एक मुद्रा कैरी ट्रेड की मूल बातें

आरओआई क्या है?

आरओआई क्या है?
  • कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण
  • दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना
  • सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना
  • सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना
  • प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है
  • समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है।
  • प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं।
  • जनसूचना अधिकारी की दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए।
  • यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी।
  • लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण नहीं पूछ सकता।
  • सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों को आवेदन शुल्क में छूट प्राप्त है।
  • दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना मुफ्त दी जायेगी।
  • यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी।
  • लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
  • जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता।
  • यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की आरओआई क्या है? स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है।
  • यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। विश्व पांच देशों के सूचना के अधिकार का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए पांच देशों स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का चयन किया गया और इन देशों के कानून, लागू किए वर्ष, शुल्क, सूचना देने की समयावधि, अपील या शिकायत प्राधिकारी, जारी करने का माध्यम, प्रतिबन्धित

सूचना का अधिकार

आरटीआई के लिए सूचना का अधिकार खड़ा है और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है। अनुच्छेद 19 (1) के तहत जो हर नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और पता है कि कैसे सरकार काम करती है, क्या भूमिका अदा करता है, क्या इसका कार्य कर रहे हैं और इतने पर अधिकार रखते हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम के एक लोक प्राधिकरण द्वारा आयोजित की जानकारी के लिए उपयोग करने का अधिकार प्रदान करता है। मामले में, आप पहले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) अपील / शिकायत दर्ज कर सकते जानकारी के लिए उपयोग से इनकार कर दिया है सीआईसी ऑनलाइन का उपयोग

Covid-19: RTI एक्टिविस्ट ने मांगा उपकरणों पर खर्च का ब्योरा, स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिया ये जवाब

मुम्बई के आरटीआई कार्यकर्ता ने केंद्र सरकार के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन देकर कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उठाये गये कदमों, खरीदे गये उपकरणों एवं सामग्रियों के नाम तथा उन पर किये गये खर्च का ब्योरा मांगा था.

Covid-19: RTI एक्टिविस्ट ने मांगा उपकरणों पर खर्च का ब्योरा, स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिया ये जवाब

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए उपकरणों की खरीद पर किये गये खर्च का ब्योरा देने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसे आंकड़े सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दी जाने वाली ‘सूचना' के दायरे में नहीं आते हैं. आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के अनुसार, इस पारदर्शिता कानून के तहत कोई भी नागरिक जो सूचना मांग सकता है, वह रिकार्ड, दस्तावेज, मेमो, ई-मेल, राय, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, अनुबंध, रिपोर्ट, कागजात, नमूने, मॉडल, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में डाटा सामग्री और किसी निजी निकाय से जुड़ी ऐसी सूचना है जिसे कोई सार्वजनिक प्राधिकार कुछ समय के लिए किसी अन्य लागू कानून के तहत प्राप्त कर सकता है.

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मुम्बई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने केंद्र सरकार के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन देकर कोविड-19 के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उठाये गये कदमों, खरीदे गये उपकरणों एवं सामग्रियों के नाम तथा उन पर किये गये खर्च का ब्योरा मांगा था. यह आवेदन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) को सौंपा गया. आरटीआई आवेदन के 22 दिन बाद गलगली को जवाब मिला जिसमें कहा गया था कि सीपीआईओ मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एचएलएल लाईफकेयर लिमिटेड से जुड़े मामलों को देखते हैं.

जवाब में कहा गया है, ‘‘ केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी को ऐसी सूचना देने की जरूरत नहीं है जिसमें दखल देने और/या संकल्पना बनाने या आवेदक द्वारा उठायी गयी समस्या का समाधान करने या काल्पनिक प्रश्नों का जवाब देने की जरूरत पड़ती हो. मांगी गयी सूचना आरटीआई कानून, 2005 की धारा 2 (एफ) के तहत सूचना की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है. इसलिए सीपीआईओ के पास देने के लिए ऐसी कोई खास सूचना नहीं है.'' आरटीआई कानून के अनुसार, यदि सीपीआईओ के पास सूचना नहीं हो तो उन्हें धारा 6(3) के तहत उसे आवेदन अपने सहयोगी के पास भेजना चाहिए जिससे इस अर्जी के मिलने के पांच दिनों के अंदर सूचना जुटाने की उम्मीद की जाती है.

गलगली ने कहा कि यह सीपीआईओ का ‘गैर पेशेवर' रवैया है और यदि ऐसा ही था तो उसने सूचना देने से मना करने में 22 दिन क्यों लिये. उन्होंने कहा, ‘‘ आरओआई क्या है? यह सूचना न केवल आरटीआई के जरिये दी जानी चाहिए बल्कि सभी वित्तीय विवरण को अपनी वेबसाइट पर भी डालना चाहिए ताकि किसी को खर्च जानने के लिए आरटीआई देने की जरूरत ही नहीं पड़े.'' स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़कर 1,65,799 हो गये हैं . देश में इस बीमारी से अबतक 4,706 लोगों की जान जा चुकी है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

RTI क्या है, जानें इसके प्रावधान और कितना प्रभावी हथियार है यह

रवि वैश्य

What is RTI Act: राइट टू इन्फॉरमेशन यानि सूचना का अधिकार, एक ऐसा हथियार है जिससे हम कोई भी सूचना सरकार से मांग सकते हैं किसी भी आम या खास सूचना को पाने का ये खासा प्रभावशाली टूल माना जाता है।

RTI

सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है 

नई दिल्ली: भारतीय कार्यपालिका से पहले जवाब हासिल करने का अधिकार आम आदमी को नहीं था। इस विषय पर तमाम संगठनों की लंबी लड़ाई के बाद यूपीए-1 की सरकार ने सूचना के अधिकार (RTI) को हरी झंडी दिखाई जिसे आरओआई क्या है? आमतौर पर आरटीआई के नाम से भी जानते हैं।

इस अधिकार के तरह भारतीय नागरिक राज्य सरकार और केंद्र सरकार के संस्थानों से जानकारी हासिल कर सकता है। सरकारें उन सूचनाओं को जो देश या राज्य के हितों के खिलाफ नहीं है उसका जवाब दे सकती हैं। ये बात अलग है कि भारत की सर्वोच्च अदालत इसके दायरे से बाहर थी।

मगर अब सीजेआई दफ्तर अब आरटीआई के दायरे में होगा। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने 2010 में हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है। इस पीठ में सीजेआई रंजन गोगोई, संजीव खन्ना और दीपक गुप्ता शामिल हैं। 2010 में केंद्रीय सूचना आयुक्त ने सीजेआई दफ्तर को आरटीआई के दायरे में लाने का निर्देश दिया था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2010 में याचिका को रद्द करते हुए सीजेआई दफ्तर को आरटीआई में लाए जाने के फैसले पर मुहर लगा दी। लेकिन इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया था। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पारदर्शिता की वजह से न्यायिक स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होती है।

सूचना का अधिकार या राइट टू इन्फॉर्मेशन क्या है
सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। 15 जून 2005 को इसे अधिनियमित किया गया और पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया। सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फॉर्मेशन।

प्रत्येक नागरिक सरकार को किसी ने किसी माध्यम से टैक्स देती है। देश का प्रत्येक नागरिक टैक्स अदा करता है और यही टैक्स देश के विकास और व्यवस्था की आधारशिला को निरन्तर स्थिर रखता है। इसलिए जनता को यह जानने का पूरा हक है कि उसके द्वारा दिया गया, पैसा कब, कहाँ, और किस प्रकार खर्च किया जा रहा है ? इसके लिए यह जरूरी है कि सूचना को जनता के समक्ष रखने एवं जनता को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया जाए, जो एक कानून द्वारा ही सम्भव है।

इसके लिए यह जरूरी है कि सूचना को जनता के समक्ष रखने एवं जनता को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया जाए, जो एक कानून द्वारा ही सम्भव है।


सूचना का अधिकार (Right to Information) के प्रमुख बिंदु-

  • कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण
  • दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना
  • सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना
  • सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना
  • प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है
  • समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है।
  • प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना आरओआई क्या है? अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं।
  • जनसूचना अधिकारी की दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए।
  • यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी।
  • लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण नहीं पूछ सकता।
  • सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों को आवेदन शुल्क में छूट प्राप्त है।
  • दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना मुफ्त दी जायेगी।
  • यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी।
  • लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
  • जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता।
  • यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है।
  • यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। विश्व पांच देशों के सूचना के अधिकार का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए पांच देशों स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का चयन किया गया और इन देशों के कानून, लागू किए वर्ष, शुल्क, सूचना देने की समयावधि, अपील या शिकायत प्राधिकारी, जारी करने का माध्यम, प्रतिबन्धित

RTI ACT SECTION 8 के नाम पर भ्रष्टाचार को छुपाया नहीं जा सकता: राज्य सूचना आयुक्त

भोपाल। आरटीआई एक्ट (RIGHT TO INFORMATION ACT) के तहत निजी जानकारी के लिए धारा 8 1 (J) (SECTION 8 1 (J) or 8 1 (D)) और व्यवसायिक हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए धारा 8 1 (D) के नाम पर भ्रष्टाचार (CORRUPTION) के मामलों को छुपाया नहीं जा सकता। राज्य सूचना आयोग (STATE INFORMATION COMMISSION) ने एक अपील के निराकरण में इसे स्पष्ट किया। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह (RAHUL SINGH STATE INFORMATION COMMISSIONER) ने कहा कि आरटीआई एक्ट के तहत धारा 3 (RTI ACT SECTION 3) में सूचना देना एक नियम है और धारा 8 में जानकारी ना देना एक अपवाद।

मैहर के प्रसिद्ध शारदा देवी मंदिर पर लगे रोप वे में हुए जीएसटी फर्ज़ीवाड़ा मामले में राज्य सूचना आयोग ने सेल्स टैक्स विभाग को फटकार लगाते हुए घोटाले की जांच रिपोर्ट आरटीआई के तहत 7 दिन में उजागर करने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि सेल्स टैक्स विभाग के अधिकारियो को लोकहित के बजाए घोटाले में आरोपी कंपनी के व्यावसायिक हितों की चिंता ज्यादा सता रही है।?

मैहर के प्रसिद्ध शक्तिस्थल पर रोप वे के रसीद पर गलत जीएसटी नंबर का फर्जीवाड़ा पिछले साल फ़रवरी में उजागर हुआ था। आशंका जताई गई गई थी कि कंपनी आरओआई क्या है? ने टैक्स चोरी करने की नीयत से इस तरह का रैकेट चला रखा है। तत्कालीन सतना कलेक्टर ने इस मामले में जांच के आदेश दिए थे। सतना कलेक्टर के निर्देश पर सेल्स टैक्स सहायक आयुक्त मनीष त्रिपाठी के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच टीम ने इस पूरे प्रकरण की पड़ताल की थी।

कंपनी के भ्रष्टाचार की जांच रिपोर्ट की जानकारी देने से क्यों मना किया

कांग्रेस नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट उदयभान चतुर्वेदी ने आरटीआई के जरिए मामले की जांच रिपोर्ट मांगी थी लेकिन सेल्स टैक्स विभाग के लोक सूचना अधिकारी ने तीसरे पक्ष को रोपवे कंपनी के व्यवसायिक हित के नुकसान को आधार बनाकर जानकारी देने से मना कर दिया। इसके बाद उदयभान ने प्रथम अपीलीय अधिकारी सेल्स टैक्स सतना, संभागीय आयुक्त के एन मीणा के पास अपील दायर की थी। संभागीय आयुक्त ने रोपवे कंपनी का पक्ष लेते हुए जांच रिपोर्ट को आरटीआई के तहत जारी करने से मना कर दिया। निजी जानकारी के लिए धारा 8 1 (J) और व्यवसायिक हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए धारा 8 1 (D) को अपने फैसले में संभागीय आयुक्त ने आधार बनाया।

आरटीआई एक्ट 8 1 (D) और 8 1 (J) के बारे में राज्य सूचना आयुक्त ने क्या कहा

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सेल्स टैक्स सतना संभागीय आयुक्त के फैसले को खारिज करते हुए कहा सूचना के अधिकार कानून की 8 1 (D) और 8 1 (J) दोनों धाराओं में लोकहित का भी जिक्र है जिसको सेल्स टैक्स विभाग के अधिकारियों ने इस प्रकरण में पूरी तरह से नजरअंदाज किया। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा की सूचना के अधिकार कानून के तहत धारा 3 में सूचना देना एक नियम है और धारा 8 में जानकारी ना देना एक अपवाद।

राहुल सिंह ने सेल्स टैक्स अधिकारियों को चेताते हुए हुए यह भी कहा कि आरओआई क्या है? धारा 8 की ऐसी व्याख्या नहीं करनी चाहिए कि जिस काम के लिए सूचना के अधिकार कानून का जन्म हुआ हो उसी पर सवालिया निशान लग जाए। उन्होंने कहा कि ये गंभीर मसला है। गुण दोष के आधार पर दस्तावेजों के अध्ययन के बाद प्रथम दृष्टआ लग रहा है कि रोप वे कंपनी ने गंभीर अनियमितता करते हुए गलत जीएसटी नंबर रोपवे पर्ची में दर्ज किया।

व्यवसायिक हितों के बजाय लोक हित की चिंता ज्यादा होनी चाहिए

राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी को ऐसे मसलों में तीसरे पक्ष के व्यवसायिक हितों के नुकसान की चिंता कम और लोकहित की चिंता ज्यादा होनी चाहिए। जाहिर है जीएसटी घोटाले से राजस्व का नुकसान होता है और ऐसे मामलों में पारदर्शिता बहुत जरूरी है। यहां तीसरे पक्ष के व्यवसायिक हितों के बजाय लोक हित की चिंता ज्यादा होनी चाहिए जोकि सतना के वाणिज्य कर विभाग के अधिकारियों में नहीं दिखाई दी। फर्जी जीएसटी नंबर के आरोपी कंपनी का यह तर्क कि इस जानकारी के सामने आने से उसका वाणिज्यिक विश्वास भंग होता है कतई उचित नहीं। जबकि जीएसटी नंबर में फर्जीवाड़ा करके कंपनी ने सरकार और आम जनता दोनों का विश्वास भंग किया है।

सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि सतना के वाणिज्यिक कर विभाग के अधिकारी आरोपी कंपनी की जानकारी नहीं देने की दलील से बड़ी आसानी से सहमत हो गए। सूचना आयुक्त ने कहा कि जाहिर है घोटाले में आरोपी कंपनी कभी नहीं चाहेगी कि उससे संबंधित जांच की कार्रवाई की रिपोर्ट सार्वजनिक हो।

सूचना आयुक्त ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी को तथ्यों को सामने रखते हुए जनहित के आधार पर सूचना के अधिकार कानून के तहत ऐसे फैसला लेना चाहिए जिससे सरकार में एक भ्रष्टाचार विरोधी पारदर्शी व्यवस्था का निर्माण हो सके।

सेल्स टैक्स के संभागीय आयुक्त के आदेश को खारिज करते हुए आरओआई क्या है? राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि आम नागरिक को लोकहित के तहत यह जानने का अधिकार है कि जीएसटी में फर्जीवाड़े की ख़बर आने के बाद कलेक्टर के निर्देश के बाद आरओआई क्या है? हुई जांच का क्या निष्कर्ष निकला। यह जानकारी सरकार के कामकाज के तरीके से भी संबंधित है। सरकारी विभाग के पास उपलब्ध है। इसे लोकहित में सूचना के अधिकार कानून के तहत दिया जाना चाहिए।

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