईटीएफ के एनएफओ इस महीने बंद हुए हैं, जबकि एडलवाइस गोल्ड और सिल्वर ईटीएफ एफओएफ वर्तमान में निवेशकों के लिए खुले हैं।
मॉर्निंगस्टार इंडिया द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, उद्योग जुलाई के अंत तक सिल्वर ईटीएफ के जरिये पहले ही 1,400 करोड़ रुपये की संपत्तियां जुटा चुका है। नवंबर, 2021 में सेबी के सिल्वर ईटीएफ की अनुमति देने के बाद से संपत्ति प्रबंधन कंपनियों में इसे लाने की होड़ मची है।
मॉर्निंगस्टार इंडिया की वरिष्ठ विश्लेषक-प्रबंधक शोध कविता कृष्णन ने कहा, ‘‘सेबी के कदम ने म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए सिल्वर ईटीएफ का रास्ता खोल दिया है। बहुत से निवेशक चांदी को महंगाई के खिलाफ ‘हेजिंग’ के लिए इस्तेमाल करते रहे है। ऐसे में इससे उन्हें भौतिक रूप से चांदी रखने के बजाय फॉर्म या कोष के रूप में इसे रखने का विकल्प मिला है।
एडलवाइस एएमसी की प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी राधिका गुप्ता ने कहा, ‘‘हाल के समय में चांदी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। इसकी वजह से एएमसी सिल्वर ईटीएफ और एफओएफ ला रही हैं क्योंकि यह संभवत: बहुमूल्य धातु में निवेश के लिए उचित समय है।’’ कृष्णन ने कहा कि इलेक्ट्रिक वाहन, सौर और 5जी जैसे नए युग के उद्योगों में चांदी की भारी मांग है। इस वजह से भी निवेशक चांदी में निवेश को लेकर अधिक जागरूक हुए हैं।
टेक्निकल एनालिसिस से परिचय
2.1 -संक्षिप्त विवरण
पिछले अध्याय में हमने टेक्निकल एनालिसिस की परिभाषा को समझा। इस अध्याय में हम इसकी अवधारणाओं और इसके कुछ उपयोगिताओं को जानेंगे।
2.2- अलग अलग परिसंपत्ति यानी एसेट (Asset) में उपयोग
टेक्निकल एनालिसिस की सब से खास उपयोगिता यह है कि किसी भी तरीके के एसेट क्लास में इसका उपयोग किया जा सकता है। शर्त सिर्फ एक है कि उस एसेट क्लास का पुराना ऐतिहासिक डाटा उपलब्ध हो। ऐतिहासिक डाटा का मतलब है कि उस ऐसेट का ओपन , हाई , लो , क्लोज ( OHLC) और वॉल्यूम का डाटा मौजूद हो।
इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। अगर आपने एक बार कार चलाना सीख लिया तो आप किसी भी तरीके की कार चला सकते हैं। इसी तरह से अगर आपने एक बार टेक्निकल एनालिसिस सीख लिया तो आप इसका इस्तेमाल शेयर ट्रेडिंग , कमोडिटी ट्रेडिंग , विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग , फिक्स्ड इनकम प्रॉडक्ट , कहीं भी कर सकते हैं।
किसी भी दूसरे तरीके की तकनीक के मुकाबले टेक्निकल एनालिसिस का यह सबसे बड़ा फायदा है। उदाहरण के तौर पर फंडामेंटल एनालिसिस में आपको हर शेयर का घाटा मुनाफा , बैलेंस शीट , कैश फ्लो जैसी तमाम चीजें देखनी पड़ती है जबकि कमोडिटी के एनालिसिस में इनमें से बहुत सारी चीजें काम नहीं आती। आपको नए तरीके का डाटा इस्तेमाल करना पड़ता है।
अगर आप खेती से जुड़ी कमोडिटी जैसे कॉफी या काली मिर्च की फंडामेंटल एनालिसिस करना चाहते हैं , तो आपको मॉनसून , उपज या पैदावार , मांग , आपूर्ति , रखा हुआ माल जैसी तमाम चीजों के बारे में जानकारी जुटानी होगी। इसी तरीके से अगर धातु या मेटल के बारे में या एनर्जी से जुड़े कमोडिटी जैसे कच्चा तेल की फंडामेंटल एनालिसिस करना है , तो आपको अलग तरह का डाटा चाहिए होगा।
लेकिन हर एसेट क्लास की टेक्निकल एनालिसिस एक ही तरीके से ही की जा सकती है। उदाहरण के तौर पर मूविंग एवरेज कन्वर्स डायवर्जेंस ( MACD- moving average convergence divergence) या रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स ( RSI-Relative Strength Index) को किसी भी ऐसेट क्लास जैसे इक्विटी कमोडिटी या करेंसी में इस्तेमाल किया जा सकता है।
2.3- टेक्निकल एनालिसिस की अवधारणाएं
टेक्निकल एनालिसिस इस बात पर ध्यान नहीं देती कि कोई शेयर अंडरवैल्यूड यानी अपनी वास्तविक कीमत से सस्ता है या ओवरवैल्यूड यानी अपनी वास्तविक कीमत से महंगा है। टेक्निकल एनालिसिस में सिर्फ एक चीज का महत्व है – और वह है शेयर का पुराना ट्रेडिंग डाटा और यह डाटा आगे आने वाले समय के बारे में क्या संकेत दे सकता है।
टेक्निकल एनालिसिस कुछ मूलभूत अवधारणाओं पर आधारित होती है , जिनके बारे में जानना जरूरी है :
- बाजार हर जरूरी चीज को कीमत में शामिल कर लेता है (Markets discount everything)- ये अवधारणा हमें बताती है कि किसी शेयर से जुड़ी हर सूचना या जानकारी उस शेयर की बाजार कीमत में शामिल हो जाती है। उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति अगर किसी शेयर को चुपचाप बाजार से खरीद रहा है क्योंकि शायद उसे पता है कि कंपनी का अगला तिमाही नतीजा अच्छा आने वाला है तब शेयर से मुनाफा होगा। वह व्यक्ति भले ही ये छुपा कर कर रहा हो लेकिन शेयर की कीमतों में इसका असर दिखने लगता है। एक अच्छा टेक्निकल एनालिस्ट शेयर के चार्ट पर इसको पहचान लेता है और वह इस शेयर को खरीदने के लिए उपयुक्त मानता है।
- “क्यों” से ज्यादा जरूरी है “क्या”– यह अवधारणा पहली अवधारणा से ही मिली हुई है। हमारे पिछले उदाहरण में ही अगर देखें तो एक अच्छा टेक्निकल एनालिस्ट यह नहीं जानना चाहेगा कि उस व्यक्ति ने यह शेयर क्यों खरीदा? टेक्निकल एनालिस्ट का पूरा ध्यान इस बात पर होगा कि उस व्यक्ति के छुपा कर की गई खरीदारी से शेयर की कीमतों पर क्या असर हो रहा है और आगे क्या होगा?
- कीमत में एक चलन दिखता है (Price moves in trend)– टेक्निकल एनालिसिस के मुताबिक कीमत में हर बदलाव एक खास ट्रेंड या चलन को बताता है। उदाहरण के तौर पर- निफ़्टी का 6400 से बढ़कर 7700 तक पहुंचना- एक दिन में नहीं हुआ। यह चलन 11 महीने पहले शुरू हुआ था। इसी से जुड़ी हुई एक दूसरी अवधारणा यह है कि जब एक तरफ की चाल शुरू होती है तो शेयर की कीमत भी उसी दिशा में बढ़ती जाती हैं , कभी उपर की तरफ तो कभी नीचे की तरफ।
- इतिहास अपने को दोहराता है– टेक्निकल एनालिसिस के मुताबिक कीमत का चलन अपने आप को दोहराता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बाजार के भागीदार एक तरीके की घटना पर हर बार एक ही तरीके की प्रतिक्रिया देते हैं। इसीलिए शेयर की कीमत एक ही तरीके से चलती हैं। उदाहरण के तौर पर ऊपर जा रहे बाजार में बाजार का हर खिलाड़ी किसी भी कीमत पर शेयर खरीदना चाहता है भले ही वह शेयर कितना भी महंगा हो। इसी तरीके से गिरते हुए बाजार में वह किसी भी कीमत पर बेचना चाहते हैं भले ही शेयर की कीमत अपनी वास्तविक कीमत से बहुत सस्ती हो। इंसान की इसी आदत की वजह से इतिहास अपने को दोहराता है।
2.4- बाजार पर नजर रखने का तरीका (The Trade Summary)
भारतीय शेयर बाजार सुबह 9:15 से 3:30 बजे तक खुले रहते हैं। इन 6 .15 घंटों में लाखों ट्रेड होते हैं। किसी एक शेयर में भी हर मिनट कोई ना कोई सौदा हो रहा होता है। सवाल यह उठता है कि बाजार के भागीदार के तौर पर क्या हमें हर सौदे पर नजर रखनी चाहिए?
इसपर गहराई से नजर डालने के लिए हम एक काल्पनिक शेयर की बात करते हैं। नीचे के चित्र पर नजर डालिए , हर बिंदु एक ट्रेड को दिखलाता है। अगर हम हर सेकंड होने वाले वाले हर सौदे को इस ग्राफ पर दिखाएंगे तो इस ग्राफ में कुछ भी नहीं दिखेगा। इसलिए यहां केवल कुछ महत्वपूर्ण बिंदु ही दिखाए जा रहे हैं।
Daily Trade Pattern: दैनिक ट्रेड पैटर्न
बाजार सुबह 9 :15 बजे खुला और शाम के 3:30 बजे बंद हुआ। बाजार का रूख समझने के लिए , इस दौरान जितने भी ट्रेड हुए उन सब को देखने के बजाय उनका एक संक्षिप्त विवरण देख लेना ही काफी होगा।
अगर हम बाजार में ओपन यानी खुलने की कीमत , हाई यानी सबसे ऊंची कीमत , लो यानी सबसे नीची कीमत और क्लोज यानी अंतिम कीमत को देखें तो हमें बाजार का एक मोटा-मोटी सार मिल जाएगा।
ओपन कीमत यानी खुलने के समय की कीमत : जब बाजार खुलता है तो उस समय होने वाले पहले ट्रेड या सौदे की कीमत ओपन कीमत होती है।
हाई यानी सबसे ऊँची कीमत: उस दिन जिस की सबसे ऊँची कीमत जिस पर कोई सौदा हुआ।
सबसे नीची कीमत यानी लो : दिन की वो सबसे नीची कीमत जिस पर सौदा हुआ।
बंद के समय कीमत यानी क्लोज: दिन के आखिरी सौदे में जो कीमत रही। ये कीमत काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इससे पता चलता है कि दिन में शेयर कितना मजबूत रहा। अगर बंद कीमत ऊपर है खुलने वाली कीमत से तो तेजी का दिन माना जाता है। इसी तरह अगर बंद के समय की कीमत अगर खुलने के समय की कीमत से नीचे रहे तो उसे मंदी का दिन माना जाता है।
क्लोज या बंद कीमत को अगले दिन के लिए संकेत के तौर पर भी देखा जाता है और इससे बाजार का मूड आंका जाता है। इसीलिए OHLC में C यानी क्लोज (Close) सबसे महत्वपूर्ण होता है।
टेक्निकल एनालिसिस में इन चारों कीमतों को देखा जाता है। इनको एक चार्ट पर डाल कर एनालिसिस की जाती है।
अस्थिर लेकिन आकर्षक, बिटकॉइन बना भारतीयों के सपने का निवेश
1 करोड़ से भी अधिक भारतीय कर रहे है क्रिप्टोकरेंसी में निवेश, भविष्य में बन सकता है महत्वपूर्ण निवेश
नई दिल्ली, 23 मई (आईएएनएस)| अगर क्रिप्टोकरेंसी ने आपको परेशान कर दिया है और खासकर आप बिटकॉइन या एथेरियम जैसे डिजिटल सिक्कों में निवेशक हैं, तो सांसे थाम कर बैठिए क्योंकि पिछले सप्ताह क्रिप्टो एसेट क्लास की तबाही में एक चांदी की परत जुड़ गई है।
जबकि छोटी अस्थिर अवधि को व्यापक तौर से एक पाठ्यक्रम सुधार के रूप में बताया गया है । (एक बिटकॉइन वर्तमान में 37,000 डॉलर के आसपास है, कुछ हफ्ते पहले लगभग 60,000 डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर को छूने के बाद) उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि निवेशित रहना और लंबे समय तक सोचना, क्रिप्टो निवेशकों के लिए पालन करने वाला एक अहम नियम है।
भारत तेजी से बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी को अपना रहा है। रिपोटरें के अनुसार, देश में वर्तमान में एक करोड़ से ज्यादा क्रिप्टो निवेशक हैं और देश में कई घरेलू क्रिप्टो एक्सचेंजों के संचालन के साथ यह संख्या हर दिन काफी बढ़ रही है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के क्रिप्टोकरेंसी से सावधान होने के बावजूद, भारतीय डिजिटल सिक्कों में निवेश करने के लिए एक रास्ता बना रहे हैं, जिसे 21वीं सदी का सबसे जरूरी संपत्ति वर्ग कहा गया है।
जेब-पे के सीईओ राहुल पगीदीपति के अनुसार, '' भारतीय निवेशक बिटकॉइन को एक ऐसे परिसंपत्ति वर्ग के रूप में देखना सीख रहे हैं जो हर लंबी अवधि के पोर्टफोलियो में शामिल है।'' पगीदीपति ने कहा "भारतीयों के पास दुनिया के 1 प्रतिशत से भी कम बिटकॉइन हैं। इसके पीछे छूटने से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक रणनीतिक नुकसान होगा। 2021 में, हम अधिक संस्थानों और सरकारी अधिकारियों से उम्मीद करते हैं कि हमें बिटकॉइन अंतर को बंद करने की आवश्यकता है।"
अप्रैल 2018 में, आरबीआई ने वित्तीय संस्थानों को बिटकॉइन जैसी वर्चुअल मुद्रा में काम करने वाले व्यक्तियों या व्यवसायों के साथ संबंध खत्म करने का आदेश दिया। हालांकि, मार्च 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को क्रिप्टो निवेशकों को राहत देते हुए व्यापारियों और एक्सचेंजों से क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन को जारी रखने की अनुमति दी। इस साल मार्च में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी पर सभी विंडो बंद नहीं की जाएंगी, जिससे हितधारकों को और राहत मिलेगी।
इस महीने की शुरूआत में, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने सरकार को क्रिप्टोकरेंसी पर मुख्य चिंताओं को साझा किया है। इस करेंसी के दिग्गज खिलाड़ियों का कहना है कि अनिश्चितताओं के बीच यह तथ्य निहित है कि बिटकॉइन की कीमत में अपने सर्वकालिक उच्च से 40 प्रतिशत की गिरावट नाटकीय है, लेकिन क्रिप्टो सहित कई अस्थिर बाजारों में सामान्य है, खासकर इतनी बड़ी रैली के बाद।
जेब-पे के सह-सीईओ अविनाश शेखर ने कहा, "इस तरह के सुधार मुख्य रूप से अल्पकालिक व्यापारियों के फायदा लेने के कारण होते हैं। निवेशकों को पहले शिक्षा में निवेश करना चाहिए। बिटकॉइन, एथेरियम और अन्य क्रिप्टो परिसंपत्तियों के अंतर्निहित मूल्य पर शोध करें क्योंकि आप स्टॉक खरीदने से पहले कंपनी की जानकारी देख सकते हैं।" खरीदार आक्रामक रूप से ज्यादा से ज्यादा बिटकॉइन जमा कर रहे हैं। यह वह प्रेरक कारक है जिसने डिजिटल सिक्के के मूल्य बढ़ोतरी को प्रेरित किया है। प्रभु राम, हेड-इंडस्ट्री इंटेलिजेंस ग्रुप, सीएमआर के अनुसार, '' यदि कोई पिछले दशक में पीछे मुड़कर देखता है, तो ऐसी अस्थिरता क्रिप्टो के लिए सुसंगत और बराबर है।'' राम ने आईएएनएस से कहा, "छोटे वक्त के लिए कोई चिंतित महसूस कर सकता है, लेकिन लंबे समय के लिए पॉजिटिव होगा। आगे जाकर, बिटकॉइन निवेशक पोर्टफोलियो में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण निवेश बना रहेगा।"
प्रमुख उद्योग के खिलाड़ियों को लगता है कि भारत एक तकनीकी और आर्थिक शक्ति है, जो क्रिप्टो और ब्लॉकचैन अपनाने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरेगा। क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज क्वाइनडीसीएक्स के सीईओ और सह-संस्थापक सुमित गुप्ता के अनुसार, '' क्रिप्टोकरेंसी ने अब खुद को निवेश के लिए एक मैक्रो एसेट क्लास के रूप वगीर्कृत किया है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।'' गुप्ता ने आईएएनएस से कहा, "यह पहले से कहीं ज्यादा मेंनस्ट्रीम की स्वीकृति को आगे बढ़ाएगा।"
(Disclaimer: यह खबर सीधे समाचार एजेंसी की सिंडीकेट फीड से पब्लिश हुई है। इसे लोकतेज टीम ने संपादित नहीं किया है।)
एसेट क्लास के रूप में मुद्रा
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Long Term Investment: लॉन्ग टर्म निवेश के लिए क्या हो सकते हैं बेहतर विकल्प
किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्तीय, औद्योगिक और कंज्यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्मक नजरिया रखते हैं.
श्रीनिवास राव रावुरी, CIO, PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड
"यह सबसे अच्छा समय था, यह सबसे बुरा समय था" -
चार्ल्स डिकेंस के अ टेल ऑफ टू सिटीज की यह शुरुआती पंक्ति है और यह संभवत: बाजार के मौजूदा परिदृश्य को सटीक तरीके से बताती है. हमारे सामने तरक्की का लंबा रास्ता है, लेकिन वैश्विक सुस्ती, भू-राजनीतिक मसलों, ऊंची ब्याज दरों जैसे तमाम मसलों का शोर एसेट क्लास के रूप में मुद्रा भी है. भारतीय बाजारों में करीब 18 महीने तक की तेजी के बाद पिछले एक साल में मिलाजुला रुख देखा गया.
बाजार उतार-चढ़ाव वाला रहा है, लेकिन इसके लिए यह कोई असामान्य बात नहीं है. एक एसेट क्लास के रूप में देखें तो इक्विटीज यानी शेयरों में ऊंचा जोखिम रहता है और इसलिए उतार-चढ़ाव तो इक्विटी निवेश का एक हिस्सा है. लेकिन इसमें एक अच्छी बात यह है कि जितनी लंबी अवधि तक निवेश बनाए रहें, उतार-चढ़ाव का तत्व सीमित होता जाता है. इसलिए दीर्घकालिक रूप में इक्विटी सर्वश्रेष्ठ एसेट क्लास हैं और लॉन्ग टर्म एसेट क्लास के रूप में मुद्रा के लिए हम भारतीय बाजारों के लिए सकारात्मक बने हुए हैं.
यह सिर्फ इसकी वजह से नहीं है कि एक लंबे समय अवधि में उतार-चढ़ाव का असर सीमित हो जाता है, बल्कि इससे भी ज्यादा इस वजह से है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और यहां के कॉरपोरेट में तरक्की की बेहतरीन संभावनाएं हैं, स्थायी-मजबूत सरकार और नीतियों का दौर है तथा वैश्विक मंच पर पहले से काफी बेहतर स्थिति (जीडीपी के % में निर्यात सात साल के ऊंचे स्तर पर) है. इसके अलावा, हम जबरदस्त टैक्स कलेक्शन, बचत दर में सुधार और भारतीय कंपनियों के बहीखातों में सुधार देख रहे हैं. इन सबकी वजह से निवेश और खर्च की दर भी सुधरती है और अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भी.
करीब पांच साल के अंतराल के बाद क्षमता इस्तेमाल 75 फीसद तक पहुंच गई है, जिसकी वजह से हम मध्यम अवधि में पूंजीगत व्यय में सुधार की जमीन तैयार होते देख रहे हैं.
अब इस पर बहस की जा सकती है कि खासकर विकसित देशों में मंदी या सुस्ती का असर कम रहेगा या व्यापक रहेगा, या महंगाई टिकने वाला होगा या कुछ समय के लिए. लेकिन कमोडिटीज और एनर्जी की कीमतों (ऊर्जा आयात का हिस्सा जीडीपी के 4 फीसद तक होता है) में कमी आई है जो कुछ राहत की बात है. हम पूरे भरोसे से यह नहीं कह सकते कि मार्जिन का दबाव कम हुआ है, लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि अब चीजें सही दिशा में जा रही हैं, कम से कम कमोडिटी उपभोग के मामले में.
हालांकि, कई ऐसे जोखिम हैं जिनका हमें ध्यान रखना होगा. पहला, अनिश्चित भू-राजनीतिक परिदृश्य और सप्लाई चेन की निरंतरता के मसले लंबे समय तक बने रहने वाले हैं. दूसरा, अब करीब एक दशक के कम ब्याज एसेट क्लास के रूप में मुद्रा दरों और आसान नकदी के माहौल से ऊंची ब्याज दरों और नकदी में सख्ती वाले माहौल की तरफ बढ़ा जा रहा है. पहले जोखिम की वजह से महंगाई न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता है और हमने यह देखा है कि केंद्रीय बैंक सख्त मौद्रिक नीतियों से इस पर अंकुश के लिए कोशिश में लगे हुए हैं.
भारत में हमें कुछ और समस्याओं के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, व्यापार घाटा ऊंचाई पर है और रुपए में काफी कमजोरी है. महंगाई लगातार ऊंचाई पर बनी हुई है और पिछले करीब तीन तिमाहियों से यह रिजर्व बैंक के 6% के सुविधाजनक स्तर से ऊपर है. कई दूसरे देशों के मुकाबले हमने बेहतर प्रदर्शन किया है और हमारी ग्रोथ रेट भी बहुत अच्छी है, लेकिन अर्थव्यवस्था की इस अलग राह या बेहतरीन प्रदर्शन से जरूरी नहीं कि बाजार एक-दूसरे से जुड़े नहीं हों, भले ही प्रदर्शन कितना ही बढ़िया हो. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शॉर्ट टर्म में हमारे बाजार भी दूसरे बाजारों के साथ ही चलेंगे.
वैश्विक तरक्की में मौजूदा अनिश्चिचता के माहौल को देखते हुए बाजारों के लिए मौजूदा साल काफी चुनौतियों वाला हो सकता है. वैश्विक स्तर पर और भारत में ऊंची ब्याज दरों की वजह से शेयरों के वैल्युएशन में उस बढ़त पर जोखिम आ सकता है, जिसका हाल में भारतीय बाजारों को फायदा मिला है. इसके अलावा भारत के कई राज्यों में मानसून अनियमित रहने की वजह से खाद्य महंगाई भी ऊंचाई पर रहने की आशंका है.
किसी फंड हाउस में हर फंड मैनेजर अपने उत्पाद के मैंडेट के मुताबिक निवेश का तरीका अपनाता है. इसी तरह देखें तो हम आमतौर पर वित्तीय, औद्योगिक और कंज्यूमर डिस्क्रेशनेरी (जिसका नेतृत्व ऑटो करता है) सेगमेंट के लिए सकारात्मक नजरिया रखते हैं। वित्तीय सेगमेंट (खासकर बैंक) अब ऐसी स्थिति में हैं जहां कर्ज की मांग और उसकी उठाव बढ़ रही है।