अस्थिरता के दो प्रकार हैं

अस्थिरता Meaning in English - Asthirata Meaning in Hindi
उतार-चढ़ाव: उतार-चढ़ाव [संज्ञा पुल्लिंग] 1. उतरना और चढ़ना ; ढलान और चढ़ाई 2. तल की ऊँचाई-निचाई 3. भली-बुरी स्थितियाँ ; अनुकूल-प्रतिकूल अवस्थाएँ 4. किसी वस्तु के मान या मूल्य में आने वाला परिवर्तन ; कमी-वृद्धि।
परिवर्तनीयता: परिवर्तनीयता संस्कृत [संज्ञा स्त्रीलिंग] परिवर्तन होने की अवस्था, भाव या गुण।
कंपन: कंपन संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग] 1. काँपने या थरथराने की क्रिया या भाव 2. कँपकँपी ; कंप ; थरथराहट 3. तरंगों की प्रवृत्ति 4. एक प्राचीन अस्त्र 5. भूचाल ; भूडोल ; (वाइब्रेशन)।
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Important Dictionary Terms
which - अस्थिरता के दो प्रकार हैं कौन कौन से kaun kaun se, जो , If, कौन | which one - कौनसा kaun sa | which is - जो है jo hai | whichever - इनमें से जो भी inamen se jo bhi कोई भी koi bhi, any, whichever, anybody जो जो, whatever, whatsoever, whichever, whoever | what - क्या kya, जो that, what, जो वस्तु, कैसा kaisa, of what sort, अस्थिरता के दो प्रकार हैं की तरह, के रूप में, जब कि as till what, की भांती, कितना kitna how, जो कुछ kuchh, whatever, whatsoever | how - किस तरह kis tarah, कैसे kaise, how, whence, where, किस प्रकार kis prakar | whose - किसका kiska, जिसका jiska, whereof, जिस किसी का jis kisi ka | who - कौन kaun | whom - किसको kisko, किसे kise, जिसे jise, जिसको jisko where - कहा पे kaha pe, जहां jahan, कहां kahan, जिस जगह jis jagah, किस जगह, किधर kidhar | when - कब kab, जब कि jab ki, किस समय kis samay, उस समय us samay | why - क्यूं कर kyu kar, क्यों kyo, किस लिये kis liye, किस कारण से kis karan se whence | why not - क्यों नहीं अस्थिरता के दो प्रकार हैं kyon nahin | why is that - ऐसा क्यों है aisa kyon hai | whether and whatsoever - चाहे और जो भी हो chahe aur jo bhi ho | meaning - अर्थ, मतलब, प्रयोजन, माने arth, matalab matlab mtlb, prayojan, maane mane, व्याख्या, विवेचन, vyakhya, vivechan, Interpretation, significance, महत्व, महत्ता, अभिप्राय abhipray, signification, तात्पर्य tatpary, अभिप्राय, शब्द shabd, परिभाषा paribhasha, definition, term, explanation | ko kya bolte hai क्या बोलते हैं, ka ulta sabd h उल्टा Reverse प्रतिलोम, pratilom, pratilom, उलटा opposite अपोजिट apojit, synonyms समानार्थक शब्द, पर्यायवाची paryayavachi, Ko kya kahege kahenge को क्या कहेंगे, me kya kehte kahte hai में क्या कहते हैं , hote h
ओआईसी, राजनैतिक अस्थिरता और विदेश नीति
पाकिस्तान में राजनैतिक संकट लगातार गहराता जा रहा है। जहाँ एक ओर विपक्ष सरकार के अस्थिरता के दो प्रकार हैं विरुद्ध लामबंद है, वहीं तहरीक ए इन्साफ के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन की आन्तरिक दरारें अब बाहर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी हैं, और यह प्रतीत होने लगा है कि इमरान खान, सत्ता शीर्ष के अब कुछ ही समय के मेहमान है।
संतोष के. वर्मा
पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, समय से पूर्व सरकारों का गिरना और सैन्य तख्तापलट आम घटनाएँ रही हैं और एक आजाद देश के रूप में स्थापित होने की प्रक्रिया में पाकिस्तान का लगातार इनसे सामना होता रहा है।
लेकिन पाकिस्तान की इस अस्थिरता के दो प्रकार हैं आन्तरिक गड़बड़ी के व्यापक प्रभाव रहे हैं, और ऐसे घटनाक्रमों ने इसके राजनैतिक नेतृत्व को देश की सीमाओं से बाहर निकल कर अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के मुखापेक्षी होने की प्रेरणा दी है, और इस प्रकार पाकिस्तान की विदेश नीति को इसने गहराई तक प्रभावित किया है।
पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान द्वारा एक जनसभा में दिए गए भाषण में पाकिस्तान की कमजोर विदेश नीति और इसकी भारत की विदेश नीति के साथ तुलनात्मक अंतर पर जोर डाला। उन्होंने भारत की तटस्थ विदेश नीति की प्रशंसा करते हुए पाकिस्तान की विदेश नीति पर सवाल उठाए हैं, और कहा कि भारत, अमेरिका के साथ भी गठबंधन करने और रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद उससे तेल खरीद रहा है जो यह दिखाता है, कि भारतीय विदेश नीति अपने लोगों की बेहतरी के लिए है जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान कभी एक स्वतंत्र, राष्ट्र और जन उन्मुख विदेश नीति का पालन नहीं कर पाया। आजादी के शुरूआती दशक में जहाँ यह विंस्टन चर्चिल और एंथनी ईडन के नेतृत्व वाले ब्रिटेन का अनुगामी बना हुआ था और अमेरिकी नेतृत्व वाले साम्यवाद विरोधी धड़े की और झुकाव रखता था जो अगले दशकों में बढ़ता ही गया। आज इसकी विदेश नीति अपनी दिशा खो चुकी है।
राजनीतिक उठापटक और विदेश नीति की उपादेयता पर जारी बहस के बीच पाकिस्तान, इस्लामी सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों (ओआईसी-सीएफएम) के 48 वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। 22 और 23 मार्च को आयोजित इस सम्मलेन की थीम "एकता, न्याय और विकास के लिए साझेदारी निर्माण" रखी गई। 1969 में स्थापित इस संगठन का, पाकिस्तान प्रारंभ से ही सदस्य रहा है और कई मामलों में इसे विशेषाधिकार प्राप्त सदस्य का दर्जा मिला हुआ है। पाकिस्तान, 57 सदस्यीय इस संगठन का एकमात्र सदस्य है जो परमाणु शक्ति संपन्न है और साथ ही साथ इस संगठन की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति भी है।
जैसा कि पूर्व में इंगित किया जा चुका है कि किस प्रकार पाकिस्तान अमेरिका और ब्रिटेन के साथ साम्यवाद विरोधी गुट का विश्वस्त अनुगामी था, वही 1969 में इस्लामी सहयोग संगठन का सदस्य बनने के बाद से इसकी नीतियों में उन्हीं इस्लामी आकांक्षाओं का प्रदर्शन होने लगा, जो भारत से एक अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए इसके पितृ पुरुषों में दिखाई देती थी। 70 के दशक के अंत में जिया उल हक़ के सत्ता में आने के बाद अमेरिका के प्रति प्रतिबद्धता के साथ साथ वैश्विक इस्लामी उद्देश्यों के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता ‘मुजाहिदीन युद्ध’ में प्रदर्शित हुई । सोवियत संघ न केवल पूँजीवाद के शत्रु के रूप में बल्कि इस्लाम के भयंकर विरोधी के रूप में चित्रित किया गया और सऊदी समेत कड़ी के देशों के साथ साथ अमेरिका से उसे भारी मात्रा में संसाधन प्राप्त हुए। लेकिन 90 के दशक के मध्य तक अमेरिका को पाकिस्तान एक असहनीय मित्र प्रतीत होने लगा, लेकिन 9/11 के आतंकी हमले के बाद तालिबान पर ऑपरेशन एन्ड्योरिंग फ्रीडम के तहत किये गये हमले ने इस कुछ और समय दे दिया । लेकिन इन दरकते सम्बन्धों के बीच पाकिस्तान चीन के खेमे में शामिल हो गया ।
वर्तमान में पाकिस्तान आर्थिक संकट से निपटने के लिए सऊदी अरब के आगे गुहार लगाता है, तो साथ ही साथ इस्लामी विश्व में उसके धुर विरोधी माने जाने वाले तुर्की के साथ घनिष्ठ सामरिक सहयोग स्थापित करता है। एक ओर वह अमेरिका से आर्थिक और तकनीकी सहयोग चाहता है परन्तु चीन की विश्व पर प्रभाव स्थापित करने वाली नीतियों का अग्रिम ध्वजवाहक भी है। परन्तु इस परस्पर द्वैध के बाद भी अगर वह पाकिस्तान के हितों को ही संरक्षित कर पाता तो भी इस नीति की उपयोगिता होती, परन्तु ऐसा करने में भी यह असफल ही सिद्ध हुई है। आज पाकिस्तान का जनजीवन अस्तव्यस्त है। आर्थिक संकट को कोरोना ने और भी अस्थिरता के दो प्रकार हैं गंभीर बना दिया है और पाकिस्तान में बेरोजगारी और गरीबी अपने चरम पर पहुँच चुकी है। ऐसी स्थिति में भी पाकिस्तान के पास किसी भी समर्थन तंत्र का अभाव है। दूसरी ओर उसके विश्वस्त और आजमाए हुए मित्र उससे विमुख हो चुके हैं और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर वह अलग थलग कर दिया गया है और भले ही वह इसके लिए भारत की कूटनीति को दोषी ठहराए परन्तु यथार्थ से वह भी अवगत है कि सिद्धांतविहीन और पूर्णत: अवसरवाद पर आधारित विदेशनीति का अंतत: यही हश्र होना था ।
आज पाकिस्तान को इस्लामी सहयोग संगठन से समर्थन की बड़ी आशा है। परंतु कश्निर माले पर प्रस्ताव पारित करा लेने और भारत के आंतरिक मामलों पर टीका टिप्पणी करने के अलावा यह संगठन कुछ और नहीं कर सकता। इसके कई प्रभावी सदस्य देशों के पाकिस्तान की तुलना में भारत के साथ गहन आर्थिक और सामरिक संबंध हैं, और वो पाकिस्तान की सदिच्छा प्राप्त करने के लिए इन्हें दांव पर लगाने को तैयार नहीं हैं।
जैसा कि पाकिस्तान से समाचार मिल रहे हैं, इमरान खान सेना का समर्थन खो चुके हैं और उनकी हताशा न केवल विपक्षी राजनैतिक दलों बल्कि अपने सबसे बड़े सहयोगी, सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ भी व्यक्त हो रही है। जब इमरान खान एक प्रधानमंत्री के रूप में पाकिस्तान की विदेश नीति की आलोचना करते हैं, तो इसका सीधा निशाना सेना की तरफ ही होता है। ऐसी छद्म लोकतान्त्रिक सरकारों के दौर में भी, आंतरिक और विदेश नीतियों का निर्धारण बिना सेना की सहमति के संभव ही नहीं है, और सेना भी इसका उपयोग अपने आर्थिक लाभ से लेकर राजनैतिक वर्चस्व में वृद्ध के लिए करती आई है और इस सबके बीच बहुसंख्य पाकिस्तानी नागरिकों अस्थिरता के दो प्रकार हैं के हित गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। पाकिस्तान में 25 मार्च के बाद राजनैतिक भविष्य क्या होता है, इससे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या इससे पाकिस्तान की आंतरिक और विदेश नीतियों के लक्ष्यों में बदलाव आयेगा? क्योंकि यही वह प्रश्न है जो आज के पाकिस्तान में मायने रखता है।
भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं Characteristics of Indian Democracy
भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं -
- सरकार का निर्माण जन-निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा होता है और वे लोगों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
- राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति के लिए एक से अधिक दलों के मध्य प्रतिस्पर्धा होती है।
- सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा खुले तौर पर होती है , गुप्त नहीं। यह खुले चुनावों द्वारा संपन्न होती है।
- चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर समय-समय पर होते हैं ।
- दबाव समूहों व अन्य संगठित और असंगठित समूहों को राजनीतिक व्यवस्था में काम करने की स्वतंत्रता होती है। वे सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं।
- नागरिक स्वतंत्रताओं में भाषण की स्वतंत्रता , धार्मिक स्वतंत्रता , संघ बनाने की स्वतंत्रता आदि की गारंटी होती है ।
- शक्तियों के पृथक्करण तथा एक दूसरे पर अंकुश लगाने की व्यवस्था होती है , जैसे कार्यपालिका पर निधायिका का नियंत्रण
उपरोक्त विशेषताएं मुख्यतया सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप के विभिन्न पक्षों की ओर संकेत करती हैं। यही नहीं भारतीय लोकतंत्र में पंथ निरपेक्षता , सत्ता का विकेन्द्रीकरण , स्वतंत्र न्यायपालिका , मौलिक अधिकार नीति निदेशक तत्व एवं महिलाओं के उत्थान से संबंधित प्रावधानों आदि जैसे तमाम लोकतांत्रिक मूल्य विद्यमान हैं।
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